बचपन में हम सबने सुनीं हैं लोरियां| माएं, दादियाँ, नानियाँ सुनातीं थी लोरियां| जब पिता के मन में ममता जागती है, तब भी लोरी सुनाई देती है|
लोरियां माँ के दूध के बाद ममता का सबसे मीठा भाव है| संगीत और शब्द का नैसर्गिक सरल और सुलझा हुआ रूप लोरियां| अधिकतर लोरियां स्वतःस्फूर्त होतीं है| शांत रात्रि में जब बच्चा गोद में आता है तब हृदय में पैदा होने वाले स्पंदन से निकलती हैं लोरियां| कभी धुन नहीं होती तो कभी शब्द नहीं होते… ध्वनि होती है, भावनाएं होती हैं| लोरियां बनती बिगड़ती रहती हैं| अक्सर याद नहीं रहती, याद नहीं रखीं जातीं|
फिर भी कई बार होता है, लोरियां कवि और गीतकार गाते हैं, शब्दों और धुनों में पिरोते हैं| कभी कभी माओं का हृदय शब्दों को यादगार लोरियों में बदल देता है| ऐसी लोरियां लोकगीत की तरह समाज में विचरतीं है, फिल्मों में गाई जातीं है| उनके संकलन भी आते हैं|
हाल में मैंने यह पुस्तक खरीदी है – लोरियां| एक छोटी सी बच्ची के पिता को खरीदना भी और क्या चाहिए? इसमें कुछ लोकलोरियां हैं तो महाकवियों की प्रसिद्ध लोरियां भीं हैं| हालाँकि कुछ गीतों को शायद गलती से लोरी कह दिया गया है| जैसे – जसोदा हरि पालने झुलावै|
कवियों और गीतकारों की लिखी लोरियों में ममता का भाव कम रह जाता है, काव्य और गीत का तकनीकी पक्ष मजबूत होने लगता है| इसमें कुछ अच्छे प्रयास भी हुए है| कई बार प्रसिद्ध गीतकार और कवि बेहतर शब्दों के जाल में उलझकर साधारण सी लोरी लिख पाते है| दूसरी ओर एक स्वतःस्फूर्त लोरी लिखे जाने पर उतनी सुन्दर नहीं जान पड़ती जितना वो ममतामयी गले से गाये जागते समय होती है|
आज जब लोरियां गाने का समय टेलीविजन के सामने निकल जाता है| लोरियों का अपना महत्व बरकारार है| यह हमारे शिशुओं का प्राकृतिक अधिकार है कि वो ममतामयी धुनें, शब्द और गीत सुने – लोरियां सुनें| यह पुस्तक इस दिशा में उचित कदम है|
शकुंतला सिरोठिया, कन्हैयालाल मत्त, प्रकाश मनु की लोरियां, लोरियों के नैसर्गिक सौंदर्य के निकट है| अन्य लोरियां गेय कम पठनीय अधिक हैं| कुल मिलकर पचास लोरियों की यह पुस्तक संग्रहणीय है|
पुस्तक – लोरियां
लेखक – संकलन
प्रकाशक – राष्ट्रिय पुस्तक न्यास
प्रकाशन वर्ष – 2011
विधा – लोरी
इस्ब्न – 9788123761817)
पृष्ठ संख्या – 54
मूल्य – 45 रुपये
nice book
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