दो विचार


कागज़ी सम्बन्ध

जगत मिथ्या पर भरोसा करने वाली मानव सभ्यता, आज इस मिथ्या जगत में बनाई गई छद्म दुनिया में जी रही है| आज आपसी संबंधों में आपसी संवाद की जगह कागजों पर लिखे गए भावों ने ले ली है| चेहरे के भाव, शारीरिक भाव भंगिमाएं क्या लिखे हुए शब्दों में अभिव्यक्ति पा सकती हैं? क्या कभी जिव्हा से निकले स्वरों के आरोह अवरोह को लिखे हुए शब्द पकड़ पाएंगे? क्या प्रेमी-प्रेमिकाओं के आपसी नयनाचार को प्रेम पत्र अभिव्यक्तकर पाएंगे? क्या होगा जब लिखे हुए शब्दों का छद्म भोली भाली कन्याओं की समझ में नहीं आ पायेगा?

लिखित शब्दों में आज अश्लीलता परोसी जा रही है, उस पर नियंत्रण करना मुश्किल है| सबसे बड़ी बात है की सारी मानवता अपने लिए कोई एक भाषा या लिपि विकसित नहीं कर पायेगी|

वास्तव में भाव भंगिमाओं की आदिम भाषा ही मानवता का सत्य है|

 

कृत्रिम समझदारी

कृत्रिम समझदारी का विकास हो चुका है| हर चीज आज आभासी है| मिथ्या जगत में छद्म का विकास हुआ है| आज संबंधों को मोबाइल की स्क्रीन पर निभाया जा रहा है| क्या तरह तरह के निशान भाषा या लिपि का विकास कर रहे हैं या चित्रलिपियों की तरह के दुरूहता का गठन कर रहे हैं| क्या मुख से उच्चारित शब्द या हस्तलेख में लिखे गए भावों का नाश हो जायेगा| आज सब कुछ त्वरित है| समय का कोई आनंद नहीं| बच्चे समय से पहले बड़े हो रहे हैं| भले ही चिकित्सा जगत ने आयु पर विजय प्राप्त करने की ओर बड़े कदम उठाये हैं, मगर बूढ़े हृदयों से मानव समाज भरा हुआ है| मोबाइल के रूप में वो राक्षसी तोता सबके हाथ में लग गया है जिसमें हमने अपने अपने प्राण डाल दिए हैं| तोता मरा, राक्षस मरा| मोबाइल मरा हम मरे|

अब बच्चों को लिखने पढने की क्या भाषा सीखने की जरूरत नहीं रह गए| हमारे भाषा हीन विचारों को पकड़ने की तकनीकि सामने है|

 

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