तीन लप्रेक


राजकमल प्रकाशन ने अब तक अपनी लप्रेक श्रृंखला में तीन लघु प्रेम कथाएं प्रकाशित कीं हैं| रवीश कुमार, गिरीन्द्रनाथ, और विनीत कुमार तीनों ने लगभग समान समय में मगर अलग अलग निगाह से प्रेम को देखा, समझा, और परखा है| मगर तीनों लप्रेक प्रेम के भिन्न आयाम भिन्न दृष्टिकोण से दर्शाते हैं| तीनों लप्रेककार बिहार में पीला – बढ़े हैं और दिल्ली पहुंचकर एक नई दुनिया, नए सम्बन्ध और नए प्रेम को समझते हैं| इत्तिफ़ाकन तीनों मीडिया जगत से जुड़े रहकर मीडिया के मोह मुक्त हैं| दुनिया को देखने का उनका तरीका आम इंसान के तरीके के मिलताजुलता मगर भिन्न है| मगर रिपोर्टिंग जैसी निर्लिप्प्ता का भाव है तो वो कोमल हृदय भी है जो प्रेम को जीता है और जिन्दगी में प्रेम की खुशबू और रंगत को जानता है|

रवीश कुमार

रवीश प्रेम को शहर की तरह या शहर को प्रेम से देखते हैं, | उनके यहाँ प्रेम निर्जीव शहर को एक पहचान देता है और शहर का हर जर्रा अपनीं अलग शख्सियत रखता है| वो प्रेम के रूप को शहर के नक़्शे के साथ बदलते महसूस कर सकते हैं| रवीश दीवारों से बातें करते, सड़कों के साथ टहलते, धुएं के साथ साँस लेते, मोड़ों के साथ करवट बदलते और भीड़ के वीराने में जिन्दगी की आहट पहचानते हैं| रवीश प्रेम में खुद नहीं जकड़े हैं, मगर प्रेम की खुशबू से सरोबार हैं| वो नाट्यशाला में बैठे प्रेक्षक हैं जो नाटकीयता के साथ ख़ुद को खोता चला जाता है, मगर नाटक नहीं बनता|

गिरीन्द्रनाथ

गिरीन्द्रनाथ प्रेम में हैं| उनका प्रेम उन्हें जी रहा है| वो मोह में नहीं हैं, प्रेम में नहीं हैं – वो कर्तव्य में है, वो जमीन की खुशबू में हैं, वो समाज में हैं; वो करवट बदलती जिन्दगी के पहलुओं में हैं| प्रेम उनका संबल हैं| गिरीन्द्रनाथ प्रेम की कहानियों में जिन्दगी को और जिन्दगी की कहानी में प्रेम को कहते हैं| प्रेम कहीं रचबस गया हैं उनमें मगर वो खुद कहीं और हैं| इस मायने में उनका लप्रेक प्रेमकथा नहीं लगता मगर प्रेम से भरा हुआ है| गिरीन्द्रनाथ जीवन से जुड़कर प्रेम को महसूस करते और प्रेम से जुड़कर जीवटता को पाते हैं| गिरीन्द्रनाथ माटी से जुड़े हैं, उनकी माटी सोना हैं मगर उनका प्रेम वो प्लेटिनम है जो हीरे को जकड़ – पकड़ सकता है| प्रेम गिरीन्द्रनाथ को जमीन – जोरू – जीवन – जीवटता समाज और सम्बन्ध से जोड़ता है| प्रेम उन्हें जीवन में स्वतंत्र करता है, उन्हें आत्मा देता हैं मगर धड़कन नहीं देता| गिरीन्द्रनाथ गाँव को अभी और देखना चाहते है| मगर गाँव को देखने के लिए उनके पास वो पराई निगाह नहीं है वो रवीश और विनीत के पास शहर को देखने के लिए है| गाँव उनके अन्दर है| यह गिरीन्द्रनाथ को दोनों से भिन्न करता और धरातल से कहीं अधिक जोड़ता है| उनके यहाँ गाँव को लेकर निर्लिप्तता नहीं है| साथ ही शहर को लेकर उनकी संलिप्प्त्ता भी बहुत तटस्थ है|

