वो पुराना गाना… चौहदवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो…
आफ़ताब क्यूँ…. चाँद… हमेशा चाँद… चाँद सा मुखड़ा…
शीतल स्वभाव… चाँदनी सा शीतल… शरद पूर्णिमा का चाँद और उसकी चाँदनी… सबको हर्षित कर देने वाला भाव…
आसमान में चौहदवीं का चाँद हो, सामने आगरा का ताजमहल और साथ में तुम… सिर्फ तुम… सिर्फ तुम…
वो मासूम सवाल… क्यूँ कहते हो चाँद? चाँद में तो दाग है…
हूँ… चाँद में दाग है… और तुम…. तुम्हें भी तो मुहाँसे हो जाते है…
ओये!! जंगल बुक के भगीरे… वो कभी कभी होते है… तुम्हारी तरह रोज रोज नहीं होते…
ये मुहांसे भी अजीब चीज हैं यार… जब भी आते है सौदर्य शास्त्र की चर्चा को करुण रस बना देते हैं… प्रेम रस को कभी रौद्र तो कभी वीभत्स में बदल देते हैं… कम से कम जिसको मुहांसे हो जाते हैं उसे तो ऐसा ही लगता है…
हँसते खेलते युवा जीवन में करुण रस हैं, मुहाँसे… मुहाँसे सौन्दर्य में वीभत्स रस का रौद्र रूप हैं…
मुहाँसे!! जब पहली बार हुए तो किसी ने कहा, जवान हो रहे हो|
मुहाँसे!! जब दूसरी बार हुए तो किसी ने कहा, तला – भुना खाने से बचो|
मुहाँसे!! जब तीसरी बार हुए हो, कुछ करते क्यों नहीं?
मुहाँसे!! अब तो किसी से पूछ लो मुहाँसे… आपका पता बता देता है|
मुहाँसे!! अब मुहाँसे हो या न हो उनके निशान बने ही रहते हैं| मुहाँसे आते जाते रहते है| नहीं, आते रहते हैं, आते रहते हैं, आते ही रहते हैं…
मुहाँसे के साथ आती रहती हैं चिंताएं… सलाहें… मशवरे…
ये लगाओ… उसे खाओ… ऐसे नहाओ… वैसे बहाओ…
दिन में एक सौ उन्नीस बार गुलाब जल से मुँह धोया करो… आधा सेर करेले का रस स्वाद लेकर पिया करो… हरे रंग की गोल लौकी खाया करो… मुल्तानी मिट्टी का लेप चेहरे पर लगाओ… साबुन पर प्रतिबंध लगाओ… धूल मिट्टी दूर भगाओ… धूप से मुँह छिपाओ… घर में नीम का पेड़ लगाओ… और किसी की बात पर न जाओ…
अगर किसी की सलाह न मानो… और मुहाँसे… और ज्यादा मुहाँसे… और भी ज्यादा मुहाँसे…
मुहाँसे बीमारी हैं या महामारी…
हर बार माँ को चिंता होने लगती है… हल्दी, चन्दन, केसर, नीम, दूध – मलाई और बेसन… सारी रसोई चेहरे पर सज जाती है… मास्टर शेफ का शो, अगर हो तो मुहांसे से भरे…. नहीं नहीं डरे चेहरे के ऊपर जरूर होता है…
मुहाँसे आतकंवादी हैं… बाजार बढ़ाने की कोई कैपिटलिस्ट साजिश… खुली लूट का बाजारू षड्यन्त्र…
मुहाँसे… राहत का नाम नहीं लेने देते… और बाजार में मुहाँसे का आतंक बिक रहा है… क्रीम… पाउडर… पैक… फ़ेसवाश… टिशु… नाम और बेनाम उत्पाद उत्पाद उत्पाद…
एक मुहांसा आपके चेहरे पर दाग लगा सकता है और शेयर बाजार में उछाल ला सकता है…
अगर मुहाँसे ठीक हो जाये तो कहानी फिर से ख़ूबसूरत हो जाती है… राजस्थानी पेंटिंग बनी – ठनी की तरह… और जिन्हें भारतीय चित्रकला के बारे में नहीं पता तो उनके लिए मोनिलिज़ा की तरह…
ओह!! क्या राज है… तुम्हारी इस चिकनी चुपड़ी जवान पार्लर पलट त्वचा का…
जब तुम इतनी ख़ूबसूरत हो तो तुम्हारी माँ… कितनी खुबसूरत होंगी… कभी मिलवाओ न…
क्या करोगे मिलकर?? हूँ…??
गाना गाऊंगा.. चौहदवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो….
यह पोस्ट इंडीब्लॉगर के द्वारा आयोजित प्रतियोगिता के लिए लिखी गयी है| सम्बंधित लिंक है:
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