पलायन हेतु दबाब


विश्व-बंदी २७ मई – पलायन हेतु दबाब

मध्यवर्ग के पूर्वाग्रह सदा ही चिंतित करने वाले रहे हैं परन्तु करोना काल में यह अपने वीभत्स रूप में सामने आया है| गरीब तबके के तो मध्यवर्ग का वर्गभेद पहले से जगजाहिर रहा ही था परन्तु इस बार यह अपने खुद के लिए समस्या खड़ी करता रहा है| चिकित्सकों और चिकित्साकर्मीयों के साथ दुर्व्यवहार के समाचार आये दिन देश भर से सामने आए| इसके अतिरिक्त पुलिसवालों, घरेलू कामवालियों, आदि को भी इसका सामना करना पड़ा| परन्तु वर्ग संघर्ष का सबसे दुःखद पहलू एक बार फिर से निम्नवर्ग को झेलना पड़ा| मजदूरों का पलायन मुख्यतः इसी वर्ग संघर्ष और कई प्रकार के पूर्वाग्रह का परिणाम है|

कई दिन तक मजदूरों के पलायन के बारे में अच्छे या बुरे विचार जानने के बाद यह समझ आता है कि सरकार के प्लान अ के असफल होने से अधिक यह जनता के प्लान अ की सफलता है|

जिस दिन तालाबंदी की घोषणा हुई तब न तो सरकार ने और न ही मेरे जैसे आलोचकों ने इस बात की कोई बड़ी सम्भावना देखी थी कि मजदूरों को इतना कठिन कदम उठाना पड़ेगा| तालाबंदी के चार घंटे के नोटिस पर मेरी चिंता भिखारियों, बेघरों और नशेड़ियों को लेकर तो थी परन्तु ईमानदारी से कहता हूँ कि मैंने मजदूरों के बारे ने कुछ बड़ा नहीं सोचा|

परन्तु मेरे सामने अगली सुबह बड़ा प्रश्न था – क्या मैं अपनी घरेलू कामगार को उसका मासिक वेतन देने जा रहा हूँ और कब तक? निश्चित रूप से मेरी पत्नी ने उसे पहले शुक्रवार को पूरे महीने के वेतन के वादे के साथ पंद्रह दिन की छुट्टी पर भेज दिया था| परन्तु चिंता यह थी कि क्या होगा जब लॉक बढ़ेगा| दूसरा प्रश्न यह कि क्या हम अपने प्रेस वालों, मालियों बिजली की मरमम्त करने वालों आदि कामगारों को जो काम के आधार पर पैसा लेते हैं कुछ काम देने वाले हैं या कोई और मदद करने वाले हैं? एक हफ्ते में यह साफ़ हो चुका था मेरी आय अगले साल दो साल के लिए घटने वाली है| एक सफ़ेदपोश स्व रोजगार में लगा हुआ मैं अगर अर्ध-बेरोजगार होने वाला हूँ तो यह दैनिक रोजगार वाले श्रमिक क्या करेंगे| इनके काम और दाम जा चुके थे और यह लोग अपने यजमानों और आसामिओं के सामने लाचार खड़े थे| जब मैं निराश था तो इनका क्या हाल रहा होगा|

दो दिन बीतते बीतते समाचार चिकित्सकों आदि के प्रति दुर्व्यवहारों की खबर ला रहे थे| यह मध्यवर्ग के भीतरी जीवन संघर्ष था| उन्हें घरों के निकला गया था| यहाँ तक कि माँ – पत्नी- पति और पिता तक ने उन्हें घर न आने की कसम दे दी थी|

जो समाचार नहीं आए – वो इन मजदूरों के बारे में थे – बेरोजगार किरायेदार जब खैराती खाने के कतार में सपरिवार खड़ा होगा तो क्या लाएगा – करोना| यह सामान्य तर्क था जिसे किसी ने सामने नहीं रखा – सिर्फ़ अमल किया| यह पलायन का एक प्रमुख कारण है| बाकि भेड़चाल तो है ही|

मैं इसमें राजनैतिक दांव पेंच नहीं देखता क्योंकि हर दल किसी न किसी राज्य में सत्ता में है और विपक्ष में भी|

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भीषण लू-लपट और करोना


विश्व-बंदी २६ मई – भीषण लू-लपट और करोना

जब आप यह पढ़ रहे होंगे तब भारत में करोना के डेढ़ लाख मामलों की पुष्टि हो चुकी होगी| कोई बुरी खबर नहीं सुनना चाहता| मुझे कई बार लगता है कि लोग यह मान चुके हैं कि यह सिर्फ़ दूसरे धर्म, जाति, वर्ग, रंग, राज्य में होगा| सरकार के आँकड़े कोई नहीं देखता न किसी को उसके सच्चे या झूठे होने का कोई सरोकार है| आँकड़ों को कलाबाजी में हर राजनैतिक दल शामिल है हर किसी की किसी न किसी राज्य में सरकार है| कलाबाजी ने सरकार से अधिक समाचार विक्रेता शामिल हैं जो मांग के आधार पर ख़बर बना रहे हैं| जनता शामिल है जो विशेष प्रकार कि स्वसकरात्मक और परनकारात्मक समाचार चाहती है|

