दिल्ली संशोधन विधेयक


दिल्ली संशोधन विधेयक पर आपत्ति दर्ज आखिर क्यों की जाए? मुझे इसकी कोई आवश्यकता नहीं लगती| जिन्होंने जो बोया वो काटा| दिल्ली वालों, दिल्ली में रहने वालों और दिल्ली में आते जाते रहने वालों की लोकतंत्र में कोई आस्था नहीं| दिल्ली की आस्था तो सत्ता है, सत्ता दिल्ली का धर्म कर्म सब रहा है| दिल्ली वाले किसी को पाँच गाँव की चौकीदारी न दें ये तो सत्ता सुख देने की बात है|

दिल्ली को राज्य बनाने की मांग जनसंघ – भाजपा की थी| मगर सत्ता के फेर में उप-राज्य से समझौता किया| मगर दिल्ली को भाजपा ने ऐसी शानदार सत्ता दी कि जल्द ही दिल्ली की सत्ता तो क्या विपक्ष में भी उनका नामलेवा न रहा| कांग्रेस सत्ता में आई और शान शौकत के साथ राज किया| तथाकथित विपक्ष में बैठकर भाजपा हड्डियाँ चबाती रही| विपक्ष के नाम पर एक अस्तित्वहीनता का माहौल बना जिसमें आन्दोलन-जीवियों को विपक्ष का काम करना पड़ा आज भी आन्दोलन जीवी ही दिल्ली में विपक्ष का काम कर रहे हैं और उनकी जिम्मेदारियां बढ़ी ही है| भाजपा (संघ की बात नहीं कर रहा) विपक्ष में भी इतना सोती है कि वर्तमान विपक्ष के राष्ट्रीय नेता राहुल गाँधी भी शर्मा जाएँ| वैसे भी शीला जी इतना काम दिल्ली में कर गयीं कि किसी नेता को और अधिक काम की गुंजाईश नहीं दिख रही| केजरीवाल ने दिल्ली में इनता खैरात कर दिया कि अम्बानी के खजाने खाली हो जाएँ| भाजपा के लिए अगले दस साल दिल्ली में सत्ता पाना कठिन है| अब जिसे खट्टे अंगूर की बेल समझा जाए उसे कौन अपने बागीचे में सजाता है? तो दिल्ली राज्य या उपराज्य भाजपा के लिए बेकार है|

केजरीवाल दुःख दिखा रहे हैं मगर उनसे कोई सहानुभूति नहीं| इसलिए नहीं की उनका दिल्ली में काम बेकार है| मगर इसलिए कि दूरदर्शिता उनसे दूर रहती है| प्रधानमंत्री का सोचकर वह मुख्यमंत्री पद साधने लगते हैं| जम्मू कश्मीर को जब राज्य से गिरा कर केंद्र शासित क्षेत्र में बदला गया तो क्या बोले थे केजरीवाल, सबको पता है| सोचा न होगा कि कल उनके झौपड़े पर भी अंगारा गिरेगा| केंद्रीय भाजपा को लगता है कि जब मन होगा विधेयक पलट कर दिल्ली सत्ता में बैठ जायेंगे| जो नारद लोग विधेयक पर नारायण नारायण कर रहे हैं वो पूछना या सोचना भी नहीं चाहते कि सालों पहले भाजपा को पूर्ण राज्य क्यों चाहिए था और आज पूर्ण केंद्रशासन क्यों चाहिए| मगर केजरीवाल को जम्मू कश्मीर की आह लगी है, बिना बात समझे सोचे आह-वाह करने लगते हैं|

कांग्रेस का क्या किया जाए उनका खुला खेल फरुखाबादी था तो भाजपा का खुल्लम-खुल्ला खेल अहमदाबादी है| आप राष्ट्रपति शासन लाते थे यहाँ राज्य का दर्जा ही ख़त्म| देखिये आगे क्या होता है – बंगाल केरल का नंबर भी आता होगा| सत्ता के खेल में विभीषण बनिएगा तो स्वायत्ता क्यों कर मिलेगी? अपनी अपनी लंका बनाइये और करते रहिए अपनेअपने रामभजन|

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