विनीत कुमार

विनीत कुमार, रवीश कुमार की तरह प्रेम शहर से प्रेम करते हैं, जो दिल्ली शहर है| वो दिल्ली जो कदम कदम पर बदलता है, रंग, रंगत, हवाएं फिजायें बदलता है| रवीश का लप्रेक भूगोल है तो विनीत का लप्रेक समाजशास्त्र| विनीत सामाजिक संघर्ष, आर्थिक संकटों, वर्ग –संघर्षों, स्त्री – पुरुष प्रेम, स्त्री – पुरुष संघर्ष और समाज की समझ पर निगाह रखते हैं| विनीत प्रेम के अन्य भावनात्मक पहलूओं पर चर्चा करते हैं, मगर प्रेम केंद्र में रहता है| उनका प्रेम विवादों – विक्षोभों – विरोध – विरोधाभास, सबके साथ हिलते मिलते जुलते टकराते टहलते चलता है| विनीत संवादों से भावों को समझते है जबकि रवीश भंगिमाओं से  भावों को पकड़ते हैं| विनीत प्रेम को ही नहीं अपने सारे परिवेश को खुद जी रहें हैं|

रवीश परिवेश के साथ जी रहे हैं, गिरीन्द्रनाथ परिवेश में जी रहे हैं, विनीत परिवेश को जी रहे हैं| यहीं उनके लप्रेक का विभेद है|

विक्रम नायक

तीनों लप्रेक में सबसे महत्वपूर्ण रचनाकार विक्रम नायक हैं| उनका अपना अलग रचना संसार है| एक चित्र से वह अपनी अलग लघुकथा कहते हैं| यदा कदा चित्रांकन शब्दांकन की कथा को ही वाणी देता है, प्रायः उत्तरकथा, पूरककथा और प्रतिकथा कहता है| विक्रम शब्दकारों के साथ सामंजस्य रखने में बखूबी कामयाब हुए हैं तो भी अपने ऊपर उन्होंने शब्दकार को हावी नहीं होने दिया है| “इश्क़ का शहर होना” में विक्रम स्वतंत्र दृष्टि से शहर देख रहे है, दिल्ली देखने के बहाने दिल्ली का और दिल्ली में प्रेम देख, रचा और बसा रहे हैं| “इश्क़ में माटी सोना” में वह बढ़ती आपसी समझ के साथ अधिक वैचारिक स्वतंत्रता और कल्पनाशीलता प्राप्त करते हैं| उनका व्यंगकार उभर कर समकालीन परिवेश पर कटाक्ष करता है, प्रेम को रिसते और रीतते हुए समाज में घुलने  मिलने देता है| “इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं” तक आते आते वो पैनी निगाह से संघर्ष को समझते हैं| मुझे लगता है, लप्रेककार अब उनके साथ घुलमिल गए हैं| विक्रम अपने चित्रों में अधिक गहराई तक जाने लगे हैं| विक्रम नायक के चित्रांकन को स्वतंत्र रूप से पढ़ा जा सकता है|

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इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं


तीसरा लप्रेक “इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं” सामने है| यह पुस्तक रवीश कुमार के लप्रेक “इश्क़ में शहर होना” और गिरीन्द्रनाथ झा के “इश्क़ में माटी सोना” से कई मायनों में भिन्न है|

