हिंदी में विनम्रता


Please, remove your shoes outside.

इस अंग्रेजी वाक्य का सही हिंदी अनुवाद क्या है?

  1. कृपया, अपने जूते बाहर उतार|
  2. अपने जूते बाहर उतारें|
  3. अपने जूते बाहर उतारिये|
  4. अपने जूते बाहर उतारियेगा|
  5. अपने जूते बाहर उतारने की कृपा करें|
  6. भगवान् के लिए अपने जूते बाहर उतार लीजिये|
  7. जूते बाहर उतार ले|
  8. जूते बाहर उतार ले, प्लीज|

हम हिन्दुस्तानियों पर अक्सर रूखा होने का इल्जाम लगता है| कहते हैं, हमारे यहाँ Please या Sorry जैसे निहायत ही जरूरी शब्द नहीं होते|

अक्सर हम तमाम बातों की तरह बिना सोचे मान भी लेते हैं| अब ऊपर लिखे वाक्यों को देखें|

हमारे क्रिया शब्दों में सभ्यता और विनम्रता का समावेश आसानी से हो जाता है तो रूखेपन का भी| हम प्लीज जैसे शब्दों के साथ भी रूखे हो सकते हैं और बिना प्लीज के भी विनम्र| आइये ऊपर दिए अनुवादों को दोबारा देखें|

  1. कृपया, अपने जूते बाहर उतार| यह एक शाब्दिक अनुवाद है और किसी भी लहजे से गलत नहीं हैं| मगर हिन्दुस्तानी सभ्यता के दायरे में यह गलत हैं क्योकि “उतार” में अपना रूखापन है जो प्लीज क्या प्लीज के चाचा भी दूर नहीं कर सकते|
  2. अपने जूते बाहर उतारें| यहाँ प्लीज के बगैर ही आदर हैं, विनम्रता है| क्या यहाँ प्लीज के छोंके के जरूरत है? इसके अंग्रेजी अनुवाद में आपको प्लीज लगाना पड़ेगा|
  3. अपने जूते बाहर उतारिये| क्या कहिये? ये तो आप जानते हैं कि इसमें पहले वाले विकल्प से अधिक विनम्रता है| अब इनती विनम्रता का अंगेजी में अनुवाद तो करें| आपको शारीरिक भाषा (gesture) का सहारा लेना पड़ेगा, शब्द शायद न मिलें|
  4. अपने जूते बाहर उतारियेगा| हम तो लखनऊ का मजाक उड़ाते रहेंगे| यहाँ आपको अंग्रेजी और शारीरिक भाषा कम पड़ जायेंगे| उचित अनुवाद करते समय कमरदर्द का ध्यान रखियेगा|
  5. अपने जूते बाहर उतारने की कृपा करें| क्या लगता है यह उचित वाक्य है| इसमें अपना हल्का रूखापन है| आपका संबोधित व्यक्ति को अभिमानग्रस्त या उचित ध्यान न देने वाला समझ रहे हैं और कृपा का आग्रह कर रहे हैं| यदि यह व्यक्ति आपके दर्जे से काफी बड़ा नहीं है तो यह वाक्य अनुचित होगा|
  6. कृपया, अपने जूते बाहर उतार लीजिये| लगता है न, कोई पत्नी अपने पति के हल्का डांट रही है|
  7. जूते बाहर उतार ले| यह तो आप अक्सर अपने बच्चों, छोटों और मित्रों को बोलते ही है| सामान तो है ही नहीं|
  8. जूते बाहर उतार ले/लें, प्लीज| यह विनम्रता है या खिसियानी प्रार्थना| हिंदी लहजे के हिसाब से तो खीज ही है|

वैसे आप कितनी बार विकल्प दो तीन और चार में कृपया का तड़का लगाते हैं?

