भोजन से ठीक पहले या बाद में पानी न पीने की सलाह हमें दांत निकलने के साथ मिलनी शुरू होती है और दांत टूटने तक मिलती रहती है| हम सब अंधविश्वास की तरह इसे मानते हैं| हर अंधविश्वास की तरह इस सलाह के भी वैज्ञानिक होने का विश्वास किया जाता है| पढ़े लिखे डॉक्टर, भोजन विशेषज्ञ, रसोइये, पाक कला विश्लेषक और पाचन तंत्र सम्बन्धी वैज्ञानिक भी इस सलाह के वैज्ञानिक होने पर सहमत नजर आते हैं| मगर मुझे यह किसी चिकित्सा-विज्ञानी द्वारा अपने किसी रोगी से किया गया मजाक लगता है| ठीक उसी तरह कि भोजन का ग्रास ३२ बार चबाना चाहिए – चाहे छोटा कौर लिया हो या बड़ा|
भोजन से पहले या बाद में पानी न पीने का मुख्य तर्क है कि जठराग्नि मंद पड़ जाती है| या कहें तो पाचकरस पतले हो जाते हैं जिस कारण से भोजन नहीं पच पाता|
अगर यह सत्य है तो हम सबको केवल रूखा-सूखा खाना खाना चाहिए| खाने का समय भी ऐसा हो की आमाशय में पानी न हो| रसीली दाल और सब्जी भी पाचक रसों को पतला कर देगी| जठराग्नि पर गुनगुना पानी डालें या ठंडा उसे बुझना ही चाहिए| या गरम पानी डालने से वो पेट में पेट्रोल का काम करेगा|
सोचिये जिस प्रकार खाना पकाते समय पानी की मात्रा कम ज्यादा की जाती है, और जिस प्रकार आँच को तेज और धीमा किया जाता है – आमाशय में भी उस प्रकार की कुछ व्यवस्था होनी चाहिए| फुल्का खाएं तो धीमी जठराग्नि और पूड़ी खाएं तो तेज|
जो विद्वान भोजन के पहले या बाद में पानी पीने की मना करते हैं वो अक्सर भोजन के बीच में ख़ूब पानी पीने की सलाह देते हैं| क्या वह पानी पानी नहीं रहता?
विद्वान बताते हैं कि पाचक रस में अम्ल होते हैं| ऐसा कहते समय यह विद्वान शराब का सेवन करते हुए भोजन की तैयारी कर रहे होते हैं| शायद ही कोई बताता है कि शराब जैसे क्षारीय पदार्थ के कारण पाचक रस कमजोर हो जायेंगे और खाना पचने में कठिनाई होगी| शराब पीने वाले मित्र अक्सर पाचन सम्बन्धी शिकायतें नहीं करते| इसके अलावा, शराब में उड़ेले गए पानी और बर्फ से उनका पाचन कभी कमजोर नहीं पड़ता|