विश्व-बंदी २५ अप्रैल


उपशीर्षक – स्व-तालाबंदियों की यादें  

हमारे लिए न तो तालाबंदी पहली है न कर्फ्यू| परन्तु पुरानी सब तालाबंदी मेरे अपने विकल्प थे|

मेरे जीवन की पहली तालाबंदी बारहवीं की बोर्ड परीक्षा से पहले आई थी|

छोटे से कस्बे में पढाई को लेकर मारामारी का माहौल नहीं था| बल्कि हालात यह थे कि पढ़ाने वाले शिक्षक भी हार मानकर बैठने लगते थे| उधर गणित को लेकर मेरे मन में भय व्याप्त होने लगा था| दसवीं के बाद मैंने तय किया था कि बिना प्राइवेट ट्यूशन लिए गणित विज्ञान पढ़ना कठिन है| परन्तु भारतीय माता-पिता इस तरह की बात कहाँ सुनते हैं? इसके बाद डेढ़ साल मौज मस्ती में काट दिए कि अनुत्तीर्ण होने का ख़तरा साफ़ दिखाई दे रहा था| इससे पहले की मेरी पूरी पढ़ाई छात्रवृत्ति के साथ हुई थी और अनुत्तीर्ण होने की कोई आदत भी नहीं थी| पूरे क़स्बे मोहल्ले को लगता था कि कितना भी आवारागर्दी करेगा – तृतीय श्रेणी तो आएगा ही| यह दो एक हितेषियों को छोड़कर किसी के लिए चिंता का विषय न था|

अचानक नववर्ष के ठीक पहले मोहल्ले के एक बड़े ने बिन मांगी सलाह दी कि किनारे से उत्तीर्ण होने से बेहतर है कि इस बात खाली उत्तर पुस्तिका रखकर अगली बार मेहनत करना| मगर विद्रोह का कीड़ा तो दिमाग में घुसा हुआ ही था तो उत्तीर्ण होने का निर्णय किया| किताबें खोलने के बाद पता चला कि इस बार उत्तीर्ण होना कठिन लगता है| फिर क्या था, समय सारिणी बनाई और चार घंटे की नींद पर अपने आप को लाया गया| उन दिनों योग का ठीक ठाक अभ्यास था तो नींद के नियंत्रण में योग ध्यान का सहारा लिया| किसी ने नींद को तीन चार महीने के लिए टालने के लिए मन्त्र तंत्र भी बताए थे – जिसमें इक्कठा की गई नींद बाद में पूरी करना अनिवार्य था| वैसे नींद को छः घंटे से चार घंटे पर लाना कोई बड़ी बात नहीं थी – दण्ड-बैठक, आसन, त्राटक, आवारागर्दी, खटाई, गुड़, चीनी, मिर्च, घी, तेल का परहेज तय हुआ – प्राणायाम और ठंडाई जारी रही| तीन चार महीने पक्की रसोई से कोई सम्बन्ध नहीं रखा – रूखी रोटी, सब्ज़ी, सलाद, दही-बूरा| अंतिम परीक्षा के बाद पक्की रसोई की इच्छा जता कर सोने चला गया था पर सालों तक यह अंतिम इच्छा बनी रही जिसे माँ ने पूरा किया|

परिणाम आने के बहुत बाद समझ आया था कि उत्तीर्ण होने की मेरी ज़िद ग़लत थी – अनुत्तीर्ण होकर पूरी तैयारी के साथ दोबारा परीक्षा देना अधिक उचित था| प्रण किया कि आगे इसका ध्यान रखा जाएगा – मेरे सभी सनदी लेखाकार और कंपनी सचिव जानते ही होंगे कि ध्यान रखने का ईश्वर ने भरपूर मौका दिया – साथ में स्व-तालाबंदियों का भी|

Enter your email address to subscribe to this blog and receive notifications of new posts by email.

कृपया, अपने बहुमूल्य विचार यहाँ अवश्य लिखें...

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.