बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में लैटर बॉक्स इतनी महत्वपूर्ण “सामाजिक इमारत” थी कि आसपास की बड़ी बड़ी इमारतों का पता इस बात पर भी निर्भर करता था कि वह इमारत लैटर बॉक्स से कितनी दूर है| लैटर बॉक्स का निकटतम प्रतिद्वंदी था बिजली का ट्रांसफार्मर, जो आज भी हर गाँव में नहीं पहुंचा| आज भी छोटे शहरों और गांवों में लैटर बॉक्स महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जबकि महानगरों में इसका प्रभाव कम होता जा रहा है|
बचपन में नगरपालिका, प्रधानी और विधायकी के चुनावों लैटर बॉक्स लगवाना एक बड़ा मुद्दा था| पोस्ट कार्ड का चलन समस(SMS) और अन्य सन्देश सेवाओं के कारण कम हुआ है| दिल का हाल सुनाने के लिए अब पाती नहीं लिखी जाती वरन टेलीफोन आ जाता है|
लम्बे पत्रों का स्थान कुछ हद तक ईमेल आदि के चलते कम लिखा जाता है तो अत्यंत आवश्यकता पड़ने पर लिखे जाने वाले पत्र कूरियर सेवाओं और डाकघर की स्पीड पोस्ट और रजिस्ट्री सेवाओं से भेजे जाने लगे हैं| अधिकांश लोगों के पास पैसा है और पहले के तरह तीन अन्तेर्देशीय पत्र लिखने की जगह एक पत्र को रजिस्ट्री, स्पीड पोस्ट या कोरियर से भेजना लोगों को उचित लगता है|
ऐसे में लैटर बॉक्स मात्र एक ऐतिहासिक निशान बनकर रह गए हैं| जिन स्थानों पर पहले लैटर बॉक्स थे आज उनके निशान भी नहीं मिलते और लोगों को याद भी नहीं है कि यहाँ कभी लैटर बॉक्स भी था| अलीगढ़ में एक दुकान के पास लैटर बॉक्स है, दुकानदार ने बताया कि अब पहले की तरह दिन में दो बार डाक नहीं निकाली जाती बल्कि कई बार तो हफ्ता हो जाता है|
लैटर बॉक्स तो त्यौहार हो गए हाँ, होली दिवाली ग्रीटिंग कार्ड भेजने का चलन आज भी है तो बहुत से लोग खर्च को देखते हुए, लैटर बॉक्स का प्रयोग करते हैं|
पता नहीं कब यह लैटर बॉक्स इतिहास हो जाए| इसलिए मैंने भी अपने बेटे का लैटर बॉक्स के साथ छायाचित्र लिया है – ताकि सनद रहे|

लैटर बॉक्स – ताकि सनद रहे
स्थान लोदी रोड पोस्ट ऑफिस, नई दिल्ली ११०००३, दिनांक १५.०१.२०१६, समय सुबह १०.१७ | छायाचित्र: ऐश्वर्य मोहन गहराना