हवाई यात्रा का बेहतरीन पहलू है समय की बचत और बेकार पहलू है समय की बर्बादी।
पहली पहली उड़ान से यह बात समझ आ गई थी। आप सोलह घंटे की रेलयात्रा को घटा कर दो घंटे की हवाई यात्रा में बदल सकते है। लेकिन समय की बचत कितनी हुई, यह सीधा गणित नहीं होता। आप चौदह घंटे नहीं बचाते।
आपका प्रस्थान बिन्दु जो अक्सर आपका घर होता है से लेकर गन्तव्य बिन्दु तक का समय और आराम का विश्लेषण करना होता है। उदाहरण के लिए दिल्ली से मुम्बई की उड़ान दो घण्टे की है। आपको एयरपोर्ट पर किसी भी हालत में एक घण्टा पहले पहुँचना होता है वरना आपको उड़ान में बैठने की अनुमति नहीं मिल पाएगी। रास्ते के ट्रैफिक और किसी भी असंभावना के लिए भी समय का थोड़ा ख़्याल रखना होता है। इसी लिए ज्यादातर लोग दो घण्टे पहले हवाई अड्डे पर पहुंचते हैं। नई दिल्ली हवाई अड्डे के टर्मिनल तीन जैसे बड़े टर्मिनल पर आपको डिपार्चर गेट तक पहुंचने में भी थोड़ा बहुत समय लगता है।
इस प्रकार सुबह साढ़े सात बजे की उड़ान पकड़ने के लिए आपकी घर से ढाई तीन घंटे पहले निकलना सुनिश्चित करना होता है। यानि आपको देर से देर पाँच बजे घर छोड़ना होगा। पाँच बजे घर से निकलने के लिए आपको एक या दो घण्टे पहले उठना होता है, यह समय इस पर निर्भर है कि कितने लोगों के तैयार होना है। बच्चों को इतनी सुबह जगाना भी आजकल टेढ़ी खीर है।
एक अकेले इंसान को भी अगर हवाई यात्रा करनी है लगभग तीन घंटे पहले जागना होता है। यानि साढ़े सात की उड़ान के लिए चार बजे के आसपास। अगर सुबह नींद से परेशान नहीं होना चाहते तो छः घण्टे पहले सोना भी सुनिश्चित करें।
इसी तरह विमान से उतरने के बात सामान पट्टी से सामान लेने में भी पंद्रह से तीस मिनिट का समय लग जाता है। इसके बाद वाहन अपना हो या किराये का, आप दस पंद्रह मिनट लगते हैं।
इस तरह आपको दो घण्टे की उड़ान के लिए वास्तव में छः घण्टे का समय लगाना होता है। यदि यह उड़ान सुबह सबेरे की है तो रात भर नींद का तो न पूछिये। करवट बदल बदल रात बात जाती है। यदि यह उड़ान दोपहर की है तो दिन न यहाँ का रहता है न वहाँ का।
रेल यात्रा मुझे सुविधाजनक लगती है क्योंकि रेल आपको यात्रा के दौरान सोने का एक अच्छा अवसर प्रदान करती है।