इधर गर्मी का दिल्ली में बुरा हाल है| हार मान कर कल घर का वातानुकूलन दुरुस्त कराया गया| चालीस के ऊपर का तापमान मकान की सबसे ऊपरी मंजिल में सहन करना कठिन होता है| खुली छत पर सोने का सुख उठाया जा सकता है परन्तु सबको इससे अलग अलग चिंताएं हैं|

मेरा मोबाइल पिछले एक महीने से ख़राब चल रहा है परन्तु काम चलाया जा रहा है – इसी मैं भलाई है| तीन दिन पहले एक लैपटॉप भी धोखा दे गया| आज मजबूरन उसे ठीक कराया गया| उस के ख़राब होने में गर्मी का भी दोष बताया गया|

इस सप्ताह घर में गृह सहायिका को भी आने के लिए कहा गया है| क्योंकि पत्नी को उनके कार्यालय ने सप्ताह में तीन दिन कार्यालय आने का आदेश जारी किया है|

यह एक ऐसा समय है कि धर्म और अर्थ में सामंजस्य बैठना कठिन है – धर्म है कि जीवन की रक्षा की जाए अर्थ विवश करता है कि जीवन को संकट मैं डाला जाए| मुझे सदा से घर में कार्यालय रखने का विचार रहा इसलिए मैं थोड़ा सुरक्षित महसूस करता हूँ| मैं चाहता हूँ कि जबतक बहुत आवश्यक न हो घर से बाहर न निकला जाए| मैं अति नहीं कर रहा चाहता हूँ कोई भी अति न करे| न असुरक्षित समझने की न सुरक्षित समझने की| गर्मी और करोना से बचें – भीषण लू-लपट और करोना का मिला जुला संकट बहुत गंभीर हो सकता है|

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विश्व-बंदी २५ मई – फ़ीकी ईद


ईद कैसी, ईद ईद न रही| उत्साह नहीं था| कम से कम मेरे लिए| देश क्या दुनिया में एक ही चर्चा| क्या सिवईयाँ क्या फेनी क्या कोई पकवान क्या नाश्ते क्या मुलाक़ातें क्या मिलनी? इस बार तो कुछ रस्म अदायगी के लिए भी नहीं किया| बस कुछ फ़ोन हुए कुछ आए कुछ गए|

न होली पर गले मिले थे न ईद पर| कोई संस्कृति की दुहाई देने वाला भी न रहा – जो रहे वो क्रोध का भाजन बन रहे हैं| कोई और समय होता तो गले मिलने से इंकार करने वाला पागल कहलाता| दूर का दुआ-सलाम प्रणाम-नमस्ते ही रह गया| चलिए गले मिलें न मिलें दिल तो मिलें| मगर हर मिलने वाला भी करोना विषाणु दिखाई देता है| बस इतना भर हुआ कि लोगों की छुट्टी रही| शायद सबने टीवी या मोबाइल पर आँख गड़ाई और काल का क़त्ल किया|

हिन्दू मुसलमान सब सहमत दिखे – जिन्दगी शुरू की जाए| कोई नहीं पूछना चाहता कितने जीते हैं कितने मरते हैं, कितने अस्पताल भरे कितने खाली| मुंबई में मरीज प्रतीक्षा सूची में स्थान बना रहे हैं – मरीज क्या चिकित्सक चिकित्सा करते करते प्रतीक्षा सूची में अपना नाम ऊपर बढ़ने की प्रतीक्षा कर रहे हैं| देश और दिल्ली की हालत क्या है किसी को नहीं समझ आता| बीमार हो चुके लोगों का आँकड़ा डेढ़ लाख के पार पहुँचने वाला है| मीडिया और सरकार गणित खेल रही है| मगर बहुत से लोग हैं जो इस आँकड़े से बाहर रहना चाहते हैं या छूट गए हैं| सरकारी तौर पर खासकर जिनमें कि बीमारी मिल रही है पर कोई लक्षण नहीं मिल रहा|

आज छुट्टी थी, मगर जो लोग सुबह ग़ाज़ियाबाद से दिल्ली आये या गए शायद शाम को न लौट पाएं – सीमा फिर नाकाबंद हो चुकी है| घर से निकलें तो लौटेंगे या नहीं कोई पक्का नहीं जानता| नौकरानी को बुलाया जाए या न बुलाया जाए नहीं पता| न बुलाएँ तो न उसका काम चले न हमारा|

पीछे मंदिर में लोग इस समय शाम की आरती कर रहे हैं| मुझे मंदिर के घंटे हों या मस्जिद की अज़ान मुझे इस से अधिक बेमानी कभी नहीं लगे थे| मगर उनके अस्तित्व और प्रयोजन से मेरा इंकार भी तो नहीं है|

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