भारतीय रेलवे जनता खाना


बचपन में जब भी लम्बी दूरी की यात्रा पर जाना होता – पूड़ी, आलू टमाटर की सूखी सब्जी, आम, मिर्च या नीबू का आचार और सलाद के नाम पर हरी मिर्च या प्याज हमेशा साथ होती| पता नहीं क्यों यूँ लगता था कि सफ़र के दौरान इस खाने का स्वाद कुछ अलग ही बढ़ जाता है| प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के आर्थिक सुधार और छठे वेतन आयोग की सिफ़ारिशें देश में कुछ ख़ुशहाली लायीं और पुरानी ख़ुशियाँ छिनने लगीं| भारतीय रेल की पेंट्री और रेलवे प्लेटफ़ॉर्म का महंगा खाना खरीदने के पैसे लोगों के पास आ गए| कहिये कि संदूक का वजन कम करने के चक्कर में जेब का वजन भी भारी पड़ने लगा और हल्का किया जाने लगा|

भारतीय रेल नेटवर्क में मिलने वाले सभी खानों में स्वाद, मूल्य और उपलब्धता की दृष्टि से अगर किसी खाने का चुनाव करना हो तो जनता खाना उत्तम विकल्प हो सकता है| जिन दिनों मैंने जनता खाने का पैकेट पहली बार खरीदा तब यह सात या दस रुपये का था| आज भी यह पंद्रह या बीस रूपये में आ जाता है| जिन दिनों मैं अलीगढ़ – दिल्ली रोजाना यात्रा करने लगा, उन दिनों मुझे जनता खाने से प्रेम हुआ|  मुझे घर जल्दी छोड़ना होता था, अतः लगभग रोज जनता खाना खरीदता था|

भारतीय रेल का जनता खाना भारतीय खाद्य आदतों का परिचायक है| थोड़ा अच्छी तरह सिकी हुई पुड़ी, मिर्च वाली आलू टमाटर की सूखी सब्जी, मिर्च| पैकेट का आधिकारिक वजन लगभग डेढ़ सौ ग्राम – सात पूड़ी के साथ| साथ में मिलने वाली हरी मिर्च जिस प्रकार इन पैकेट के बाहर झांकती है, उसका भी अलग आकर्षण है| आम बाजारू आलू सब्जी से अलग इसमें तेल बहुत कम है और चूता तो लगभग नहीं ही है| गाढ़ी आलू सब्जी में पानी रिसने का भी प्रश्न नहीं अतः इसके पैकेट को लोग गोद में रखकर कहते खाते हुए भी मिल जायेंगे|

जनता खाना लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री काल की धरोहर है| आप लालू प्रसाद यादव को राजनीतिक और निजी कारणों से नकारने का प्रयास कर सकते हैं, परन्तु उनके समय का कुशल रेल प्रबंधन का बिना शक सराहनीय रहा है| भारतीय रेल में खाना बेचना सरकार के लिए भले ही सरल हो मगर देश भर में इस काम में लगे छोटे विक्रेताओं के लिए परिवार के जीवन – मरण का प्रश्न है| एक विक्रेता एक मिनिट में चार से अधिक ग्राहक को सेवा नहीं दे पाता| एक स्टेशन पर दो मिनिट से कम देर रुकने वाली ट्रेन में जनता खाने के ग्राहक प्रायः कम ही होते हैं| ऐसे में संघर्ष बढ़ जाता है| ट्रेन समय से दो-एक घंटा देर से चल रही हो, पांच मिनिट या अधिक रूकती हो और निम्न मध्यवर्ग की सवारियों का बाहुल्य हो –  यह हर छोटे विक्रेता के जीवन यापन के लिए आवश्यक है| इन आदर्श परिस्तिथियों में एक ट्रेन से एक विक्रेता पांच मिनिट में बीस पैकेट बेचकर चालीस रुपये बनाने की उम्मीद कर सकता है|

एक दिन अचानक मैंने जनता खाना लेना बंद कर दिया| अलीगढ़ जंक्शन के चार नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर मगध एक्सप्रेस आना चाहती थी| सिंग्नल और अनाउंसमेंट हो चुका था| एक भूखा पेट वेंडर दो नंबर प्लेटफ़ॉर्म से लाइन पर कूदकर तीन नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर जा चढ़ा और चार पांच जनता खाना डिब्बे लाइन पर ठीक वहां जा गिरे जहाँ नहीं गिरने चाहिए थे| ऐसे की किसी दिन को देखकर भारतीय रेलवे को बायो-टॉयलेट का विचार आया होगा| चार डिब्बे को छोड़ने का अर्थ अगले एक घंटे की कमाई गवां देना था| वेंडर वापिस पलटा, गिरे हुए डिब्बे संभाले और भागकर चार नंबर पर रूकती हुई मगध एक्सप्रेस के अनारक्षित डिब्बे के अन्दर गरम खाना – गरम खाना चिल्ला रहा था| भाषण मत दीजिये – अपने नामचीन विदेशी भोजनालय का दो दिन बासा खाना खाते हुए नीचे दिए हुए चित्र को देखिये और लालू प्रसाद के समाजवाद और नरेन्द्र मोदी के पूंजीवाद पर बहस करते रहिए| [i] [ii] [iii] [iv] [v] [vi] [vii]

