महीनों पहले
लंबी सड़क के बीच
दरख्तों के सहारे
चलते चलते
तुमने कहा था
भूल जाओगे एक दिन
.
.
.
याद आते हो आज भी
साँसों में सपनों में
गलीचों में पायदानों में
रोटी के टुकड़ों में
चाय की भाप में
.
.
.
तुम आज भी
हर शाम कहते हो
भूल गया हूँ मैं तुम्हें
हर रात गुजर जाती है
मेरे शर्मिंदा होने में
.
.
.
हर सुबह याद आता है
तुम्हें भूल चूका हूँ मैं
.
.
.
कुछ भूल तो है मेरी…
ऐश्वर्य मोहन गहराना
(१८ जनवरी २०१३ – सुबह
जागने से कुछ पहले
अचानक मन उदास सा था
करवटें बदलते बदलते
तुम्हारी याद में)
Excellant. From the deep of heart, only this kind of peom can emarge
पसंद करेंपसंद करें
kuch chize dil chuu jati h…jese apki ye kavita…wah…
पसंद करेंपसंद करें