विश्व-गाँव में स्थानीय कानूनों का विश्वव्यापी प्रभाव


 

जब भी हम किसी भी दूर देश के क़ानून की बात करते हैं तो हमारी निर्लिप्तता का स्तर काफी नासमझी भरा होता है| यह बात में खुद अपने अनुभव से कह रहा हूँ| मैंने कभी नहीं सोचा था कि सात समंदर पार किसी भारतीय के साथ ऐसा कुछ होगा जो उस देश को ही नहीं इस देश को भी झकझोर कर रख देगा| मगर यह भू-मण्डलीकरण का समय है| कानून व्यवस्था को अधिक समय तक राष्ट्रों निजता के साथ नहीं जोड़ा जा सकता| आज के विश्व-गाँव में सुदूर देश के कानून अगर मुझे नहीं तो मेरी आने वाली पीढ़ी को अवश्य प्रभावित कर सकते हैं| अभी इस विषय पर मैं कोई गंभीर विचार विमर्श करने की आवश्कता नहीं समझ पा रहा हूँ परन्तु इसे नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता है|

सविता हलाप्पनावर की आयरलैंड में हुई मृत्यु इसी प्रकार के कुछेक उदाहरणों में से एक है| सविता की मृत्यु आयरलैंड के एक चिकित्सालय में चिकित्सकों द्वारा क़ानून के डर के कारण उचित चिकित्सीय सहायता न दिए जाने के कारण हो गयी थी| कहा जा रहा है कि सविता के गर्भ में स्थित भ्रूण किसी कारणवश नष्ट होने कि कगार पर था और खुद सविता कि जान को खतरा हो गया था, परन्तु चिकित्सकों के द्वारा उन्हें आयरलैंड के भ्रूण हत्या विरोधी कानून के चलते गर्भपात कराने की अनुमति नहीं दी गई| आयरलैंड में इस घटना की जांच जरी है|

इस घटना ने कई सारे प्रश्न खड़े किये जो धर्म का शासन – प्रशासन में अनुचित हस्तक्षेप, विश्व भर में धर्म – निरपेक्ष कानूनों की आवश्यकता, और स्थानीय क़ानून के विश्व्यापी प्रभाव आदि को दर्शाती है|

विश्व भर में जिस प्रकार से आयरिश कानूनों के बारे में चर्चा की गयी है उस से यह साफ़ है कि आज विश्व – गाँव अपने नए वृहद रूप में हमारे सामने है|

१.      एक देश का क़ानून विश्व के किसी भी नागरिक को प्रभावित कर सकता है, अतः स्थानीय क़ानून केवल स्थानीय मामला नहीं है|

२.      स्थानीय कानून बाहरी व्यक्तियों, पर्यटकों, निवेशकों, कामगारों और आमंत्रित प्रतिभाओं को प्रभावित करता है|

३.      स्थानीय कानूनों के गैर-स्थानीय प्रभाव विश्व – व्यापी प्रतिक्रिया को जन्म देते है और राष्ट्र कि छवि पर असर कर सकते हैं|

४.      विश्व- जनमत, स्थानीय जन – मानस को और स्थानीय जन मत, वैश्विक जन – मानस को प्रभावित कर सकता है|

५.      कानूनों को किसी भी प्रकार के धार्मिक प्रभाव से दूर रखा जाना चाहिए|

६.      किसी भी क़ानून को उसके उचित समय पर बना कर प्रभाव में ले आया जाना चाहिए|

७.      सभी कानून समय समय पर पुन्र्विचारित किये जाने चाहिए|

सविता का मामला इस समय का अकेला मामला नहीं है जहाँ पर हमें इस प्रकार के दूर देशीय प्रभाव दिखाई दे रहे हैं| एक अन्य मामले में हाल में ही पश्चिमी देश नार्वे में एक भारतीय दंपत्ति को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें संतान से दूर रहना होगा क्योकि वो लोग बच्चे का जिस प्रकार से लालन-पालन कर रहे थे वह नार्वे के शिशु पालन स्तरों से काफी भिन्न था| इन मामलों में उन देशों के स्थानीय कानून तभी हम बहरी लोंगो को प्रभावित करते है जब हम उनके देश में जाते है| परन्तु हमेशा ऐसा नहीं होता| जब हम अपने देश में बैठे होते हैं, तब भी यह क़ानून हमें प्रभावित करते हैं| स्वित्ज़रलैंड का बैंक सम्बन्धी क़ानून सारे विश्व को प्रभावित करता है|

