मामला यह है ही नहीं कि कोई व्यक्ति संत है या नहीं है| सोशल मीडिया पर सारा मामला “मेरा वाला संत” का है| गलतियाँ, पाप, सजाएं और प्रायश्चित सामान्य से लेकर संत व्यक्ति को लगे ही रहते है| मानव है तो उसके पास मन भी है, गुण अवगुण भी| पहले भी संत, महंत, सन्यासियों, साधुओं ने अपराध किये हैं और सजाएँ भी होती रही है| सांसारिक प्रलोभन से तो महर्षि विश्वामित्र भी नहीं बच पाए थे, आजकल वाले तो अभी अध्यात्म के शुरुवाती पायदान पर हैं|
आजकल धर्मगुरु धर्मसत्ता, राजसत्ता, अर्थसत्ता के उच्चासन पर विराजमान हैं| समय और देश की सीमा के परे मानवमात्र की सोचने वाले धर्मगुरु देशप्रेम और युद्धशांति जैसे विषय में भाषण-विज्ञापन देते हैं| ब्रह्मचर्य से लेकर कंडोम तक बेच सकने वाले यह धर्मगुरु अपने समर्थकों का तन-मन-धन समर्थन रखते हैं| सत्ता की यह उच्चता ही उन्हें निरंकुश बनाती है| उन्हें पता है सत्ता दुरूपयोग के विरूद्ध खड़ा होने वाला कोई नहीं है| कारण – श्रृद्धा| जिसे हम अंध-श्रृद्धा कहते हैं वह आपके धर्मगुरु के शब्द में श्रृद्धा है| जिस समय कोई धर्मगुरु या उसका अनुयायी आपको प्रश्न करने से रोक दे तो यह अंध-श्रृद्धा है| जब आप आदर या श्रृद्धा के कारण अपने आप प्रश्न करने से रुक जाएँ तो भी यह अंध-श्रृद्धा है| अब आप किसी प्रश्न का उत्तर बिना किसी ख़ोजबीन के खुद ही देने लगें तो अंध-श्रृद्धा है| जब आपका गुरु समझ ले की आप श्रृद्धालू हैं तो समझ लें आप अंध-श्रृद्धालू हैं| अन्य लोगों की धर्मगुरु जिज्ञासू कह सकते हैं, श्रृद्धालू नहीं|
समर्थक और विरोधी प्रायः धर्मगुरुओं के अपराधों और घोटालों पर प्रश्न नहीं करते| बलात्कार और हत्या यदा-कदा अपवाद हैं| बलात्कार और हत्या दो आरोप हैं जिनपर श्रृद्धालू नकार भाव रखते हैं| देश के भारीभरकम धर्मगुरुओं द्वारा अपने गुरुओं या धर्मभाईयों को मरवाने के चटक चर्चे आश्रमों में घूमते रहते हैं और किस्सों की तरह मीडिया में भी| जो स्त्री-पुरुष तन का समर्पण रखते हैं, उन्हें कृपा मिलती रहती हैं| अन्य पाप के भागी, बलात्कार का शिकार कहलाते हैं| जो दोषी करार दिया जाए, मात्र उसपर ही हम प्रश्न करते हैं| जब भी यह अपराध हमारे “मेरे वाले धर्मगुरु” के नाम नहीं चढ़ता, हम उसके नाम का नमक बाजार से खरीदते खाते रहते हैं|