वो रात गुजरी थी खड़ामा खड़ामा
किसी चोर पुराने की तरह गुपचुप,
उम्मीद में लौ ए चराग़ शमा ए सुब
दिल बैठे बैठे जाता रहा जाता रहा।
चुपचुप चीखते चटखते तलवे तले
जमीन थी भी कुछ बोझिल बोझिल
उम्मीद के लम्बे साये से डरता हुआ
हौसला हमसाया बैठा रहा बैठा रहा।
दूर सितारे की गर्मी से भरमता हुआ
धड़कन भर धड़कते हुए धधकता रहा
नाउम्मीदियों में रात कुछ बाकी रही
यूँ गुजर रही जागता रहा जागता रहा।