माना जाता रहा है कि स्विट्जरलेंड में बैंकों को दी गयी विशेष छूटें, विश्व  भर में भ्रष्टाचार फैलाने में मदद करती रही है| अमेरिकी संस्था सीआईए इसे काले धन को वैध बनाने सम्बन्धी गतिविधियों का केन्द्र बताती रही है| साथ ही आरोप है की, विश्व भर के आतंकी संगठन इस व्यवस्था को अपने हित साधने में प्रयोग करते रहे हैं| दरअसल, स्विस बैंक अपने ग्राहकों की सभी जानकारियां गोपनीय रखती हैं, और इस गोपनीयता का उलंघन करने की उन्हें कोई अनुमति नहीं है केवल नयायालय के आदेश पर ही इस प्रकार की जानकारी मुहैया कराइ जा सकती है| स्विस कानून विश्व भर में कर चोरी के मामले में भी सहयोग न करने के लिए बदनाम रहा है|

साथ है इस समय अमेरिका और ब्रिटेन के भ्रष्ट्राचार विरोधी कानूनों को इस प्रकार से बनाया गया है कि वो किसी में अमेरीकी और ब्रिटिश नागरिक या कंपनी या उनसे सम्बन्ध रखने वाले किसी भी व्यक्ति को विश्व में कहीं भी भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होने पर अपने देश में कानूनी कार्यवाही कर सकते हैं|

कुल मिला कर विश्व में आज किसी भी क़ानून को केवल अपने नागरिकों के लिए बनाये गए क़ानून के रूप में नहीं लिया जा सकता है| सभी देशों के क़ानून सारी मानवता को प्रभावित कर सकते हैं|

एक देश के रूप में हमें भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे क़ानून भी दूरगामी प्रभाव रख सकते है और उन्हें इस प्रकार का होना चाहिए कि नागरिक और गैर-नागरिक सभी उन्हें आसानी से समझ सकें और उनका दुरूपयोग न हो सके|

 

 

भारत में इस्लामिक बैंकिंग की संभावनाएँ


 

अब से लगभग चार वर्ष पूर्व वैटिकन ने पश्चिमी देशों के बैंकों से कहा था कि उन्हें इस्लामिक बैंकिंग के सिद्धांतों से आधार पर व्यवसाय करने के बारे में सोचना चाहिए| अभी कुछ दिन पूर्व भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत सरकार से कहा है कि देश में इस्लामिक बैंकिग की अनुमति दी जानी चाहिए| ध्यान देने की बात है कि इस्लामिक बैंकिंग मुस्लिम कहे जाने वाले शासनों और देशों में भी बीसवीं शताब्दी में जाकर प्रचलित हुई है| रिजर्व बैंक के मुताबिक इस समय मौजूद भारतीय क़ानून देश में औपचारिक रूप से इस्लामिक बैंकिंग की इजाजत नहीं देते, परन्तु नॉन – बैंकिंग सेक्टर में इस प्रकार के कुछ संस्थान है जो इस्लामिक बैंकिंग के आधार पर सीमित रूप से कार्य कर रहे हैं|

इस बात में कोई शक नहीं है कि मानवता शताब्दियों से सूदखोरी के विरुद्ध रही है| कुरान पाक सूदखोरी सात बड़े पापों में गिनता है| सूद को आप मेहनत की कमाई की परिभाषा में नहीं ला सकते हैं| आप यदि जाति आधारित भारतीय समाज पर भी निगाह डालें तो पाएंगे की सूदखोरी का धंधा करने वाले समुदायों को समाज में अधिक सम्मान नहीं दिया जाता| अब प्रश्न उठता है कि बिना सूद बैंकिंग कैसी?

