पर्यावरण प्रदुषण हमारी चिंता का एक प्रमुख विषय है| समुचित विकास की अवधारणा का मात्र अवधारणा बने रह जाना, अनियंत्रित पूंजीवाद एवं भौतिकतावाद और बढता भ्रष्टाचार इसके प्रमुख कारणों के रूप में शुमार है| परन्तु अब इन सब चीजों पर विचार करना बेमानी होता जा रहा है| इस सब के बीच कुछ अच्छी बातें भी हो रही है| उनपर विचार करना उचित है जिससे हम अपना योगदान दे सकें, दूसरों के लिए भी प्रेरणा हो सके|
अभी भारत सरकार के निगमित कार्य मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs) ने बड़ी बड़ी कंपनियों के द्वारा होने वाली कागज़ की बर्वादी को कम करने के लिए नए नियम बनाए है|
अब तक होता यह था की कंपनियों को अपने अंशधारको को अपना वार्षिक सूचनापत्र कागज़ पर छपा हुआ भेजना होता था| इस समय देश में ऐसी कई निगम है जिनके अंशधारको की सूची लाखों में है| एक सफल, सुलझी हुई निगम कार्यप्रणाली वाली निगमों के सूचनापत्र १०० पृष्ठों से अधिक के भी होते है| सामान्य अंशधारक इन सूचनापत्रों को सही से पढ़ना भी नहीं जानता, समझना तो दूर की बात है| इस प्रकार सेकडो सेर कागज़ रद्दी हो जाता है| नए नियमों के अनुसार अब निगम अपने अंशधारको को इ – मेल पर इन सूचानापत्रो को मंगवाने को विकल्प दे सकती है| इसके लिए अंशधारक निगम के पास अपना अधिकृत इ – मेल पता पंजीकृत करा सकते है, इसके बाद निगम उन्हें सूचनापत्र की अभौतिक प्रति प्रषित कर देगी| अन्य सामान्यजन भी इन सूचानापत्रो की अभौतिक प्रति कंपनी के वेबपृष्ठ पर जाकर देख सकते है|
हालाँकि; कई विश्लेषक यह मानते है कि छपे विवरण पढ़ना, अभौतिक प्रति पढ़ने के मुकाबले आसान है| परन्तु पर्यावरण को होने वाले लाभ को भी हमें ध्यान में रखने चाहिए|
इसी प्रकार हम अन्य कई सूचनाए भी अभौतिक प्रति में प्राप्त कर सकते है| जैसे मेरे पास बैंक खाता विवरण, कई प्रकार के बिल आदि की अभौतिक प्रतियां आती है, यह तीव्र सुरक्षित और पर्यावरणसमर्थक तरीका है|