अर्धमातेश्वर


हम बच्चे छोटे तो नहीं थे मगर नाज नखरों से पले थे, इसलिए हम उतने बड़े भी नहीं हुए थे| पढाई लिखाई खेल कूद और घुमने फिरने के अलावा हमें लगभग कुछ नहीं आता था| चौके चूल्हे के बारे में तो ज्यादा पूछिए भी मत| मुझे बाजार हाट. भारी कपड़े धोना, झाड़ू पौंछे हल्के फुल्के नाश्ते  बनाने का कुछ अनुभव था| बड़ी बहन यूं तो सिलाई कढ़ाई गाने बजाने में काफी अच्छी थी मगर खाना ठीक ठाक ही बना सकती थी| जब माँ बीमार हुई तो अचानक तीनों बच्चों को घर के काम काज बाँट दिए गए| बिस्तर पर से माँ सबको बताती सिखातीं रहतीं, हम करते रहते| मगर हमने कभी इन कामों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया और उतना ठीक से नहीं सीखा|

माँ की मृत्यु और उसके बाद बड़ी बहन की शादी के बाद समस्याएं बढ़ गई| अब घर में मेरे पिता, मैं और मेरी छोटी बहन थे और हम तीनों को खाना बनाना तो आता था मगर उस खाने को खाना कहा जाना खासकर तब बहुत मुश्किल होता था जब हम दोनों बच्चों में से कोई खाना बनाता था| मेरे पिता ने अपना लगभग सारा बचपन बिना माँ के और ज्यादातर पिता से दूर ढाबों और होटलों पर खाना खा कर ही काटा था और वह दोबारा “सड़क पर खाने के लिए” नहीं भटकना चाहते थे|

खाना बनाना सीखना बहुत जरूरी था| तो अब पाकशास्त्र की कुछ पुस्तकों और  वेवसाइटों (सन २००३ में उन दिनों वेबसाइट ज्यादा नहीं थी और विडियो तो शायद नहीं थे) और पिताजी के अंदाजे के हिसाब से खाना बनाने का पूरा सत्र घर में चलने लगा| एक नहीं रेसिपी हफ्ते में तीन बार बनती, पहले पापा और बाद में हम दोनों एक ही विधि पर खाना बनाते| हम तीनों थोड़े बहुत प्रयोग करते रहते| हमने देशी विदेशी बहुत सारे शाकाहारी व्यंजन बनाने सीखे और उनका सत्विकीकरण भी किया| सत्विकीकरण मतलब बेहद कम मसाला, प्याज लहसुन नदारद जैसे भिन्डी दो प्याज़ा के स्थान पर असफल रही भिन्डी दो टमाटर| मेरे पिता आज उत्तर भारतीय खाने के अलावा भी बहुत कुछ बना लेते है|

ऐसा नहीं है कि मेरे पिता केवल खाना बनाना और सिखाना जानते हैं| बाकी घरों में जितने भी काम एक माँ करती है हमारे घर में मेरे पिता करते हैं|

टिप्पणी: यह पोस्ट इंडीब्लॉगर द्वारा गोदरेज एक्सपर्ट के लिए किये गए आयोजन के लिए लिखी गयी है|

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