औकात का तराजू


औकात का तराजू सिर पर टंगा है| मेरी नाक तराजू  के काँटे की तरह दोलन कर रही है| हर आता जाता व्यक्ति मेरी नाक को उद्दवेलित कर रहा है| औकात नापने का यह पारंपरिक खेल उदासी, ऊब, और उबासी से राहत दिलाने की कारगर दवा है| गर्व और अभिमान को पुष्ट होते देखना आनंद है|

औकात मापक-सूचक पेशेवरों के लंबे चौड़े मानकों के विपरीत तुरंत ही किसी की औकात माप लेना विकट मानवीय क्षमता है| अगर प्रातः श्वानवंशी ने मेरे समक्ष दुम न हिलाई होती तो मैं इसे मात्र मानवीय क्षमता मान लेता| श्वानवंशी घ्राण व चाक्षुक क्षमता के साथ औकात मापन और दुम दोलन करते हैं| दुम दोलन की गति आप का तत्कालिक औकात सूचकांक है| दुम दोलन मनुष्य भी करते ही हैं| परंतु मानव दुम दोलन मेरे लिए उचित विषय वस्तु तो कदापि नहीं है| 

राज्य के दुर्भाग्य का समुचित प्रतिनिधित्व करता प्रांतीय राजधानी का यह हवाई अड्डा मुझे कदापि प्रभावित नहीं करता| यहाँ का मुख्य रेलवे स्टेशन इसे पर्याप्त टक्कर देता है| प्रभावहीनता में कई अन्य हवाई अड्डे इसे टक्कर देते हैं| आधुनिक मापदण्डों के प्रभावशाली हवाईअड्डा होने से पहले हवाई अड्डा हो जाना अपने आप में एक उपलब्धि है| 

आज सुबह यह हवाई अड्डा मुझे इसलिए प्रभावित कर रहा ही कि मुझे औकात का तराजू प्रयोग करने का समुचित समय मिल रहा है| जब आप समय पर पहुँच जाए तो उड़ाने प्रायः विलंबित हो जाती हैं| मेरी उड़ान में पर्याप्त देरी हुए है| कान में श्रवणक लगा कर अर्धध्यान मुद्रा में बैठे हुए इतनी गंभीरता से औकात मापन कर रहा हूँ कि सामने आने वाले स्त्री पुरुष स्वाभाविक असहज अनुभव नहीं कर रहे|

यह तीन लोग मेरी आँख में खटक जाते हैं| इनके साथ यात्रा करना कितना अस्तरीय होगा? उन्हों ने अपनी क्षमता से बेहतर कपड़े पहने हैं| शायद जनपथ या सरोजेनी नगर के फुटपाथ से काफी छांटने और मोलभाव के बाद खरीदे गए होंगे| शायद यह मेरा भ्रम हो परंतु यह मेरे मनमाफ़िक अनुमान है| लंबी मजबूत गठीली लड़की इस हवाई अड्डे को देखकर मेरी तरह ही निराश है| फिर भी उसे मोबाइल टिकिट, मोबाइल बोर्डिंग पास, सुरक्षा जांच, आंतरिक द्वारों पर बार बार लगती कतारें प्रभावित करती हैं| ननद-भाभी का उत्साह देखते बनता है और मैं उस उत्साह की सुनने की उत्सुकता में चुपचाप अपनी आडिओबुक शांत कर देता हूँ|

“देखा भौजाई, यहाँ तो बड़े बड़े लोग कतार में लगा दिये जा रहे हैं| जैसे दिल्ली रेलवे में हमें लगाते हैं|” मेरा मन विचलित होता है| उसका यह विश्लेषण मुझे स्तर पर हमला लगता है|
“पगली हो तुम दोनों, वहाँ हमें कतार में लगाते है और यहाँ हम लोग एक आवाज में कतार में लग जा रहे हैं|” इस कथन में मौजूद हम मुझे और भी हिला देता है| वह मेरी औकात गिराकर मुझे अपने साथ हम में कैसे शामिल कर सकता है? मैं मन ही मन उसकी माता बहन के नाम पर शांत हो जाता हूँ| मैं अपना ध्यान उसकी बहन और पत्नी पर केन्द्रित कर लेता हूँ| पत्नी अपने दुपट्टे और बहन अपनी जींस के अनावश्यक कटावों के प्रति रह रह कर जागरूक हो जाती है और एक दूसरे को देखकर मुस्करा जाती हैं| बार बार बेफिक्री ओड़ कर उन्हें अपनी स्तरीय होने का मिथ्या भान हो रहा है| उनका यह मिथ्या भान मेरे स्तर गर्व को चोट पहुँचा रहा है| मैं देख पा रहा हूँ कि मौजूद स्तरीय लोग अपने स्तर को बचाए रखने के लिए इन तीनों के अस्तित्व को नकार बैठे हैं|

