“दिल्ली की सर्दी” अगर अपने आप में एक मुहावरा है तो “दिल्ली का मौसम” और “मौसम का मिज़ाज” भी कहीं से भी पीछे नहीं हैं| इस समय दिल्ली में शीतलहर का मौसम है और इस बार “आप की शीतलहर” की मार है|
दिल्ली के चुनाव परिणामों से पहले दिल्ली के पिछले दो दशकों को अगर देखें तो हमें मानना होगा कि दिल्ली में विकास हुआ है| बिजली, पानी, सड़क, आदि की भी कोई बड़ी समस्या नहीं दिखाई देती है| दिल्ली मेट्रो दिल्ली के विकास का अग्रदूत बनकर खड़ीं दिखाई देती है| फिर क्या हुआ कि दिल्ली में कांग्रेस की शीला सरकार को हार देखनी पड़ी?

English: Jantar Mantar, New Delhi with Park Hotel हिन्दी: जंतर मंतर, दिल्ली (Photo credit: Wikipedia)
१. जनता ने विकास में भ्रष्टाचार को गहराई से महसूस किया;
२. विकास की मौद्रिक लागत की अधिकता जनता को समझ नहीं आई;
३. जब दिल्ली मेट्रो लाभ में गयी तो डीटीसी के घाटे पर सवाल उठे;
४. बिजली पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के निजीकरण में, जनता को जिम्मेदारी से भागती सरकार और विपक्ष दिखाई देता है;
५. बिजली कंपनी के खातों में धांधली की खबर से जनता में आक्रोश है; और
६. हाल की नकली महंगाई ने भी जनता के कान खड़े कर दिए हैं|
यदि हम साधारण कहे जाने वाले लोगों से बात करते हैं तो पाते हैं कि सभी तबकों में संसद में काम ठप्प रहना; कानूनों का लम्बे समय तक पारित न होना; ताकतवर लोगों के मुकदमों का टलते रहना सब आक्रोश पैदा करता है| लोग जन – लुभावने वादों पर अब अधिक मतदान नहीं करते| सभी को नागनाथ – साँपनाथ की राजनीति से मुक्ति चाहिए|
हाल के चुनावों से यह तो स्पष्ट है कि देश में अब कांग्रेस के विरुद्ध माहौल है| परन्तु भाजपा के लिए आसान राह नहीं है| उसके पास मोदी समर्थक वोट से अधिक कांग्रेस विरोधी वोट का बल है| सबसे बड़ी कठनाई यह है कि “भाई – भाई, मिलकर खाई, दूध मलाई” का भाव जनता में मौजूद है जिसे नारा बनना ही बाकि रह गया है|
क्या आप ये नारा बुलंद कर पाएगी?
“भाई – भाई, मिलकर खाई, दूध मलाई”