नमक की कमी


नमक का नाम चीनी के साथ एक आवश्यक जहर की तरह हमारे आधुनिक जीवन में आता है। इन्हें अपनी ख़ुराक में कम करने और इनसे डरने में हमारा जीवन जाया होता है।

दो साल पहले मेरी चिकित्सक द्वारा नमक की कमी के प्रति चेताया जाना मेरे लिए विस्मयकारी था। आँकड़े की माने तो मैंने इसे आवश्यक गंभीरता से नहीं लिया।

इस माह यह मारक सबक बनकर सामने आया जब पापा को सिर्फ सोडियम पोटेशियम की बेहद कमी के कारण तीन दिन आईसीयू सहित कुल पाँच दिन अस्पताल में बिताने पड़े। वह आज भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि नमक की कमी नामक कोई स्वास्थ्य समस्या इस रहती दुनिया में मौजूद है। वह सोचते हैं हम उनका मन बहलाने के लिए यह बचकाना बहाना रच रहे हैं। फिलहाल चिकित्सक और उनका नुस्खा उनके सरकारी संदेह के दायरे में है।

मैं पुश्तैनी/जाति तौर पर कम मिर्च मसाला खाने वाला परिवार से आता हूँ। जब कम मिर्च मसाला खाया जाए स्वाद के लिए नमक की आवश्यकता स्वतः कम हो जाती है। फिर भी चटनी, अचार, सलाद और नमकीन के शौक नमक की आपूर्ति का ज़रिया होते हैं। वह इस भगदड़ की ज़िंदगी में कब और कहाँ पूरे होते हैं।

तीन दशक पहले जब मेरी माँ को थोड़ा रक्तचाप बढ़ा तो पहले मैंने और बाद में सारे परिवार ने दही, सलाद आदि से शुरू करते हुए किसी भी खाद्य में ऊपरी नमक डालना बंद कर दिया।

इसके बाद बाद उच्च रक्तचाप और मधुमेह से बचाव की चिंता के चलते चीनी नमक के पारिवारिक उपभोग में और भी कमी आई।

उधर बढ़ती उम्र के साथ हमारी ख़ुराक कम होती जाती है तो कुल पारिवारिक उपभोग के अनुपात में अधिक उम्र और कि कम ख़ुराक वाले लोग वास्तव में कम नमक ले पाते हैं।

अब फिलहाल पापा को कुछ दिन के लिए प्रतिदिन पाँच ग्राम अतिरिक्त नमक खाने के लिए कहा गया है। हर दो घंटे बाद मैं उनपर नमक उपदेश झाड़कर आ रहा हूँ।

मगर रक्त जांच के अनुसार मेरा खुद का सोडियम और क्लोरीन दोनों काफी कम है और आदत के कारण नमक जीभ पर नहीं चढ़ रहा। मेरी चिकित्सक के अनुसार थायराइड की संभावित समस्या के कारण मुझे वापिस आयोडीन नमक भी खाना है। लाहौरी, सेंधा, लाल गुलाबी, काले पीले जैसे किसी पाकिस्तानी नमक के पंगे में ही नहीं फंसे रहना है।

नमक यानि सोडियम पोटेशियम की इस भारी कमी से होने वाले दुष्प्रभाव आप सब खुद ढूंढ ही लेंगे। 

परहेज़ से पार


मेरे पास असंभव कामों की एक लंबी सूची है। परहेज़ करना उनमें से एक है। नापसंद से नापसंद स्थान, वस्तु, खाद्य, व्यक्ति, कार्य, पुस्तक, कविता या कल्पना, किसी से भी परहेज़ कर पाना कठिन होता है।

ज़िंदगी भर आप कितना भी सोचें बुढ़ापे में अपने बाप जैसा न बनेंगे। अगर परहेज़ में डॉक्टर सिर्फ इतना लिख दे कि अपने बाप जैसा नहीं बनना तो बस तुरंत बुढ़ापा क्या आज के पहले ही हम बाप जैसे बन जाते हैं।