तभी पत्नी को हवाई अड्डे कि दुकान से कुछ खरीदकर खाने कि इच्छा हुई और उसने केफ़े लेट्टे की इच्छा प्रगट कर दी है| दाम सुनकर उस के मुँह का स्वाद कड़ुवा होता हुआ मुझे साफ दिखाई दिया| मुझे संतोष मिलता है| कुछ क्षण पहले मैं खुद हवाई अड्डे के कृत्रिम महंगाई पर आलेख लिखने का मन बना रहा था| इस महंगाई पर मुझे अचानक संतोष उत्पन्न हो रहा है| उसका पति पहले से तैयार है और उसने दाम चुका दिये हैं| 

मुझे अधिक निराशा न हो| मुझे अपने स्तर और स्वाभिमान को बचाने के लिए दूसरे छोर पर जाने के लिए उठना पड़ रहा है| अचानक मेरे विमान के लिए सवार होने की प्रक्रिया की घोषणा हो रही है| क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि वह तीनों हमारी कतार में सबसे पहले खड़े हुए हैं| उनके अंदर चले जाना कितना आराम देता है| कम से कम अब वह हमारी कतार का नेतृत्व नहीं कर रहे| 

विमान में मेरी आंखे उन्हें न देख पाने का पूरा प्रयास कर रही हैं| बहन ३०वीं कतार और पति-पत्नी ३१वीं में बैठे हैं| मैं ३१ वीं कतार में दूसरी और बैठा हूँ| पत्नी अपने पति के साथ इस उड़ान में सहज नहीं महसूस कर रही और भाई बहन को अपने स्थान बदलने पड़ रहे हैं| अब दोनों का उत्साह देखते बनता है| दोनों आपस में कैमरा कैमरा फ़ोटो-शोटो खेलने में लगी हैं| रह रह कर मैं उन्हें देख रहा हूँ| कभी मानवीय स्वभाव मुझे गुदगुदा कर मुस्कुरा रहा है तो कभी मेरी स्तरीय भावना मुस्कुरा रही है| 

विमान की मेज़बान मंडली भी उन्हें दूर से देखकर मुस्कुरा रही है| अचानक उन्हे व्यवसाय वर्ग में बैठाने का प्रस्ताव रखा गया है| मैं हैरान हूँ| कोई भी इस प्रस्ताव का विरोध कर कर गलत नहीं कहलाना चाहता| वह पर्याप्त गंभीरता, सहजता, उत्साह, धैर्य और आत्मसम्मान के साथ आगे जा रहे हैं| r̥
उन्हें लग रहा है विमान उड़ रहा है| मुझे पता है विमान ने धरती छोड़ दी है|
मेरे कान में लगा श्रवणक मुझे पुनः “अ लिटल हिस्ट्री ऑफ इक्नोमिक्स” सुना रहा है| 

स्वाद श्रेष्ठता का दम्भ


मुझे इडली खाते देखते मजदूर विस्मित थे| उनके लिए कढ़ी कचौड़ी, आलू सब्ज़ी कचौड़ी, चटनी कचौड़ी आदि तो समझने वाली बात थी| यह कचौड़ी जैसी सफ़ेद चीज जिसमें कुछ भी भरा हुआ न था, सब्ज़ी मिली दाल के साथ खाना एक स्वादेन्द्रिक परिभ्रमण था| उन्हें संतोष होता कि भरवां इडली का परिचय चावल के आटे की कचौड़ी कहकर दिया जाता, पर भरवां भी तो नहीं थी| उस समय तक तो मैं खुद भरवां इडली, मसाला इडली, तली इडली और भुनी इडली जैसे पाककला पराक्रमों से अनिभिज्ञ था| खैर उस दिन, सभी का स्थिर निश्चिय था कि यह इडली नामक पदार्थ केवल कभी कभार खाया जा सकता है और इस से रोज पेट भरना असंभव है| 

हमारे पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाप से बनने वाले गिने चुने कुछ ही पकवान उन दिनों तक बनते थे| वह सब भी आम भोजन संस्कृति का भाग न होकर कायस्थों के शौकीन मिज़ाज के नाम चढ़े थे|
उस दिन दिन ढले तक मजदूरों का प्रश्न-प्रतिप्र्श्न यही था कि कोई बिना रोटी खाये रात को नींद किस प्रकार ले सकता है| 

हमारे उत्तर भारतीय जाड़ों की शाम दही चावल खाकर ठंड पकड़ बीमार होते रहे हैं, दक्षिण भारतीय गेहूँ की गर्मी से उत्पन्न रोग का इलाज़ कराने के लिए मजबूर रहे हैं| (गेहूँ चावल के मामले में पूर्व पश्चिम कहना शायद अधिक उचित होगा|)

