यह बाग़ अपनी पहली मालकिन और संस्थापक मुग़ल शहजादी रोशन – आरा के नाम पर भले ही भुला दिया जाए, मगर दक्षिण एशिया के क्रिकेट का रवायती जन्म इसी बाग़ में हुआ था| जब मैं रोशनआरा बाग़ में था, तब भी इसकी बारादरी के चारों ओर बनीं नहरों और कुण्डों में इतिहास और विरासत से लापरवाह बच्चे क्रिकेट खेलते थे|
रोशन- आरा बाग शाहजहानाबाद की बसावट के दौर की यादगार है जो शाहजहानाबाद के बाहर मुग़ल शहजादी रोशन-आरा ने बनबाया था| इस बाग़ में बनी हुई बारादरी पुरानी दिल्ली के शानदार दिनों में यह बाग़ मुग़ल स्थापत्य का नमूना है| दिल्ली के सभी पुराने शहरों से दूर जब शाहजहानाबाद बसाया जा रहा था तब दिल्ली में कई सारे बाग़ बनाये गए| पुराने शहरों के आस पास बाग़ बनाये जाने की रवायत बहुत पुरानी है जो आजतक फार्महाउस की थोड़ा विकृत शक्ल में मौजूद है| उन पुराने बाग़ों में आज नई दिल्ली के तमाम नामचीन मोहल्ले आबाद है|
रोशनआरा बाग़ की बारादरी में हर बारादरी की तरह ही बारह द्वार हैं – चारों दिशाओं में तीन तीन| बारादरी की दीवारों पर पुरानी चित्रकारी खस्ताहाल सही, मगर मौजूद हैं| यहाँ मौजूद चित्रकारी में आपको सजावटी कला के दर्शन होते हैं| चित्रकारी में मौजूद फूल, पेड़ों और पत्तियों से आप किसी खास पेड़ या पौधे को नहीं पकड़ सकते| सीधे सपाट खम्बों की जगह कटावदार खम्बे लगे हुए हैं और उनपर सजावट हुई है| देखने में यह बारादरी एक मंजिला मालूम होती है मगर इसके चारों कोनों पर मौजूद कमरे दोमंजिला हैं| बारादरी के चारों तरह पानी का कुंड है जो आजकल के हिसाब से स्विमिंग पूल का नक्श देता है| साथ ही बारादरी तक आती हुई चार पुरानी नहरों के निशान आज भी मौजूद हैं| यह उस दौर में प्रचलित बाग़ बनाने की चारबाग़ प्रणाली का सुबूत है|
इस बारादरी में कभी शाही खानदान सैरसपाटे के लिए रुकता था| आज शाहजादी रोशनआरा बारादरी के बीचोंबीच दो गज कच्ची जमीन में सोती है| यूँ पूरी बारादरी के ऊपर लाल पत्थर की मजबूत छत है, मगर शाहजादी रोशनआरा खुले आसमान के नीचे है, क्योंकि वो ऐसे ही सोना चाहती हैं|
दिल्ली की तमाम पुरानी इमारतों की तरह यहाँ भी पुरातत्व विभाग का बोर्ड मौजूद है जो पुरातत्व विभाग के होने की कुछ सम्भावना बयान करता है| चारों ओर का बाग़ उत्तर दिल्ली नगर निगम ली लापरवाही के हवाले है| आसपास वालों को राहत है कि सुबह की चहलकदमी के लिए कोई जगह तो है| इससे आगे परवाह किसे है?