होली का संस्कृतितत्त्व


होली को जब भी रंगों का त्यौहार कहा जाता है, हम धर्म की बात नहीं, बल्कि संस्कृति की बात कर रहे होते हैं| होली, जैसा कि नाम से मालूम होता है – बुआ होलिका के दहन और भतीजे प्रहलाद के बच जाने का उत्सव है| यह होली की धार्मिक कथा है| रंगोत्सव के रूप में कृष्ण और राधा की होली का वर्णन अवश्य मिलता है| राधा कृष्ण और गोप-गोपियों की यह होली, धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि उस समय की सांस्कृतिक सूचना और उसके सांस्कृतिक अनुसरण की परंपरा मात्र है| यही कारण है, कृष्ण को गीता के कृष्ण के रूप में देखने वाले भक्त प्रायः मथुरा-वृन्दावन-बरसाना-नंदगाँव के कृष्ण को जानने समझने में विचलित रहते हैं| होली के राधा कृष्ण मानव मात्र के राधा कृष्ण हैं|

आज होली, धार्मिक अनुष्ठान नहीं, जनपरम्परा से मनाया जाने वाला त्यौहार है| जनमानस के लिए होलिकादहन का दिन पञ्चांग में दर्ज प्रविष्ठी मात्र है| त्यौहार का मूल और पूजा का मुख्य दिन होने के बाद भी, न छुट्टी की मांग है, न पूजा का विशेष आग्रह| होलिकादहन दहन का मुहूर्त प्रायः अखबारों की रद्दी का वजन बढ़ाता है| धार्मिक रूप से होली का उप-त्यौहार होने पर भी धूल का दिन बड़ी होली के नाम से सर्वमान्य है| इस बड़ी होली को लेकर ही सारी छुट्टियाँ, सारे तामझाम, कथा किवदंतियां हैं| यह सांस्कृतिक पर्व है, जो तकनीकि रूप से फिलोरा दौज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया से लेकर रंग पंचमी (चैत्र कृष्ण पंचमी) तक जाता है| यदि आप भोजन सम्बन्धी परंपरा पर ध्यान देंगे तो वरक, पापड़, बड़ियाँ, मंगोड़ी, कांजी, बड़े, गोलगप्पे की तैयारियां काफी पहले से शुरू हो जाती हैं|

यह पर्व है, धर्म हाशिये पर है और संस्कृति मुख्यधारा में| यह पर्व है जो आस्तिक नास्तिक हर्ष-उल्लास से मना सकते हैं|

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अनगढ़ दाढ़ी और भेदभावी पूर्वधारणाएँ


1इतनी बुरी तरह से जन मानस में घर कर चुकीं हैं कि जब तक खुद उसका शिकार नहीं होते, हमें इस भेदभाव का बोध नहीं होता|

अभी हाल में मैंने अपने शौक के लिए दाढ़ी बढ़ाने का निर्णय लिया| अब मेरी नई नवेली अनगढ़ दाढ़ी को भी बन ने संवरने की जरूरत होती है| इस से पहले कि कैंची अपना काम करती, मैंने सोशल मीडिया 2पर एक फोटो डाल दिया| उस पर आई टिप्पणियाँ हमारे समाज के पूर्वधारणाएं खुलकर सामने रखतीं हैं|

इन टिप्पणियों की मानें तो अनगढ़ दाढ़ी में आप खतरनाक अपराधी, गैंगस्टर, आतंकवादी, जिहादी, मुस्लिम, सिख, या फिर घने – बुद्धिजीवी ही हो सकते हैं|

मुझे यह मानने में दिक्कत नहीं हैं की अनगढ़ दाढ़ी बदसूरत लग सकती है| परन्तु क्या अनगढ़ दाढ़ी को अपराध या धर्म से जोड़ा जाना उचित है?

पाप और अपराध


 

धर्म का लक्ष्य हमें मोक्ष की ओर ले जाना हैं| यदि हम ध्यान से समझें तो धर्म का अंतिम लक्ष्य सृष्टि के समस्त जीव; मानव, पशु, कीट, पादप, जीवाणु और विषाणु को मोक्ष दिला कर सृष्टि को समापन तक ले जाना है|

क्या राज्य का लक्ष्य मोक्ष है? नहीं; राज्य का मूल लक्ष्य समाज के सतत संचालन और सुरक्षा में निहित है|

राज्य वर्तमान में देखता है और धर्म भविष्य पर ध्यान रखता है| यही मूल अंतर राज्य को धर्म से अलग करता है| इसके विश्लेषण से आप पाते हैं कि यही अंतर पाप को अपराध से अलग करता है| पाप मोक्ष को रोकता है और अपराध सामाजिक सततता और सुरक्षा को|

राज्य के कानूनों में अनेक तत्व धर्म के नियमों से मेल रखते हैं| इसके कई कारण हैं: १.कुछ  नकारात्मक प्रक्रियाएँ दोनों प्रकार के लक्ष्य में बाधा डालतीं हैं; २. अधिकतर प्राचीन विधि – विशेषज्ञ धर्म गुरु भी रहे हैं; ३. अनेक व्यक्ति धर्म व् राज्य विरोधी कार्यों से सत्ता पाते रहे हैं और अपनी सामाजिक स्वीकृति के लिए राजा के ईश्वरीय प्रतिनिधि होने का सिद्धांत गढ़ते रहे हैं|

इन्ही कारणों से राज्य कानूनों में आज भी ऐसे तत्व विद्यमान हैं जिनका अपराध अथवा सामाजिक सततता और सुरक्षा से कोई लेना देना नहीं हैं| उदहारण के लिए: आत्महत्या; समलैंगिक सम्बन्ध; विवाह (धार्मिक प्रक्रिया); धार्मिक मान्यताओं का रक्षण; आदि|

साथ ही हम राज्य कानूनों में अनेक तत्व देखते हैं जिन्हें हम अनेक बार धर्म विरोधी समझते हैं| उदहारण के लिए: सती – प्रथा; देव – दासी; दहेज़; आरक्षण; धर्म परिवर्तन; पर्दा; खतना; आदि|

मेरे सामने प्रश्न है; अपराध क्या है?

मेरे विचार से अपराध एक ऐसा कृत्य, जिसके कारण किसी व्यक्ति को तन, मन और धन की ऐसी हानि पहुँचती हो, जिस के कारण से सामाजिक सततता और सुरक्षा में बाधा उत्पन्न होती हो अथवा हो सकती हो|

हम किसी भी ऐसे कृत्य को अपराध नहीं ठहरा सकते जिससे इस परिभाषा की दोनों शर्त पूरी न होतीं हों| “सहमतिपूर्ण समलैंगिक यौन सम्बन्ध” दोनों में से किसी भी शर्त को पूरा नहीं करते|