नवउत्सव


ये त्योहारों और दावतों का मुल्क है| जश्न हमारी आदत या शौक नहीं, लत है| त्योहारों की कमी नहीं हमारे पास – जब तक पैसा सिर पर चढ़ कर हमें गुलाम की तरह काम पर नहीं लगा देता, हम जश्न मनाते हैं, त्योहार मानते हैं| छुट्टी हो न हो, कुछ न भी कर पाएँ, शगुन ही हो जाए, कुछ मन रह जाए बच्चों का, कुछ ठाकुरजी (कृष्ण का बालरूप) का, कुछ हँस-बोल ले, वक़्त हो तो हंसी ठट्ठा हो ले| हिंदुस्तान और इसकी ज़िंदगी ऐसे ही चलती है| हाट-मेले तो हम मोहर्रम पर भी कर लेते हैं तो दशहरा, दाऊजी, चौथ-चौमासे पर भी| रावण जले जलेबी खाएं, पाप धोवे गंगा नहाएँ| क्या नहाने धोने, क्या बासी खाने, सब पर हमारा त्योहार हो जाए| 

भगदड़ में कुछ मेले ठेले, तीज त्योहार छूटे तो कोई नहीं विलायत से दो चार मना लिए| बसंत पंचमी पर कामदेव छोड़े, तो वैलेंटाइन पकड़ लिए| रुक्मणी छूटे तो राधा प्यारी, सबसे न्यारी जनक कुमारी| परशुराम ने माँ का गला काटा तो त्योहार, विलायत वालों ने माँ को गले लगाया तो त्योहार| कुछ न हो तो हमारे दो मुल्क जब अपना अपना झण्डा उतारते हैं शाम को तो आपसी घृणा का भी त्योहार कर लेते हैं हम| दुनिया भर का कुनबा जुटता है एक दूसरे ओर नारे लगाने फिर उसके बाद दोनों अपनी अपनी तरफ चल देते हैं चूर चूर नान खाने| हर शाम जब दुनिया डरती है कि अब लड़े तब लड़े, हमारे बाप अपनी अपनी औलादों से बोलते हैं, राजनीति मत झाड़, ये नेताओं के झगड़े है तू बिना चू चप्पड़ खाना खा| दुनिया भर के मुल्क हमारी खातिर हथियार बना बना कर पागल है और हम है कि ढूंढ रहे हैं कि यख़नी पुलाव, यख़नी बिरयानी और यख़नी ताहिरी के बनाने में क्या अंतर है?

घृणा के त्योहारों का भी तो इतिहास है: होलिका जलाते हुए, होलिका माई का जयकारा लगते हुए, किस ने सोचा कि हम किसी विरोध या घृणा को अंजाम दे रहे है| रावण जलता है तो उसका पांडित्य हमारे सिर चढ़ता है, हम तांडव स्त्रोत गाते हैं| ओणम के बारे में कोई पक्का तो बताए आज महाबलि की स्मृति है या वामन की या कोई घृणा है इसके पीछे| उत्सव तो महाभारत की जीत का भी रहा होगा, स्मृति तो जन्मेजय के नागयज्ञ की भी है| परमप्रतापी सम्राट अशोक कलिंग जीता, अहम् हारा, फिर एक दिन उसका आत्मसमर्पण दुनिया जीता, आज दुनिया में हमारा परचम कलिंग जीत का नहीं, अशोक के आत्मसमर्पण की विजय गाथा है| 

जो बीत गया, हमने मिट्टी डाल दी| हम तीज त्यौहार मेला जश्न करेंगें| कुछ नया और अच्छा खाएंगे| 

तो एक त्योहार और सही, एक आग और सही, एक ज़हर और सही, कुछ नीलकंठ और सही| कुछ तेरी करनी कुछ मेरी करनी, बातें करनी बातें भरनी| कितना लड़ेंगे? कहीं तो तू दर्द इतना दे कि दर्द दवा हो जाए, चल मिल बैठ कर थोड़ी सी पी जाए| छोड़ यार बहुत हुआ – कुछ चाय वाय सी पी जाए| 

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