मुगलई, अवधी, कायस्थ, रामपुरी, पंजाबी, मारवाड़ी, सिंधी, गुजराती आदि पाककला को गर्व रहा है कि उनकी कढ़ी और शोरबा विश्व विजय करता रहा है| दक्षिण भारतीय अपने इडली डोसे, पंजाबी छोला भटूरा, बिहारी लिट्टी चोखा, मारवाड़ी दाल बाटी, मालवीय पोहा जलेबी, मराठी पाव भाजी के विश्व और भारत विजय पर गर्वित हैं| सबको भरोसा है कि उनके पकवान में ही वास्तविक दम है और शेष सिर्फ स्वाद ग्रंथि के संतुष्टि के लिए भक्षित होते हैं|

आज वैश्वीकरण युग में भोजन श्रेष्ठता का हमारा दंभ असफल चुनौती पा रहा है| हम चायनीज़, कॉन्टिनेन्टल, जापानी, थाई, तिब्बती, नेपाली, ईरानी, और न जाने किस किस पाककलाओं के विश्वविजेता पकवानों का कबाड़ा प्रसन्नता पूर्वक करते हुए देवी अन्नपूर्णा की आराधना कर रहे हैं| विचारना पड़ता है कि देवी इन्हें प्रसाद के रूप में स्वीकारतीं होंगी या बलि के रूप में| 

इन सब पाककला पराक्रमों के बाद भी हमारा दम्भ स्थिर है – हमारा स्वाद बेहद बढ़िया दूसरे सब स्वादेन्द्रिक परिभ्रमण| 

अपने आस्वादिक स्वभाव के कारण में भारत भर के सभी शाकाहारी भोजनों का आस्वादन प्रसन्नता पूर्वक करता रहा हूँ| परंतु स्वाद श्रेष्ठता की मेरी ग्रंथि हाल में बुरी तरह चोटिल हुई|

हाल में हमारे घर की राम रसोई के लिए नए पाक शास्त्री की नियुक्ति की गई| यह महोदय तमिल नाडू के मदुरई के आस पास के मूल निवासी हैं| उन्हें विविध देशी विदेशी पकवान व्यवसायिक (घरेलू नहीं) तरीके से बनाने का समुचित अनुभव है| स्वभावतः अपने मूल भोजन को वह बेहतर तरीके से बनाते हैं और हम सब भी दिल खोल कर खाते हैं| 

इस दिन मेरा मुँह खुला का खुला रह गया जब उन्हों ने कहा, दक्षिण भारतियों के उत्तर में आने से कम से कम उत्तर भारतियों को को कुछ तो ढंग का खाना खाने के लिए मिल रहा है वरना तो कूड़ा कबाड़ा खाते रहते हैं|

इस आकस्मिक सांस्कृतिक हमले से थोड़ा संभालने के बाद मैंने सोचा, भोजन संस्कृति में व्यापक आदान प्रदान के बाद भी श्रेष्ठता का दम्भ हम सब में बना हुआ है| शायद यही मूल स्वादों को भी बचा रखेगा| वरना सरसों के तेल की तड़का सांभर और मूँगफली तेल के छोले भटूरे गंभीर त्रासदी रहे हैं| चेन्नई के अल्डमस रोड पर मथुरा मूल के ब्रजवासी भोजनलय का सांस्कृतिक सम्मिश्रण बनाम प्रदूषण वाला उत्तर भारतीय भोजन अभी तक जीभ पर बना हुआ है| 

फिलहाल हमारी राम रसोई में सरसों, नारियल, मूँगफली के तेल और सूरजमुखी तेल-नामी तत्त्व देशी घी के साथ कंधा मिला रहा है| आशा है कि हम सभी लोग अपनी भोजन संस्कृति में सांस्कृतिक शुद्धता और सांस्कृतिक सम्मिश्रण दोनों का प्रसन्नता पूर्वक आनंद ले पाएँ|

बालूशाही


बालूशाही बहुत लंबे समय तक मेरे लिए नापसंदीदा मिठाई रही है| इसके बारे में लिखा पढ़ा भी कम मिलता है| कम से कम इसके इस शाही नाम का कोई रोमांचक किस्सा नहीं है| यह बालू शाह या भालू शाह शायद कोई तुर्रम खाँ नहीं रहे होंगे वरना उनके मिठाई-पसंदी के किस्से हिंदुस्तान पाकिस्तान के बच्चों के जुबान पर चढ़ जाते| भले ही यह हिंदुस्तानी मिठाई हो, मगर इसके नाम और स्वाद में तुर्किस्तानी (तुर्की न समझें) रंगत नज़र से नहीं छिपती| मैं ऐसा कुछ नहीं बोलना चाहता कि इस ना-मामूल मिठाई को देश-निकाला दे दिया जाये| समझदार भक्त जो त्योहारों के नामुनासिब मौसम में दूध कि मिठाइयों पर शक करते हैं उन्हें लड्डू से गणेश जी और लड्डू गोपाल का और बालूशाही से लक्ष्मी जी का भोग लगाते अक्सर देखा जाता हैं| 