अब चिकित्सक ने लिखा कि नमक मीठा कम करो तो दाल सब्जी में नमक कम कर दिया जाता है खीर, चाय और कॉफी में मीठा। मगर सलाद, आचार चटनी जो ज़िंदगी भर देखे भी न हों, पूरी तरह नमकीन चटपटे होकर मेज पर सवार हो जाते हैं। मीठी चाय पीने वाले, एक नंबर के नशेड़ी लगते हैं और कड़वे पेय में बिना लेबल पढ़े मीठा लेमोनेड मिला लिया जाता है। मीठे से परहेज़ पर दो ग्लास गन्ने के जूस दो दाने चीनी से कम ख़तरनाक लगता है। गुड़ का तो कहिए ही मत, हिंदुस्तान में मधुमेह से मरने से एक मिनिट पहले तक कोई नहीं मानता कि गुड़ मधुमेह के लिए मीठा होता है। शहद या मधु का तो मधुमेह से नाम का ही संबंध ज्ञात प्रतीत होता रहता है। यदि इनमें से कुछ भी निजी सीमा से अधिक हो जाए तो चिकित्सक आप को और आप चिकित्सक को अल्पबुद्धि समझने लगते हैं। यदि इनमें से कोई एक वृद्ध हो तो दोनों एक दूसरे को मूर्ख से कम नहीं समझते। दोनों वृद्ध हों तो कुछ कहना बेकार हो जाता है।

नमक का तो मामला ही गड़बड़ है। नमक छोड़कर सेंधा बनाम लाहौरी बनाम मुल्तानी बनाम अलाने बनाम फलाने वाले तो विख्यात रसायन शास्त्री होते हैं। कुछ तो इतना कमाल करते हैं कि इस प्रकार के नमक को एनएसीएल की जगह एच2ओ कर देते हैं। सुना, रसायनशास्त्र के भारत विख्यात प्रोफसर तो इस प्रकार के नमक के रासायनिक संरचना पर कोई बड़ी फ़ेलोशिप घोषित करने के जुगाड़ में हैं। कुछ कदम आगे जाकर काला नमक लोगों का तारणहार बनता है।

क्या साधारण नमक को पिघलाने/उबालने या उसे हर्र के साथ पिघलाने/उबालने से उस की रासायनिक संरचना कुछ और हो जाती है? यदि बीमारों के विश्वास पर चलें तो ऐसा ही कुछ होता है। काला नमक अगर दही, सलाद, चटनी, अचार, या शिकंजी में काला नमक डाल कर खाया जाता है कि फीकी दाल सब्जी में आम तौर पर पड़ने वाले से अधिक नमक शरीर में जा टिकता है।

अब मुझे ही देख लीजिए, डॉक्टर ने दूध बंद किया तो केसर-इलायची-बादाम-काजू वाला दूध प्रारम्भ कर दिया। चाय कॉफी पीना तो दूध बंद होने के बाद ही प्रारम्भ किया। अभी-अभी समझ आया, गाय तो दूध ही नहीं देती, अमृत देती है। इतने साल से अमृत खरीदकर मैं नादान उसे दूध नामी विष समझ रहा था।

आज से अपना अमृत-महोत्सव प्रारम्भ।

चाय और रसम


न काले बाल,

न माथे के बल,

न बालों की लटें,

न कुर्ते की सलवटें,

मेरी उँगलियों के पोर

सुलझाना चाहते हैं

बस

तुम्हारी थकान

हर दिन।

मुझे शिकायत

है तुम से

तुम चाय नहीं पीतीं,

चाय, पेय नहीं 

दो पल

हवा से हल्के 

तुम नहीं जीतीं,

बाबजूद इसके कि मधुमेह है तुम्हें,

मुझे शिकायत

है तुम से।

मुझे दो माँ याद आती हैं

जब तुम कहती हो

आज बना दो अरहर की दाल।

एक जिसने नहीं सिखाई तुम्हें

अपने जैसी दाल बनाना।

एक जिसने सिखाई मुझे

अपने जैसी दाल बनाना।

माएँ

कुछ साज़िश करतीं हैं

या तुम?

मैं नहीं खेना चाहता

जीवन की नाव या कार

बराबर बैठ कर तुम्हारे

मैं रास्ते देखता हूँ

थोड़ा जलता हूँ

जब रास्ते तुम्हें देख

खिलखिलाते है। 

याद है

उस दिन

तुमने छोड़ दी थी पतवार

डगमगाती डोंगी में

कितना थका था मैं 

भँवर सा डोलते

तब तक जब तुम ने कहा 

संभालो इसे ठीक से

झील मुस्करा दी थी। 

जब तुम होती हो मेरे पीछे

आँखें देखतीं है तुम्हें

मेरे आगे

रास्ता उलीचते

काँटे हटाते

गलीचा बिछाते।

मामू-भांजा चौक पर

हल्के फुल्के गोलगप्पे 

सस्ते नहीं

अनमोल होते हैं

खाएं हम तुम 

एक साथ अगर।

नहीं पीना चाहता,

चाय, कॉफी, सुरा, शर्बत,

जब तक तुम साथ न हो

गुनगुने पानी में भी वरना 

धूप होती है

आओ आज शाम रसम पीते हैं। 

ऐश्वर्य मोहन गहराना