वो रोज हमारे दरवाजे आते हैं, घर नहीं आते|
अजब बात हैं न, पांच साल में शायद ही उन्हें हमने एक बार भी नाम से पुकारा हो| उन्हें मौन रखकर भी पुकारा जा सकता है, वर्ना भैया का शाश्वत संबोधन है ही|
हम भारतीयों को अपने घर का कूड़ा कूड़ेदान में डालकर आने में जो लज्जा आती है, उसी लज्जा का मूर्त नाम है – कूड़े वाले भैया|
हर सुबह सबसे पहले दरवाजा वही खटकाते हैं| दरवाजा खटकने का अंदाज और समय बता देता है, कौन है| वो रोज हमारे दरवाजे आते हैं, घर नहीं आते| दरवाजे से उनका काम हो जाता है| बहुधा मौन संवाद रहता है| कभी कभी जब मैं हालचाल पूछ लेता हूँ तो कहीं दूर से कोई अचानक जागता सा जबाब देता है| कभी कभी बच्चों से बात कर लेते हैं| अपने बच्चों को साल में एक बार होली पर ही देख पाते हैं न वो| जिस मंदिर में प्रसादी पर नौकरी करते हैं, उस की धर्मशाला में साल भर होने वाले शादी ब्याह से आस लगी रहती है| अपना अपना लालच है, साहब| प्रसादी से पेट भरता है, बेगारी से कपड़ा पहनते हैं, और ईनाम से घर पैसा भेज देते हैं| बेटी की शादी किये थे २०१५ में, दस हजार का दहेज़ देने में जान निकल गई थी| जमींदार से उधारी तो रहती ही है| नहीं नहीं, अब तो सब जमींदार साहब को प्रधान जी बोलने लगा है, वो खुद कहलाते हैं|
कई बार जब भैया महंगाई की बात करते हैं तो अन्दर से मन हिल जाता है, कहीं पैसे बढ़ाने की तो नहीं कह रहे| सत्तर रूपये महीने में अगर कोई दस रूपये बढ़ाने की कह दे तो मन को खलेगा न| लगभग पंद्रह फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई| कोई बढ़िया से बढ़िया कंपनी भी नहीं देती| यह बात अलग है, पांच साल में भैया ने कभी पैसे बढ़ाने के लिए नहीं कहा| एक बार मैंने पूछा पैसा बढ़ा दें, बोले क्यों कॉलोनी में दुश्मनी लेते हो?
एक पड़ौसी से लड़ाई रहती है| मत पूछिए, एक बार अखबार में उसका फ़ोटो आया था न| अपने दरवाजे पर गंदगी करता है, साझा सीढ़ियों पर कूड़ा डाल देता है| फोकट में उसका कूड़ा उठाना पड़ता है| अगर न उठाओ तो बाकी लोग के लिए सीढ़ी पर गंदगी रहता है, गाली भैया को मिलती हैं| इसलिए उठाना तो पड़ता है| कोई बात नहीं, भैया उसे गाली देते हैं – माँ बहन बेटी की| पड़ौसी शरीफ़ आदमी, कुछ नहीं बोलता| एक बार भैया ने उनकी किसी “सेटिंग” को गाली दे दी, तब निकल आया था बाहर| खूब लड़ाई हुई, पड़ौसी को गाली, उसकी माँ – बहन – बेटी को गाली देता तो ठीक भी था – किसी अनजान औरत को गाली देने का क्या मतलब| उस दिन पड़ौसी की बेटी रोने लगी| उस दिन से भैया, पड़ौसी को बेटी की गाली नहीं देते, उसकी बेटी के बराबर उम्र की बेटी हैं न भैया की|
भैया कभी नागा नहीं करते, अगर किसी दिन नहीं आना हो तो गली के किसी कूड़ा बटोरने वाले लड़के को बोल देते हैं| कुछ लोग उन लड़कों को लेकर भैया को पीठ पीछे गालियाँ देते हैं| भैया कभी सुन लें तो एक बार मुड़कर देख लेते हैं – बस| ज्यादातर बोलने वाले चुप हो जाते हैं| बोलने वाले अपनी इज्ज़त दरवाजे पर गिरवी रखकर बोलते हैं|
जब नगरपालिका की गाड़ी आने लगी तो मैं बोला अब तो आपका धंधा बंद| बोले हिन्दुस्तानी आदमी चौराहे पर हग-मूत सकता है, घर का कूड़ा खुद बाहर नहीं डाल सकता|
उन्होंने गाली नहीं दी न| आपको और मुझे बुरा सा क्यूँ लग रहा है| जाने दीजिये छोटा आदमी है|