महसूस होता है कि किसी खालिश हिंदुस्तानी हलवाई ने तुर्किस्तानी बकलावा का मुक़ाबला करने और हिंदुस्तान की खुशबू बहाल रखने के लिए बालूशाही का ईजाद किया होगा| बकलावा खाते समय बालूशाही और बालूशाही खाते समय इमरती की बड़ी याद आती है| 

इस गंगाजमुनी मिठाई को बनाने के लिए मैदा, गुड़- चीनी, घी का इस्तेमाल इराफ़ात से होता है| आप मर्जी मुताबिक मेवे इस मिठाई में डाल सकते हैं या फिर कंजूसी कर सकते हैं| लड्डू और बालूशाही कभी कोई शिकायत नहीं करते| आम हलवाइयों की बालूशाही अक्सर कड़ी रहती है और जल्दी खराब न होने के कारण हफ़्तों हलवाई की परातों और घर के दस्तरखान पर मौजूद रह सकती हैं| इसको हल्का, खस्ता और रसदार बनाना ही किसी हलवाई की परीक्षा होती है| इसे आकार प्रकार का ध्यान रखे हुये इस बिना जलाए अंदर तक सेंकना अपने आप में कला है| इसका खस्ता और मुलायम दोनों गुण एकसाथ बरकरार रखना भी महत्वपूर्ण है| बालूशाही का स्वाद गरम गरम खाने में है| मगर गरमागरम बालूशाही अगर ठीक से न सिंकी हो तो अंदर से अधिक कच्ची महसूस होगी| बालूशाही का स्वाद इसके सिंकने के बाद समय के साथ घटता है| मगर तेजी से ठंडी की गई बालूशाहियों का भी अलग स्वाद लिया जाता है| 

रसायन शास्त्र में अर्ध आयु का सिद्धान्त किसी बालूशाही के स्वाद के हर घंटे आधा होते चले जाने की प्रवृति देखकर ही सामने आया होगा| जितना बढ़िया हलवाई उसकी बालूशाही के स्वाद की अर्धआयु उतनी लंबी| आप बालूशाही को सुखाकर महीनों खा सकते हैं| अगर इस पर की परजीवी न आए तो यह बेस्वाद नहीं होगी| 

मुझे लगता है, जिन हलवाइयों को ताजा ताजा मिठाइयाँ रोज बनाने और बेच देने की खानदानी बीमारी रही है, उन्हें कभी बढ़िया बालूशाही बनाने का विचार नहीं आया| कुछ बढ़िया बालूशाहियाँ देहाती हलवाइयों के मर्तबानों में महीनों गुजारती हैं और दूध, छाछ या फिर चाय के साथ निपटाई जातीं हैं| 

दिल्ली के हीरा हलवाई अपनी बालूशाही की बदौलत अपनी मजबूत जगह बना पाए हैं| उनकी बालूशाही का दिल्ली में शायद कोई मुक़ाबला नहीं| बिना शक यह बढ़िया बालूशाही है और आप हफ्ते भर इसका बेहतरीन स्वाद ले सकते हैं| मगर मैं इस बालूशाही का दीवाना नहीं हो पाया|
राजधानी से कुछ दूर बागपत के भगत जी स्वीट्स की बालूशाही किसी भी बालूशाही को मात दे सकती हैं| एक लंबे समय तक महीने में एक बार चार-पाँच किलो बालूशाही बागपत से मंगाता रहा| सीधे उनके कारखाने पर अपना निशाना लगता और बालूशाही ठीक कढ़ाई से ही खरीदी जाती| गरम गरम बालूशाही का जलबा निराला होता हैं| ऐसा नहीं है कि इसके मुक़ाबले कोई और बालूशाही नहीं होगी पर मेरे ज्ञान में यह बेहतरीन बालूशाही है| बढ़िया आकार के साथ खस्ता, कुरकुरी, मुलायम, रसीली और अंदर तक बढ़िया सिकी हुई बालूशाही -कोई सरल बात नहीं| 

समय के साथ बालूशाही की लोकप्रियता बढ़ रही है| इसके लिए दूध की मिलावट, दूध की मिठाइयों की बेहद कम उम्र और स्वास्थ्य समस्याएँ की एक कारण है| बेहतरीन कारण है, बालूशाही बनाने की तकनीक में सुधार|