मुर्दा ख़यालात


तड़पते हुए पीले पन्नों पर उबलती सुर्ख़ स्याही का दरिया न बाँध;

सुन, मेरे मुर्दा ख़यालात में गुलज़ार का आना जाना हो जायेगा|

 

नीले रंग का समंदर को यूँ आसमां में न उलीच उँगलियों से;

सुन, सलमा सितारों सी साड़ी पहन के निकली मरना हो जायेगा|

 

बिना बहर की ग़ज़ल सी जिन्दगी में रेख्ता की रौनक़ न देख;

सुन, मरे दिल के इक झगड़े में फिर इश्क़ का रगड़ा हो जायेगा|

 

अगले जनम में हमारी मुलाकातों के झूठे वादे न कर इस कदर;

सुन, तेरी इबादतों में मेरे मरने का बेजार अफ़साना हो जायगा|

 

इंसान की तरह खोखले इस आसमान में सुराख़ की बातें न कर;

सुन, पत्थर उछाल तो तपाकर खूब जरा कि आफ़ताब हो जायेगा|

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