विश्व-बंदी २७ अप्रैल


उपशीर्षक – प्रकृति का पुनर्निर्माण

करोना के फैलाव के साथ साथ प्रकृति का विजयघोष स्पष्ट रूप से सुना गया है| दुनिया में हर व्यक्ति इसे अनुभव कर रहा है| सबसे बड़ी घोषणा प्रकृति ने ओज़ोनसुरक्षाकवच का पुनर्निर्माण के साथ की है| दुर्भाग्य से मानवता अभी भी प्रकृति के विजयघोष पर गंभीर नहीं है| अगर वर्ष २०२० में मानवता डायनासोर की तरह प्रकृति विलुप्ति का आदेश दे दे तो शायद पृथ्वी के नए सम्राट शायद १० लाख साल बाद मूर्ख मानवों की आत्मविलुप्ति को सहज ही पढ़ा रहे होंगे| यह ठीक वैसा ही है जैसे हम डायनासोर की विलुप्ति पढ़ते हैं| आज हम प्रकृति की यह चेतावनी स्पष्ट सुन सकते हैं: अगर मानव नहीं सुधरे तो पृथ्वी पर सबसे कब समय तक विचरण करने वाली प्राणी प्रजाति में मानव की गिनती की जाएगी|

ओज़ोन सुरक्षा कवच में अभी और भी छेद हैं और यह वाला सुराख़ इसी साल देखा गया था और इसे भरने में प्रकृति को मात्र दो या तीन महीने लगे| यह कार्य शायद करोना जन्य लॉक डाउन के कारण जल्दी संपन्न हो गया| इसके बनने और बिगड़ने का कारण जो भी रहा हो, दोनों घटना प्रकृति का स्पष्ट शक्ति प्रदर्शन हैं| यदि मानव अपनी बिगड़ीं हरकतें करने से कुछ और दिन रोका जा सका तो प्रकृति चाहे तो शेष ओज़ोन सुरक्षा कवच की मरम्मत भी कर सकती है|

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद यह स्पष्ट लगता है कि लॉकडाउन प्रतीकात्मक ढील के साथ बढ़ने जा रहा है| शहरी मध्यवर्ग आर्थिक दबाब के बाद भी डरा हुआ है और मुझे नहीं लगता कि स्तिथि जल्दी सामान्य होगी| गाँव और वन क्षेत्र को कदाचित इतनी चिंता न हो या फिर उनपर दबाब बहुत अधिक होगा| किसी मामूली इलाज के लिए भी अस्पताल जाने से लोग बचना पसंद करेंगे| इसका कारण मात्र भय नहीं बल्कि अस्पतालों को करोना के प्रति ध्यान केन्द्रित करने की भावना है| आश्चर्यजनक रूप से लोग अस्पतालों की कम जरूरत महसूस कर रहे हैं| स्वस्थ पर्यावरण, समुचित शारीरिक व मानसिक आराम और घर का ताजा खाना अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी बनकर उभरे हैं|

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च्यवनप्राश


भारतीय घरों में आलू, प्याज, मिर्च और चाय – चीनी – दूध के बाद च्यवनप्राश शायद सबसे ज्यादा जरूरी खाद्य है| अगर जाड़े का मौसम है और घर में बच्चे हैं तो हो नहीं सकता कि आप इसे न पायें| च्यवनप्राश का घर में होना ठीक ऐसे ही है जैसे घर में किसी अनुभवी बुजुर्ग का होना| यह दादी नानी का अजमाया हुआ नुस्खा है और वैद्यों की पसंदीदा अनुभूत औषधि, भारतीय घरों में घर का वैद्य|

इसमें क्या क्या औषधीय गुण हैं यह सब बाद की बात है, हमारे उत्तर भारतीय घरों में दो साल का बच्चा भी भरोसा करता है कि च्यवनप्राश खा लिया तो उसको दादी नानी का दुलार मिल गया; बीमारी से लड़ने की ताकत मिल गयी, कडकडाती ठण्ड से बचाव हो गया; और ठण्ड भरी शाम में भी घर से बाहर खेलने की अनुमति लगभग मिल ही गई|

