क से… …


मैंने पढ़ना चाहा क से कला
उसने कान में कहा क से कलुआ
निपोरी हुई खींसे मेरे दिल में चुभ गई
उसका रंग मुझ से दबता था
अगले दिन मैं उसे देखकर मुस्कुराया
और एक और अगले दिन हँसा देखकर अपने श्याम वर्ण मित्र को
हम दोनों हँसते रहे देर तक
हँसते-हँसते … …।

मैंने पढ़ना चाहा क से कटहल
उसने कान में कहा क से कटुआ
निपोरी हुई खींसे मेरे दिल में चुभ गई
मेरा कोई अंग कटा न था
मैंने देखा उसका छिदा हुआ कान
उस पल मैं उसे देखकर मुस्कुराया
उसके थूथन से मुस्कुराहट उतर गई और निगाह जम गई
उस शाम एक मित्र ने बताया उसे वह कटुआ कहता है
हम दोनों हँसते रहे देर तक
हँसते-हँसते … …।

मैंने पढ़ना चाहा क से कंज
उसने कान में कहा क से कंजर
निपोरी हुई खींसे मेरे दिल में चुभ गई
उसने इस बार आँख दबाई एक
और होंठ भी एक ओर
वह और मैं देखते रहे
अजनबी उत्तर-आधुनिक दुनिया में
पीछे दबकर बैठे
झुके हुए सिर को
हम दोनों हँसते रहे देर तक
हँसते-हँसते … …।

मैंने पढ़ना चाहा क से कमान  
उसने कान में कहा क से कमीन
निपोरी हुई खींसे मेरे दिल में चुभ गई
उसने इस बार आँख दबाई एक और होंठ भी एक ओर
वह और मैं देखते रहे
पीछे दबकर बैठे झुके हुए सिर को
जिसका कंधा झुका हुआ था
हम दोनों हँसते रहे देर तक
हँसते-हँसते … …।

मैंने पढ़ना चाहा क से कर्मफल
उसने कान में कहा क से कर्मकाण्ड
कोई नहीं हँसा न उदास हुआ
मैंने सुना एक अट्टहास
फिर एक और एक और
उसके कर्मकाण्ड की थाली में
इज़रायल के नक्शे पर शोभायमान था हिटलर
हम दोनों सुनते रहे देर तक
अट्टहास-अट्टहास… …।

उसके यहूदी नहीं कराते थे ख़तना
उसके यहूदी रखते थे हजार फ़रिश्ते
उसके यहूदी के ख़ुदा हिटलर थे।

उसने पढ़ना चाहा क से कलश
मैंने कान में कहा क से कलुषित॥

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