चाचे दी हट्टी, कमला नगर


राजमा चावल और छोले भठूरे दिल्ली वालों की जान हैं| छोले भठूरे का बाजार दिल्ली के सबसे चुनौतीपूर्ण बाजार में से एक हैं| आम तौर पर सारे छोले भठूरे एक जैसे हैं, छोले का तेज मसाला और तैलीय भठूरे| मगर ज्यादा मसाला स्वाद का दुश्मन है, यह बात जिन्हें पता हैं वही शीर्ष पर हैं| आपको शीर्ष पर आने के लिए दस नाम कोई भी गिना देगा, जहाँ मामूली मामूली अंतर से भी स्वाद में जबरदस्त अंतर है|

एक सामान्य व्यक्ति के लिए चाचे दी हट्टी छोले भठूरे की एक आम दुकान है| यहाँ न आपको बैठने या खड़े होने की कोई खास व्यवस्था नहीं| ग्राहक गली में रखी तो मेज के सहारे छोले भठूरे खाते हैं| बहुत से ग्राहक यहाँ वहां खड़े होकर जुगाली करते नजर आते हैं| अगर यह पतली से गली न होती तो शायद आपको आते जाते वाहन भी परेशान करते| यह दिक्कततलब बात है, जब आप देखते हैं कि दुकान के आधी गली भरकर भीड़ है| आपको कतार में खड़ा होना होता है| कोई भी दिल्ली वाला केवल छोले भठूरे के लिए इतनी दिक्कत झेल लेगा, मगर यह तो चाचे दी हट्टी के छोले भठूरे हैं|

कमला नगर, दिल्ली विश्वविद्यालय के पास होने के कारण छात्र-छात्रों के युवा जीवन्तता का केंद्र है| दिल्ली की लड़कियां कमला नगर और सरोजनी नगर में ख़रीददारी करना पसंद करतीं हैं| इसी कमला नगर में भीड़ से थोडा सा हटकर यह गली हैं, जिसमें चाचे दी हट्टी है| दुकान के ऊपर सूचना पट को शायद ही कोई पढ़ता होगा – रावलपिंडी के छोले भठूरे| एक दर्द है – विस्थापन का| एक निशानदेही है, हिंदुस्तान की भोजन संस्कृति की| हिंदुस्तान – जहाँ कोस कोस पर पानी, चार कोस पर बानी, और चालीस कोस पर खानी बदल जाती है|

चाचे दी हट्टी की शान हैं भठूरे भरवां – आलू वाले भठूरे| अगर आप बोलकर सादे भठूरे नहीं मांगते तो भरवां आलू भठूरे मिलेंगे| आलू अच्छे से उबला हुआ है और मसाला सिर्फ उतना ही है जितना ज़रा सा भी ज्यादा न कहला सके| आम भठूरे के मुकाबले यह कम तैलीय हैं| भठूरे का तैलीय होना काफी हद तक कड़ाई के तेल की गर्मी पर निर्भर करता है|

ज्यादातर छोले भठूरे में मोटे काबली चना (सफ़ेद चना) प्रयोग होता है| चाचे दी हट्टी के छोले छोटे काबली चने से बने हैं| मसाला बिलकुल भी ज्यादा नहीं हैं| नवरात्रि के दिनों में जाने के कारण मैं सोचा कि छोले में प्याज व्रत त्यौहार की वजह से नहीं डाली गई है| मगर बताया गया कि प्याज का मसाले में प्रयोग नहीं होता| इस लिए प्याज न खाने वाले भी इसे आराम से खा सकते हैं| साथ में हैं इमली की चटनी| प्याज सलाद के तौर अपर अलग से है|

