भौकाल


कन्या पाठशाला चौराहे पर बजरंगी पनवाड़ी की दुकान,
बिक्री का समय शुरू होना चाहता है… पनवाड़ी कटे अधकटे पान सजा रहा है..
मजनूँ लौंडे सामने पुलिया पर पैर टिकाये वक्त काट रहे हैं..
चार मकान दूर से पंडिताइन का शोर शुरू…
पान खाना तो बहाना है… उम्र देखो पंडित अगली साल तुम्हारी बिटिया भी यहीं पढ़ने जाएगी…
पनवाड़ी ने एक कड़क बनारसी पान लगाना शुरू कर दिया… मिश्रा पंडित आते होंगे…
कॉलेज का घंटा टनटन कर जोर से दो बार बजा… पनवाड़ी ने बिना सर उठाये पान का बीड़ा पंडित की तरफ बढ़ा दिया…
फिर जोर से बोला भागो यहाँ से हरामजादो… जब देखो तब पिचपिचाये रहते हो… उसकी निगाह कॉलेज की तरफ उठी…
थानेदार की लड़की कॉलेज से निकल कर इधर ही आ रही है…
मिश्रा पंडित के ललियाए मूंह से पान की पीक चू कर बहने लगी है..
पनवाड़ी ने सोचा थाने से कोई आता होगा…
भागो सालो फ़िल्म शुरू हो रही है… बजरंगी पनवाड़ी के सुर में चेतावनी है या सूचना खुद नहीं पता…
मिश्रा पंडित सकपकाए… कल का भौकाल याद आया… मूंह में पान रख रखे बेसुरा गाने लगे…
जन गन मन जये हे..

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