मोदी और विवाह


नरेन्द्र मोदी के विवाह के बारे में जबरन दबाये और उठाये जाते विवाद से केवल दो बातें सामने आतीं है:

१.      भारतीय समाज में बाल विवाह न केवल दो व्यक्तिओं बल्कि तो परिवारों को कई दशक का दुःख देने वाली बुराई है जिसे समाप्त होना चाहिए|

२.      धार्मिक अतिवादिता न तो किसी को तलाक लेने देती है न ही इतनी हिम्मत ही देती है कि वह खुल कर अपने विवाह और उसके असफल होने की बात स्वीकार कर सके| असफल विवाह बुरी याद की तरह ढोए जाते हैं या उन्हें धोये जाने का यत्न किया जाना होता है|

भारतीय समाज में विवाह एक सामाजिक सम्बन्ध है और पति –पत्नी का आपसी सम्बन्ध उनका निजी मसला है| यह एक गहन अंतर है|

हम नरेन्द्र मोदी से यह तो पूछ सकते हैं कि उनकी पत्नी का नाम क्या है, हम यह पूछ सकते हैं कि पहले किसी दस्तावेज (एफिडेविट) में उन्होंने पत्नी का नाम क्यों नहीं बताया; हम यह पूछ सकते हैं कि इस बार उन्होंने नाम क्यों बताया, हम हम यह भी पूछ सकते हैं कि कौन सा दस्तावेज झूठ है|

हम पति –पत्नी के आपसी सम्बन्ध और उसकी सफलता – असफलता के बारे में नहीं पूछ सकते|

हम मोदी को भगौड़ा इस लिए नहीं कह सकते कि उनका विवाह असफल रहा या नगण्य रहा| उन्हें विवाह से भगौड़ा कह सकने का अधिकार अगर किसी को है तो उनकी पत्नी को है, अथवा पत्नी की शिकायत पर उनके दोनों परिवारों और न्यायलय को है|

हम मोदी को भगौड़ा इसलिए मात्र कह सकते है कि वो पत्नी होने का सच बताने से भागते रहे| पत्नी का नाम न बताना झूठ नहीं है बस वो सच से भागना या सच छुपाना है|

साथ ही हम भारतीय नारी की अवधारणा पर कितना भी गर्व करें, क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि भारतीय परित्यक्ता स्त्रिओं के पास हमें विकल्प ही क्या छोड़ा है?

नोट: पिछले वर्ष आया नया हिन्दू विवाह कानून हिन्दू पुरुष को तलाक लेने की हिम्मत करने की अनुमति नहीं देता| हिन्दू पुरुष के लिए पत्नी त्याग पत्नी को तलक देने से अधिक सस्ता सुन्दर तरीका बन गया है|