स्थान: चाचे दी हट्टी, कमला नगर, दिल्ली,

भोजन: शाकाहारी

खास: छोले भठूरे

पांच: साढ़े चार

दिल्ली, शाकाहारी, नई दिल्ली, छोले भठूरे, पंजाबी खाना, रावलपिंडी,

संस्कृत समस्या


मेरे लिए संस्कृत बचपन में अंकतालिका में अच्छे अंक लाने और मातृभाषा हिंदी को बेहतर समझने का माध्यम रही थी| बाद में जब संस्कृत सहित अपनी पढ़ी चारों भाषाओँ को आगे पढ़ने की इच्छा हुई तब रोजगार की जरूरतों ने उसे पीछे धकेल दिया| यदा कदा संध्या-हवन के लायक संस्कृत आती ही थी और पुरोहित तो मुझे बनना नहीं था| फिर भी संस्कृत पढ़ने की इच्छा ने कभी दम नही तोड़ा| जिन दिनों अलीगढ़ के धर्मसमाज महाविद्यालय में अध्ययनरत था संस्कृत पढ़ने की पूनः इच्छा हुई| उसी प्रांगण में धर्मसमाज संस्कृत महाविद्यालय भी था, जो प्रवेश आदि की जानकारी लेने पहुँचा| जानकारी देने वाले को दुःख हुआ कि मैं मुख्यतः धर्मग्रन्थ पढ़ने के लिए नहीं बल्कि कालिदास, शूद्रक, पंचतंत्र आदि साहित्य को पढने के संस्कृत सीखना चाहता था| उनका तर्क था कि यह सब तो अनुवाद से पढ़े जा सकते हैं| संस्कृत में कामसूत्र पढ़ना तो कदाचित उनके लिए पातक ही था| उनके अनुसार धर्मग्रन्थ पढ़कर अगर अपना जीवन और संस्कृत पाठ सफल नहीं किया तो जीवन और जीवन में संस्कृत पढ़ना व्यर्थ है|

विकट दुराग्रह है संस्कृत पढ़ाने वालों का भी| वेद –पुराण तक समेट दी गई संस्कृत एक गतिहीन अजीवित भाषा प्रतीत होती है| संस्कृत के बहुआयामी व्यक्तित्व को दुराग्रहपूर्ण हानि पहुंचाई जा रही है| एक ऐसी भाषा जिसमें जीवन की बहुत सारे आयामों पर साहित्य उपलब्ध है| संस्कृत को केवल धर्म तक समेट देना, उन लोगों को संस्कृत से दूर कर देता है जिन्हें धर्म में थोड़ा कम रूचि है|

अभूतपूर्व समर्थन के चलते संस्कृत विलुप्त होने की आशंकाओं से जूझ रही भाषाओँ में अग्रगण्य है| आपको मेरा आरोप विचित्र लगेगा और है भी| संस्कृत को समर्थन देने वालों का संस्कृत के प्रति एक धार्मिक दुराग्रह है| वह संस्कृत का प्रचार चाहते हैं और शूद्रों, मलेच्छों, यवनों, नास्तिकों के संस्कृत पढने के प्रति आशंकाग्रस्त भी रहते हैं| यह दुराग्रह संस्कृत को धर्म विशेष की भाषा सीमित भाषा बनाने का | कार्यकर रहा है| अन्यथा संस्कृत को समूचे भारत की भाषा बनाया जा सकता था|

समाचार है कि दिल्ली विश्वविद्यालय को अपने संस्कृत पाठ्यक्रम के लिए छात्र नहीं मिल सके हैं| कैसे मिलें? शिक्षक ने नाम पर दुराग्रही अध्यापक हैं| रोजगार ने नाम पर केवल अध्यापन, अनुवाद और पुरोहिताई है| आप आत्मसुखायः किसी को पढ़ने नहीं देना चाहते| संस्कृत पाठ्यक्रम में साहित्यिक गतिविधियों पर जब तक अध्यापक और छात्र ध्यान नहीं देंगे, यह पाठ्यक्रम नीरस बना ही रहेगा| जिसको पुरोहिताई, धर्म-मर्म आदि में रूचि है उनके लिए अन्य कुछ विश्वविद्यालय बेहतर विकल्प हैं|

यद्यपि आजकल सामाजिक माध्यमों में संस्कृत का प्रचार प्रसार करने के लिए भी कुछ गुणीजन समय निकालकर काम कर रहे हैं| परन्तु जब तक संस्कृतपंडितों के संस्कृत मुक्त नहीं होती, अच्छे दिन अभी दूर हैं|