बचपन से एक शब्द मुझे बेचैन करता है, “यवन”। इसका अर्थ प्रायः “यूनान” यानि ग्रीस देश से लिया जाता है। परंतु इसे अरब और वृहत्तर तुर्किस्तान के लिए भी प्रयुक्त माना जाता है और उपमहाद्वीप आकार के इन दोनों इलाकों के लोग मुस्लिम हुए तो उनके लिए भी प्रयुक्त हुआ।
मुझे भाषा और इतिहास की जानकारी न होने से यह मेरे लिए अधिक कष्टकर हो जाता है। किस से या किस विधि समाधान हो यह भी नहीं समझ आता।

मेरी समस्या है है कि मुझे यवन के समक्ष अरब और तुर्किस्तान के लिए कोई शब्द नहीं मिला। जो है वह यह यवन ही है। आखिर क्यों उन क्षेत्रों के लिए हमारे पास शब्द नहीं रहा जिनसे भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और उस से अधिक व्यापारिक संबंध यूनानियों के मुक़ाबले अधिक रहे और सिकंदर के आने से बहुत पहले से रहे। यूनान और रोम, पंद्रहवीं सदी से पहले सिकंदर के अलावा भारत के कभी सीधे संपर्क में नहीं या बहुत कम रहे। सारा संपर्क अरब और तुर्किस्तान के मार्फत रहा, फिर बाद में तो तुर्किस्तानी भारत में शासक बनकर भी आए। मगर तुरक शब्द आया भी तो बहुत बाद में और कम प्रयुक्त होता दिखाई देता है। साथ ही तुरक, जा आता है तो मुस्लिम तुर्क की ध्वनि अधिक देता है, इस्लामपूर्व तुरक की प्रायः नहीं। जबकि संपर्क पुराना है, इस्लाम पूर्व का है।
जबकि यह प्रामाणिक, और यदि प्रामाणिक न हो तो कम से कम स्वाभाविक है कि पहले निकट भौगोलिक क्षेत्र के लिए हमारे पास शब्द हो। यह संभव हो सकता है उस से दूर भौगोलिक क्षेत्र के लिए हम निकट भौगोलिक क्षेत्र वाले शब्द का कम से कम तब तक प्रयोग करें, जब तक कि हमें स्पष्ट न हो जाए कि वह अलग भौगौलिक क्षेत्र है – जैसे इंडीज़ या अमेरिका के लिए यूरोपीय व्यक्तियों द्वारा लंबे समय तक इंडिया – इंडियन प्रयोग होना।

मेरी एक समस्या और है, यवन शब्द उन ग्रन्थों भी में मिलता है जो आम धारणा में सिकंदर के समय से पहले रचित हुए। इस शब्द का प्रयोग यूनान के लिए मानते ही यह ग्रंथ सिकंदर के बाद के हो जाते हैं, मान लिए जाते हैं। यहाँ यह भी कल्पना है कि सिकंदर के पहले यूनान का भारत सीधा संपर्क नहीं था। इस मान्यता से मेरा कोई बैर नहीं, बल्कि इसे उचित मानता हूँ।
इस के आगे यूनान या यूरोप के लिए यवन शब्द का प्रयोग भाषाई आदर पर भी मुझे उचित नहीं लगता। इसके विपरीत मुझे यमन, ओमान, अदन आदि अरब इलाके भारत के अधिक निकट दिखते हैं और इनके संस्कृतकरण में यवन कहीं अधिक स्वाभाविक शब्द दिखाई देता है। इन इलाकों की प्राचीन सभ्यता भी उन प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के समय विकसित थी और स्वाभाविक रूप से संपर्क में रही थी। संपर्क था, व्यापार था और ग्रीस और रोम से व्यापार के यह मार्ग था, जो बीच के सीधे रेगिस्तानी भटकाव से अधिक स्वाभाविक और सुरक्षित था। समुद्री व्यापार मार्ग के लिए तो यह अधिक स्वाभाविक है।
मुझे लगता है यवन का अर्थ हमें मूल रूप से वर्तमान अरब के लिए मानना चाहिए फिर बाद में तुर्किस्तान के लिए और उसके बाद यदि कहीं हुआ हो तो सिकंदर पूर्व के यूनान के लिए। उसके बाद तो हमारे पास तुरक और यूनानी शब्द आ ही चुके थे।
