मन का लगना


ज़िंदगी को हर कोई हँस खेल कर बिता लेना चाहता है| सब चाहते हैं दूरियाँ मिट जाएँ मन की| मगर यह दुनिया की सबसे कठिन प्रार्थना है| 

जो दूरियाँ देश-काल स्थापित करता है, उनका अधिक महत्व नहीं रहता| मीरा का मन कृष्ण से जुड़ता है और सुदामा का भी – न काल आड़े आता न देश-परदेश| 

समय की दूरी का क्या है जब मन हो वाल्मीकि के राम से मिला जाए या मीरा के कृष्ण से; जब मन हो दोनों में साम्य पाया जाए या उन के अंतर को समझा जाए| एक ही गीता हर मन मंथन में अलग सुर-संगीत रचती है और हर तत्त्व विन्यास में अनेक होकर एक रहती है| यह मन की माया है, ज्ञान-विज्ञान को क्यों, कैसा, कब कितना निचोड़े| 

भौगोलिक दूरियाँ मिटाना भी अब सहज है| मन की दूरियाँ कोस और फ़र्लांग में नहीं होतीं| आज तो संचार के साधन है – जब चाहा बात हो गई, एक दूसरे को देख लिया| कुछ अनुरागियों का नियम होता है मन मिलें या न मिलें दिन में दो बार ध्वनि-संबंध और दृश्य संबंध अवश्य स्थापित हो जाए| दूसरे को हर रोज अच्छा खाते पीते पहनते देखा जाए और उलहना दिया जाए – कितना पैसा बर्बाद करते हो; या कि उबली लौकी क्यों खाते हो रोज?

विज्ञान और ज्ञान क्रमशः देश और काल कि दूरियाँ मिटा सकते हैं| मन की दूरियाँ पाटने के लिए तो मन चाहिए – मन की लगन चाहिए| एक समय, एक कक्ष, एक विचार, एक हित, एक तन और एक मन होकर भी मन न मिले| ओह, क्या हो तब दोनों का मन एक ही राजदंड पर आ जाए| कौन भोगे और कौन भुगते? 

मन तो मिल जाए पर लगे कैसे? दो मन न लगें तो उनका मिलना क्या और न मिलना क्या| मन लगने के लिए मन मिलना सहायक है, परंतु आवश्यकता नहीं| दो मित्रों में एक का मन राजसिंहासन में और दूसरे का राजकाज में हो तो मन आपस में सकता है| मन लगने के लिए आवश्यक है एक दूसरे के मन को समझना, एक दूसरे के मन को सहेजना, एक दूसरे के साथ का तारतम्य| यह ही तो कठिन है| दोनों के सुर ताल मिलने चाहिए, जैसे शास्त्रीय संगीत में मिलते हैं गायक से सुर से हर वाद्य के सुर मिलते हैं, ताल मिलती है, थाप मिलती है तब स्वार्गिक सुर उत्पन्न होता है| उस सुर में सरसता और सरस्वती आती है|

यह मन लगाना एक दूसरे के साथ दो मन का रियाज़ मांगता है, इसमें दो मन का रियाज़ कितना भारी होता है? हम यह नहीं कह सकते कि हमारे मन का सुर यही रहेगा, आप अपने मन का सुर ताल हमसे मिलाएं| ऐसा हो भी जाये तो कितना चलेगा? आप किसी दबाब में डालकर सुर भले ही मिलवा लें पर पर मन कैसे मिलेगा? सुर मिल सकते हैं, समझौते हो सकते हैं, जीवन जिए जा सकते हैं पर बलात मन नहीं हिलमिल सकता| इसके लिए न क़ानून काम करेगा न लठ्ठ| हाथ लगेगा तो ग़ुलामी या समझौता – मन नहीं मिलेगा| 

आपसी संबंधों में शक्ति प्रदर्शन के चलते एक पक्ष झुकता तो है और धीरे धीरे उसका मन में खटास आती ही है|  

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