[i] http://hindi.webdunia.com/national-hindi-news/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B9-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%9F-107042100105_1.htm

[ii] https://www.bhaskar.com/news/CHH-RAI-HMU-MAT-latest-raipur-news-042003-2972594-NOR.html

[iii] http://paisa.khabarindiatv.com/article/tag/janta-khana/

[iv] http://www.amarujala.com/uttar-pradesh/ghaziabad/janta-food-eat-carefully

[v] http://naidunia.jagran.com/madhya-pradesh/ratlam-railway-naptoll-janata-khana-1019510

[vi] http://indianexpress.com/article/trending/this-is-serious/dead-lizard-found-in-veg-biryani-on-train-tweeple-hit-out-at-indian-railways-4767682/

[vii] http://www.financialexpress.com/economy/cag-report-calls-railway-food-unfit-for-humans-10-steps-indian-railways-says-it-is-taking-to-ensure-quality/776532/

Advertisement

यात्रा तकनीकि


लम्बी यात्रायें हमेशा ही हमें लुभाते रहीं हैं| बचपन के दिन, जब ट्रेनें आज के मुकाबले धीरे चला करतीं थीं; वक़्त आसानी से कटता था| हर स्टेशन पर आते जाते लोग, हर बार सामान के लिए जगह बनाना, परिचय लेना, दोस्ती करना, पंखा झलना, खिड़की के बाहर मिलकर देखना, ताश खेलना, मिल बाँट कर खाना, सुख – दुःख बाँटना, एक दुसरे के पते लेना, कभी कभी चिठ्ठी पत्री करना और फिर भूल जाना| या कहिये सदा के लिए यादों में बसा लेना|

वक़्त बदलता है, बदल गया| वक़्त के साथ तकनीकि बदल गई| लगता है; आज बोतल बंद पानी ख़रीदा जाता है, डिब्बाबंद खाना खाया जाता है और कान में मोबाइल की लीड लगा कर गाने सुनते हुए सो जाते हैं|

मगर इंसान नहीं बदला| आज भी हम एक दुसरे से मिलते हैं, मुस्कराते हैं, अगर आपस में कुछ महसूस करते हैं तो बतलाते हैं| हालचाल, दोस्ती, मिलकर हल्का फुल्का खाना और मोबाइल पर मिलकर गाने सुनना| यदि सफ़र लम्बा हुआ तो मिलकर मोबाइल या लैपटॉप पर एक दो फ़िल्में देखना वरना एक दुसरे को पेनड्राइव में फिल्मों और गाने का उपहार दे देना| जब भी कहीं नेटवर्क में साथ दिया तो एक दूसरे को फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देना, ट्विटर पर फॉलो कर लेना| यात्रा के पलों में मिलकर खींचे गए फोटोग्राफ में मिलकर टैग करना| कुछ एक मजेदार विडियो बना कर सोशल मीडिया में अपनी यादों में संजो लेना|

तकनीकि ने इंसान को नहीं बदला, तौर तरीके बदल गए हैं, आदतें बदल गई हैं| बदलती दुनिया में छोटे छोटे गाँव विस्तार पा रहे हैं तो दुनिया मोबाइल में सिमट आई है| मोबाइल सबकी पहुँच में है मगर छोटा है और लैपटॉप सफ़र में ले जाने के लिए अभी बड़ा है|

वक़्त और तकनीकि बदल रही है| वक़्त पर किसका जोर है? मगर तकनीकि; उसे इंसान को बदलने की जगह, इन्सान के हिसाब से खुद को बदलना होगा|

सफ़र मजेदार हो जाये अगर आपके पास हल्का फुल्का लैपटॉप हो जो लैपटॉप होकर भी टेबलेट हो और टेबलेट होकर भी मोबाइल| जिसे लेकर आप कहीं भी दौड़ सकें और कहीं भी रूककर उसमें से एक खिड़की खुल जाये… प्यार की, दोस्ती की, मुस्कराहट की, गाने गुनगुनाने की, चिड़िया चहचहाने की, फिल्मों की, सुख दुःख बाँटने की, सोशल मीडिया की, टैगिंग की, शेयरिंग की|

क्या हो कि दिन सुबह हो…

[विशेष: यह आलेख इंडीब्लॉगर द्वारा आयोजित “Time to Transform” प्रतियोगिता और ‘ASUS Transformer Book T100” के बारे में विचार करते हुए लिखा गया है]