अगर आप बैंक के पास जाकर कहे कि आपको जर्मनी से एक करोड रुपये की कुछ मशीन खरीदनी है, और बैंक आपको मशीन खरीद कर दे दे और कहे कि आप कुल जमा सवा करोड रुपया अपनी पसंद की किस्तों में दे देना| जमानत के तौर पर दो करोड की जमीन रखने होगी|

अगर आप को एक करोड की जमीन अपना उपक्रम लगाने के लिए चाहिए और बैंक वो जमीन आप को खरीद कर प्रयोग करने के लिए दे दे.| आपको किस्तों में इतना पैसा बैंक को देना है जो आखिरी किस्त के दिन जमीन की पहले से अनुमानित कीमत के बराबर हो जाये|

अब अगर आप बैंक के पास जाए घर खरीदने का कर्जा लेने और बैंक कहे कि आपके द्वारा पसंद किया गया घर बैंक आपको खरीद कर किराये पर दे देगा और दस साल कुछ रकम माहवार किराये पर देने के बाद मकान आपका|

आपको कुछ धंधा करना है और बैंक आपकी कुल पूँजी लागत का ५० फीसदी आपको कर्जा दे और कहे कि आप जब तक जब तक मूल धन नहीं चूका देते, तब तक मुनाफे में २० फीसदी का हिस्सा देते रहे|

आप एक करोड के सोने के बदले बैंक से सवा करोड का उधार दे और कहे की आप दो साल के भीतर इस सोने को दो करोड में वापस खरीद सकते है|

बैंक आपके बचत खाते में जमा रकम के बदले हर साल ब्याज न देकर कुछ उपहार दे| बैंक आपके सावधि जमा के आधार पर आपको अपने कुल लाभ में से कुछ हिस्सेदारी दे|

बैंक आपको वेंचर कैपिटल मुहैया करा दे| आपके धंधे में प्रेफेरेंस शेयर खरीद ले| अगर दिमाग में विचारों का मंथन चले तो ऐसे कई और तरीके ओ सकते है जो इस्लामिक बैंकिंग के मूलभूत तरीकों से मेल खायेंगे|

मैं मानता हूँ कि पूरी तरह से आप इस्लामिक बैंकिंग के सिद्दांत पर सभी कार्य नहीं कर सकते परन्तु आप आज के सूदखोर बैंक के सिद्दांत पर भी पूँजीवाद नहीं चला पाए हैं| समाजवादी सिद्दांतों से ख़ारिज किये जाने के बीस वर्ष के भीतर ही पूंजीवाद के महारथी कई बैंक दिवालिया हो चुके है| आपको समय से साथ न सिर्फ नए वरन पुराने विचारों को भी बार बार अजमाना होगा|

इस्लामिक बैंकिंग एक ऐसा विचार है जो मुझे सदा ही आकर्षित करता रहा है और इसे मुझ सहित बहुत से लोग पूंजीवादी सिद्धांत के कमियों को दूर करने के प्रमुख प्रयास के रूप में देखते हैं| दुर्भाग्य से भारिबैं इस्लामिक बैंकिंग को मात्र वर्ग विशेष को बैंकिंग तंत्र से जोड़ने के एक साधन मात्र के रूप में देखती है| मैं विश्व भर के मुस्लिम – विरोधिओं और मुस्लिमों की भावनाओं का आदर करते हुए यह कहना चाहता हूँ कि जिस प्रकार योग, विज्ञान, वैदिक गणित, यूनानी चिकित्सा और आयुर्वैद किसी धर्म विशेष के विचार नहीं है बल्कि मानवीय धरोहर है उसी प्रकार इस्लामिक बैंकिंग किसी की बापौती न होकर मूलतः एक मानवीय विचार है और इसे सभी के द्वारा अपनाया जाना चाहिय|

