ऐसे समय जब बेरोजगारी के साथ अर्ध-रोजगार और छद्म रोजगार के विकटता लगातार बढ़ती जा रही है हमें सभी के लिए समुचित रोजगार की व्यवस्था देखनी है। समुचित रोजगार के सुलभ होने के लिए न सिर्फ नए रोजगार पैदा करने की जरूरत है वरन उपलब्ध रोजगार के लिए उचित वितरण पर भी हमारा ध्यान होना चाहिए। एक व्यक्ति के पास एक से अधिक रोजगार होना मुझे लगता है रोजगार का समुचित वितरण नहीं है।
एक व्यक्ति के लिए रोजाना ही एक शिफ्ट से अधिक काम होना या करना घातक है।
किसी भी प्रकार का ओवरटाइम दो रोजगार और वेतन के दृष्टिकोण से भी उचित नहीं है। पहला यह किसी दूसरे व्यक्ति से उसका रोजगार छीन कर पहले से रोजगार प्राप्त व्यक्ति को देता है। दूसरा, ओवरटाइम इस बात का द्योतक है कि पहले व्यक्ति को अपनी आवश्यकता और क्षमता के अनुरूप रोजगार यदि है भी तो वेतन नहीं है।
अधिक वेतन की मांग के संबंध में प्रायः यह लचर तर्क दिया जाता है कि सब को पैसा कमाने हवस होती है और पैसा किसे बुरा लगता है। यह एक अतिपूंजीवादी तर्क है और वेतन संबंधी मोल भाव के समय कर्मचारी वर्ग को दबाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। वास्तविकता के धरातल पर हर कोई अपने योग्यता और शारीरिक क्षमता के अनुपात में ही आय की आशा करता है। मोलभाव के लिए अधिक मांगना एक तरीका भर है परंतु हर किसी को बाजार के अंदर ही रहना है अतः अनावश्यक मांग संभव नहीं है।
आज जबकि कर्मचारी संगठनों को साम्यवादी, समाजवादी और राष्ट्रविरोधी कहकर नकारा जा चुका है, एकल रूप से कर्मचारी अपने वेतन भत्ते के लिए उचित रूप से मोल भाव करने में अक्षम रहता है। यह स्थिति न सिर्फ उस एकल कर्मचारी के लिए घातक है वरन उस समान रोजगार के लिए उपलब्ध और इच्छुक हर उम्मीदवार के लिए निचला मापदंड तय कर देती है। एक प्रकार एक अच्छा भला रोजगार के लचर अर्ध रोजगार में बदल जाता है। ऐसे में कर्मचारी को न चाहते हुए भी ओवरटाइम करना पड़ता है।
इस कुचक्र से हम संसाधन और रोजगार होते हुए भी एक अनचाही बेरोजगारी पैदा कर देते हैं। कुल मिलकर आठ से अधिक घंटे काम करने का कोई भी विचार बात न सिर्फ काम कर रहे कर्मचारियों और उनके परिवार के शोषण को बढ़ावा देता है, बल्कि कृत्रिम रूप से बेरोजगारी पैदा करता है।
किसी भी प्रकार की बेरोजगारी हानिकारक है। बेरोजगारों को अपराध का रास्ता चुनते देखा जाता रहा है। ऐसे में कृत्रिम बेरोजगारी को घातक ही कहा जाएगा।