शौर्य अङ्ग दीनदयाल के बारे में आप ने सुना।
नहीं नहीं, नहीं सुना होगा। कोई है भी नहीं इस नाम का। मगर जिस तरह साम्प्रदायिक उन्माद है, व्यक्ति के धर्म/सम्प्रदाय से देशप्रेम निर्धारित हो रहा है यह आम अस्तित्व में आ सकता है।
उन्मादी तत्व सकते में हैं, ये औरंगजेब कौन है? ये औरंगजेब नाम वाला कैसे देशभक्त हो सकता है। एक तो मुस्लिम, ऊपर से इतना ख़तरनाक हिन्दू विरोधी नाम। शायद सरकार ने गलत नाम लिख दिया होगा।
हालात यह है कि निजी बातचीत में उन्मादी लोग औरंगजेब को शौर्य चक्र मिलना अपनी प्रिय सरकार का चुनावी दाँव पेच तक बता दे रहे हैं। क्या उनकी प्रिय सरकार वही सब कर रही है, जो पहले की तुष्टिकरण सरकार करती थी? फिर फ़र्क क्या रहा? क्या फ़ायदा हुआ आपको सरकार बदलने का। अपनी प्रिय सरकार पर तो भरोसा रखिये।
हालात ही ऐसे हैं। आम लोगों की दुनिया अक्सर अपनी गली मोहल्ले और नाते रिश्तेदारों के आगे नहीं होती। प्रायः हमारे गली मोहल्ले और नाते रिश्तेदार हमारी अपनी जाति के होते है। यह जरूर है कि नई कॉलोनियों में सवर्ण, दलित, और मुस्लिम जैसे थोड़ा बड़ा समूह रहता है, एक जाति के मोहल्ले कम हुए हैं, पर अभी हैं।ऐसे में दूसरी जाति और धर्म तो लगभग पराई दुनिया की तरह होते हैं। जिन से हम मिले नहीं कभी तो अविश्वास बना रहता है।
यह अविश्वास औए बढ़ रहा है। आपसी संवाद तो अब घर परिवार नाते रिश्तेदारी में भी सामाजिक नहीं रह गया, सोशल मीडिया ज्यादा हो गया है। संवाद की कमी ने अफवाह और कही-सुनी ने ले ली है।
मुस्लिम होना ही गलत हो गया है। लोगों को नहीं समझ आता कि अकबर का सेनापति हिन्दू और राणा प्रताप का सेनापति मुस्लिम कैसे हो सकता है। मात्र दिमाग़ी फितूर के चलते नाम बदल जा रहे हैं। जगहों के, योजनाओं के और शायद लोगों के भी। यह सब आज से नहीं हो रहा, पिछले चार पाँच साल से नहीं हो रहा। यह लंबी प्रक्रिया है, काम से कम पचास साल का इतिहास है इसके पीछे।
अब औरंगजेब को लीजिये। देश के लिए लड़ा। मुस्लिम था इसलिए साम्प्रदयिक तत्वों को भरोसा नहीं हो रहा। मुस्लिम होने के साथ उसका नाम और बड़ी अड़चन है। उन्हें लगता है कि कहीं न कहीं वो या उसके मातापिता मुग़ल शासक औरंगजेब की तरह हिन्दू विरोधी होंगे। यह अलग बात कि शासक औरंगजेब का हिन्दू विरोधी होना भी बहस का मुद्दा रहा है। ख़ुद शासक औरंगजेब का सेनापति हिन्दू था।
हाल में दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम अब्दुल कलाम मार्ग रख दिया गया। यह उन्मादियों के दिमाग में बुरा मुसलमान बनाम अच्छा मुसलमान का द्वंद था। ऐतिहासिक तथ्य जहां हैं वहीं रहेंगे। इसकी परिणति कहाँ होगी किसी को नहीं पता। आज बुरे तालिबान अच्छे तालिबान, बुरे मुसलमान अच्छे मुसलमान, मुसलमान हिन्दू, बुरे हिन्दू अच्छे हिन्दू तक कहीं भी जा सकती है।
धर्म से अगर इंसान का बुरा इंसान या अच्छा इंसान होना तय हो जाता तो न रामायण होती न महाभारत। न रावण, न कौरव।
इन दिनों जिस तरह के हालात है, इस औरंगजेब को देशभक्त मानने के लिए साम्प्रदायिक उन्मादियों के पास एक ही सरल तरीका है। नाम बदल देना। क्या उसका नाम शौर्य अंग दीनदयाल रख दिया जाए?
औरंगजेब को शौर्य चक्र मिलने का यह मौका सटीक मौका है कि हम साम्प्रदायिक उन्माद से बाहर आएं।