मेरी छोटी बहन पूनम : एक श्रृद्धांजलि


उस दिन माँ ने हम दोनों भाई बहनों से पूछा था कि बहन चाहिए या भाई? हम दोनों का क्या विचार था मुझे याद नहीं आता मगर हम उस दिन अपनी अपनी तरह प्रसन्न थे| एक दिन जब मौसम में हल्की सी तरावट थी पापा हमें महिला चिकित्सालय ले गए और हम नन्ही बहन से मिल कर खुश थे| जब हम जीप में बैठ कर घर पहुंचे तो बहन से नाराज थे क्योकि वो हमारे साथ नहीं खेल रही थी और हमारी माँ से ही चिपकी हुई थी| बाद में जब वो थोड़ा बड़ी हुई तो मेरी यह नाराजगी बनी रही क्योकि वह या तो माँ के साथ रहती थी या अपनी बड़ी बहन के साथ|

उसका बचपन मेरे लिए एक बीमार मंदबुद्धि लड़की का बचपन था; वह शुरू के पाँच वर्ष ज्वर से लेकर खसरा, टायफायड तक से संघर्ष करती रही और कई बार चिडचिडी हो जाती थी| माँ से उसका विशेष लगाव था| किसी और से उसका बोलना चालना तभी होता था जब बेहद अपरिहार्य हो जाता था| प्राथिमिक शिक्षा के लिए जब उसे पड़ोस के निजी विद्यालय में भेजा गया तो शिक्षिकाओं की शिकायत थी की वह सभी आदेश मानती है, काम भी पूरा रखती है मगर बोल कर किसी भी बात का जबाब नहीं देती| मेरी माँ के कहने पर अध्यापिकाओं ने उसके सामने माँ के लिए भला बुरा कहा; और वो सबसे लड़ पड़ी| इसके बाद वो अध्यापिकाओं की लाड़ली, अपनी अलग दुनिया में मगन अपने रास्ते चलती रही और पढाई करती रही|

मेरा उसका वास्ता शुरु में इतना था कि मैं रोज रात उसको कहानियां सुनाया करता था| इनमें ध्रुवतारे से लेकर सियाचिन की लड़ाइयों तक होती थीं| मुझे नहीं याद कि बचपन में कभी मैंने उसे ठीक से पढ़ाया हो मगर रोजाना के लिए एक किस्सा कहानी तय था| वह दस वर्ष की आयु आते आते पढ़ने लिखने के प्रति अपनी रूचि का विकास कर चुकी थी और सामाजिक संघर्षों के प्रति उसकी जानकारी बढ़ रही थी| बोफोर्स, अयोध्या और मंडल आदि के बारे में वह अपने हमउम्रों से कहीं अधिक जानकारी रखती थी| बारहवीं तक आते आते उसका रुझान अध्यापिका बनने के स्थान पर चिकित्सक बनने की और हो गया था| मगर बारहवीं के परिणाम आशा के विपरीत थे|

इसके ठीक बाद उसका स्वास्थ्य फिर साथ छोड़ गया| उसको बारहवीं उत्तीर्ण करने के कुछ महीने बाद बीमारियों में घेर लिया| पूरे साल उसने बिस्तर पर रहकर ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विधि विभाग में प्रवेश परीक्षा की तैयारी की| उसका नाम चयनित छात्रों की सूची में चौबीसवें स्थान पर था जो यक़ीनन एक बढ़ी उपलब्धि थी| मगर संघर्ष जारी था और लड़ाई लंबी थी|

हिंदी माध्यम से पढ़ी उस होनहार छात्रा को सभी कुछ समझ नहीं आता था और वह घर आकर अपने सारे नोट्स हिंदी में समझने की कोशिश करती थी| वर्तनी, उच्चारण, घसीट लेखन, घटता आत्म विश्वास, घर से विश्वविद्यालय की दूरी, बेहद बीमार शरीर के लिए उत्तर भारत की गर्मी, सर्दी और बरसात, सभी परीक्षा लेने पर उतारू थे| प्रथम छःमाही में वह बेहद कठिनाई से उत्तीर्ण हो पायी थी| परन्तु उसने मुझसे कहा की मैं उसे यह गणना कर कर बताऊँ कि अगले हर छःमाही में उसे कितने अंक लाने है कि वह अपनी विधि स्नातक की उपाधि प्रथम श्रेणी में पा सके|

