अभी हाल में “ओऍमजी – ओह माय गॉड” फिल्म देखते हुए अचानक एक संवाद पर ध्यान रुक गया| ईश्वर का किरदार अपना नाम बताता है “कृष्णा वासुदेव यादव”| इस संवाद में तो तथ्यात्मक गलतियाँ है;
१. उत्तर भारत में जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था वहां पर मध्य नाम में पिता का नाम नहीं लगता| वास्तव में मध्य नाम की परंपरा ही नहीं है, मध्य नाम के रूप में प्रयोग होने वाला शब्द वास्तव में प्रथम नाम का ही दूसरा भाग हैं, जैसे मेरे नाम में मोहन|
२. उस काल में कुलनाम लगाने का प्रचलन नहीं था|
जाति सूचक शब्द में नाम का प्रयोग शायद असुर नामों में मिलता है, जैसे महिषासुर, भौमासुर| यह भी बहुत बाद के समय में| प्रारंभिक असुर नामों में भी इस तरह का प्रयोग नहीं है, जैसे – हिरन्यकश्यप, प्रह्लाद, बालि, आदि|
ऐतिहासिक नामों में मुझे चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम में ही कुल नाम का प्रयोग मिलता है, स्वयं मौर्य वंश में भी किसी और शासक ने कुलनाम का प्रयोग नहीं किया है| विश्वास किया जाता है कि वर्धनकाल तक भारत में जाति जन्म आधारित न होकर कर्म आधारित थी| यदि उस समय जाति या कर्म सूचक कुलनाम लगाये होते तो हो सकता कि शर्मा जी का बेटा वर्मा जी हो| सामान्यतः, मध्ययुग तक कुलनाम का प्रयोग नहीं मिलता| हमें पृथ्वीराज चौहान का नाम पहली बार कुलनाम के साथ मिलता है|
स्त्रियों में कुलनाम लगाने की परंपरा बीसवीं सदी तक नहीं थी| स्त्रिओं में कुमारी, देवी, रानी आदि लगा कर ही नाम समाप्त हो जाता था| बाद में जब स्त्रिओं में कुलनाम लगाने की परंपरा आयत हुई तो बुरा हाल हो गया है| प्रायः सभी स्त्रिओं को विवाह के बाद अपना कुलनाम बदलकर अपनी पहचान बदलनी पड़ती है अथवा अपनी पुरानी पहचान में पति की पहचान का पुछल्ला जोड़ना पड़ता है|
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