अगर मैं विक्रम नायक के शब्द उधार लूँ, तो यह परिपक्व नादानियों की कहानियां हैं| इन कहानियों में विनीत कुमार की स्त्री – पुरुष सम्बन्ध और प्रेम सम्बन्ध के परिपक्व समझ और उनके अन्तरंग विवरण से उनका साम्य उजागर होता है| अधिकतर कहानियों में महिला पात्र स्पष्टतः मुखर हैं| यह कहानियां प्रेम की उस बदलती इबारत की कहानियां है जिसमें स्त्री सजीव, बुद्धिमान, बुद्धिजीवी और सुस्पष्ट है| यहाँ स्त्री समाज के सभी सरोकारों के साथ समान तल पर खड़ी है| पुरुष पात्रों में नए बदलते समीकरणों के प्रति एक लाचारगी, बेपरवाही और नादानी भी झलक जाती है| विनीत कुमार के लप्रेक हल्के – फुल्के होते – होते गंभीर हैं और अपने संवादों के कारण दूर तक मार करते हैं| विनीत कुमार का लप्रेक केवल डिजिटल रोमांस नहीं है बल्कि खुदरा प्यार की थोक खबर है, इसमें उस इक्क की बात है जो मरता हैं| विनीत कुमार इस न मरते इश्क़ को मारते – मारते जीने और जीते जाने की लघुकथा है|

विनीत कुमार उस युवा वर्ग से हैं जो जानता – समझता है, “काफ़ी हाउस में पैसे किसी के भी लगें, कलेजा अपना ही कटता है”| विनीत कुमार का इश्क़ के ब्रेकअप की मौजूदगी में अंकुरित होता और अपनी सभी शर्तों – समर्पणों – और समझदारी में फलता – फूलता है| कहानियाँ अपनी लघुता में सम्पूर्ण हैं और उनके संवाद ज़ुबान पर चढ़ जाते हैं| दो एक संवाद यहाँ प्रस्तुत हैं:

“ब्रेकअप के बाद रिश्तों – यादों को दफ़नाने के लिए अलग से कब्र नहीं खोदने पड़ते”

“जिस शख्स को लोकतंत्र के बेसिक कायदे से प्यार नहीं वो प्यार के भीतर के लोकतंत्र को जिन्दा रख पायेगा?”

“लाइफ में स्ट्रगल के बदले स्टेटस आ जाए तो किसी एक के एक्साइटमेंट को मरना ही होता है”

“उम्र तो मेरी ढल गई न, शौक तो उसी उम्र में ठिठका रहा”

लप्रेक में इश्क़ के बाद सबसे महत्वपूर्ण है, चित्रांकन – विक्रम नायक द्वारा अंकित चित्र कहानियाँ| तीसरे लप्रेक में विक्रम नायक और विनीत कुमार के बीच भाव पूरी भावना के साथ व्यक्त हुए हैं| विक्रम कहानियों को पूरी निष्ठा के साथ पकड़ पाए हैं| लप्रेक में पहली बार मुखपृष्ठ पर इश्क़ अपनी शिद्दत के साथ इसी पुस्तक में आया है| पृष्ठ VIII पर विक्रम अपनी इस रचना की प्रेम – प्रस्तावना एक छोटे से चित्र से रचते हैं| अधिकतर पृष्ठों पर चित्र कहनियों के साथ साम्य रखते हुए अपनी कहानी स्पष्ट और एक कदम आगे बढ़ कर कहते हैं| पृष्ठ 7, 13, 15, 54, 57, 65, 74, आदि पर मेरी कुछ पसंदीदा चित्र कहानियाँ हैं, इसके अलावा भी अनेक बखूबी से चित्रित लप्रेक मौजूद हैं|

“इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं” में इश्क़ के बहुत से नमूने हैं, वह वाला भी जिससे आप आजकल में मिले थे|

पुस्तक: इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं
श्रृंखला: लप्रेक
कथाकार: विनीत कुमार
चित्रांकन: विक्रम नायक
प्रकाशक: सार्थक – राजकमल प्रकाशन
संस्करण: जनवरी 2016
पृष्ठ: 85
मूल्य: रुपये 99
ISBN: 978 – 81 -267 – 2899 – 2
यह पुस्तक अमेज़न पर यहाँ उपलब्ध है|