इसी बीच माँ को कैंसर हो गया और साल भर में वो चली गईं| किसी भी छात्र के लिए माँ का देहावसान दुखद है; उसने किसी तरह से अपने आपको टूटने से बचाया| मगर वह प्रथम श्रेणी चूक गयी|

उसे विधि के स्नातकोत्तर पाट्यक्रम में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया’ दोनों जगह स्थान मिल गया और उसने फिर अलीगढ़ में प्रवेश ले लिया| इस बार वो प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई| और उसने पी. सी. एस. (न्यायायिक) प्रारंभिक परीक्षा भी उत्तीर्ण की| मगर दुर्भाग्य आसानी से समाप्त नहीं होता|

ठीक इसी वर्ष, अपनी माँ के कैंसर का शिकार होने से पाँचवे वर्ष उसे कैंसर हो गया|

पूनम, उम्र चौबीस वर्ष, स्तन कैंसर||

हर चिकित्सक बातचीत का प्रारंभ आश्चर्य से करता| इस उम्र में स्तन कैंसर लगभग नहीं ही होते| अनुवांशिक मामलों में भी शायद इस उम्र में नहीं होते|

बहुत से मित्र और सम्बन्धी साथ छोड़ गए| चिकित्सकों में जल्दी ही कैंसर मुक्त घोषित कर दिया मगर… टूटा हुआ मन , तन, समाजिक सम्बन्ध, मष्तिष्क| ईश्वर है भी या नहीं?

उसे कई संबंधों और समाज के बिना बेहद लंबा अवसाद झेलना पड़ा| मगर बहादुर हार नहीं मानते; जी!! कैंसर और ईश्वर से भी नहीं|

उसने दिल्ली के भारतीय विधि संस्थान में प्रवेश लिया; परन्तु परीक्षा नहीं दे सकी| उसने दूसरी बार पी. सी. एस. (न्यायायिक) प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की और मुख्य परीक्षा में भी अच्छे अंक लायी; परन्तु साक्षात्कार में उत्तीर्ण नहीं हो सकी| इलाहबाद विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की पढाई प्रारम्भ की और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नेट परीक्षा भी उत्तीर्ण की| उसने दुमका में “स्वच्छ जल का अधिकार: संवैधानिक एवं विधिक विचार” विषय पर अपना आलेख प्रस्तुत किया|

मुझसे काफी छोटी होने के बाद भी, मेरे विवाह की सारी व्यवस्था करना भी उसने सहर्ष स्वीकार किया और ढेर  सारे व्यवधान से बाद भी सभी कार्य ठीक से पूरे किये| किसी ने यह सोचा भी नहीं कि भागती फिरती यह लड़की कैंसर से जूझ चुकी होगी और…

परन्तु, एक बार फिर कैंसर में आ घेरा| पन्द्रह दिन के भीतर चिकित्सकों ने निजी रूप से मुझे उसके ठीक न हो पाने की संभावना के बारे में बता दिया| अब छः माह से एक वर्ष की आयु शेष थी| समाज एक बार फिर साथ छोड़ रहा था| एक मित्र में मुझे कहा, उसका जो होना है हो ही जायेगा, आप क्यों हम अपना समय नष्ट करते है|

उसने इस दौरान भी सामान्य बने रहने का पूरा प्रयास किया| अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लगाया हुआ उसका यह फोटो उसे कैंसर हो जाने के बाद का है|

पूनम (25 सितम्बर 2011)

 

उसके अंतिम दस वर्षों में कुछ गिने चुने लोग ही उसके साथ थे; और मुझे बताना ही चाहिए कि वो लोग, ओ उसके साथ रहे, बहुत पढ़े लिखे लोग नहीं है|