कई बार तो शायद च्यवनप्राश से भरा चम्मच देखना ही बच्चे को हल्के सर्दी – जुखाम से मानसिक रहत दे देता है| एक चम्मच च्यवनप्राश खाकर सौठ वाले गुड से गुनगुना दूध – बचपन का पुराना नुस्खा|

मैंने कभी नहीं जाना कि च्यवनप्राश में क्या क्या पड़ता है मगर सदियों के इस भारतीय आयुर्वेदिक नुस्खे पर शायद किसी भी अत्याधुनिक औषधि से अधिक भरोसा रखता हूँ|

च्यवनपप्राश का स्वाद कम पसंद करने वाले बच्चे भी इसे चुपचाप खा लेते हैं| वैसे आजकल तो इसमें भी कई तरह के फ्लेवर्ड च्यवनप्राश बाजार में उपलब्ध हैं| मगर चयवनप्राश का अपना सदियों पुराना स्वाद हमेशा ही मुझे आकर्षित करता है| मेरे बचपन में, जब कभी मुझे फ्लेवर्ड मिल्क का मन करता था तो दूध में च्यवनप्राश भी एक विकल्प हुआ करता था जिसका स्वाद तो शायद मुझे बहुत पसंद नहीं था मगर मुझे यह आश्वस्ति रहती थे कि अब यह मेरे लिए फायदे का सौदा है|

मेरी माँ अक्सर पास पड़ौस की गर्भवती स्त्रियों और नई माताओं को भी जाड़े के दिनों में दिन में दो बार च्यवनप्राश खाने की सलाह देतीं थीं| उनका विचार था कि यह च्यवनप्राश हर हाल में गर्भस्थ और नवजात शिशु के खून में जरूर पहुंचेगा और लाभ पहुंचाएगा| च्यवनप्राश से जुड़े कई नुस्खे आपको देश भर के गाँव देहात में मिल जायेंगे| जैसे गुनगुने पानी से च्यवनप्राश ले लेने से सर्दी के दिनों का चढ़ता बुखार चढ़ना रुक जाता हैं| इसके साथ कई किद्वंती जुड़ी मिल जायेंगीं| कभी कभी आप पाएँगे कि कैसे मौसम से जुड़ी कई बीमारियों में मरीज च्यवनप्राश के खास विधि से सेवन करने पर ठीक हो जाता है| इनमें से बहुत सी सकारत्मक सोच और विश्वास के चलते आये मानसिक परिवर्तन से जुड़ी हो सकतीं है|

एक बाटी जरूर बताना चाहूँगा| कई बार जाड़ों में ठण्ड के कारण हम बच्चे खाना खाने से पहले और बाद में हाथ धोने से बचते थे| हमारा तर्क होता था, च्यवनप्राश खा लिया, अब बीमारी नहीं होगी| मेरे पिता हमेशा कहते, च्यवनप्राश अन्दर से रक्षा करेगा और हाथ धोना बाहर से|

च्यवनप्राश सिखाता है कि आप अगर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देते रहेंगे तो आप अपने जीवन के सबसे जरूरी व्यक्ति अपने आप और अपने परिवार को न सिर्फ बिमारियों से मुक्त रख पाएंगे, वरन चिंता मुक्त होकर और जरूरी कामों में ध्यान दे सकेंगे| हमारी संस्कृति बीमार होकर ठीक होने में विश्वास नहीं रखती वरन अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को लगातार बढ़ा कर बीमारियों से मुक्त रहने के विचार में निवेश करती है| च्यवनप्राश भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है जो हमें हमेशा से सिखाती है, इलाज से बचाव में समझदारी है और स्वास्थ्य में निवेश जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है|

टिपण्णी: यह पोस्ट डाबर च्यवनप्राश के सहयोग से इंडीब्लॉगर द्वारा आयोजित कार्यक्रम ले लिए लिखी गई है|