प्रकृति एक निर्दय न्यायाधीश है| वो गलतियाँ करने वालों को ही नहीं गलतियाँ करने सहने वालों को भी सजा देती है| चेन्नई में हालत की ख़बरें भी हमारे राष्ट्रीय मीडिया में कदम फूंक फूंक कर आ रहीं है| दिल्ली की हवा में हमनें खुद जहर घोल दिया है और बनिस्बत कि सरकार पर हम दबाब बनायें कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट और सामुदायिक यातायात को सुधारा जाएँ हम और हमारी सरकार बचकानी बातों में लगे हैं| दिल्ली और चेन्नई में किसका दुःख ज्यादा है कहना कठिन है; चेन्नई में दुःख सामूहिक और प्रत्यक्ष है जबकि दिल्ली में वो एकल और अप्रत्यक्ष है|
Tangy Tuesday Picks – December 22, 2015
दिल्ली और चेन्नई इस दिसंबर पर्यावरण के साथ मानवीय खिलवाड़ की सजा भुगत रहे है|
हम इस दुनिया को अपने लिए जन्नत बनाने का सपना लेकर एक ऐसा स्वप्नलोक रच रहे हैं जो दुनिया को एक चमकीला सुन्दर नरक बना रहा है| भोजन, पानी, हवा और सुरक्षित रिहायश का मूलभूत सुविधाएँ अब विलासिता के उस चरम पर पहुँचीं है जहाँ वो एक नशा, एक लत, एक फरेब, एक नरक बन जातीं हैं|
क्या हजारों करोड़ के घर में तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं में हम रात को उस नींद से अच्छी नींद ले पाते है, जो हजारों – लाखों साल पहले हमारे आदिवासी पूर्वज लेते होंगे? क्या हम उस प्राकृतिक भोजन से अधिक स्वादिष्ट – स्वास्थ्यकर भोजन कर पा रहें हैं जो हजारों – लाखों साल पहले हमारे आदिवासी पूर्वज करते होंगे? क्या हम उस हवा से बेहतर हवा में सांस ले पा रहें हैं जिसमें हजारों – लाखों साल पहले हमारे आदिवासी पूर्वज लेते होंगे? क्या प्रकृति के क्रोध से हमारे घर उन हजारों लाखों साल पुराने घरों के मुकाबले सुरक्षित हुयें हैं?
सभी प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक है| हमारा अत्याधुनिक अँधा विकास सिर्फ मन को समझाने की मानसिक विलासिता है; इसका कोई भौतिक आनंद – सुख – भोग – विलास भी वास्तव में नहीं है| हम किस विकास के लिए दौड़ रहें हैं; हम किस विकास को आलोचकों से बचाना चाहते हैं|
संसार का एक ही सत्य है: जिन्दगी भर तमाम विकसित भौतिक और मानसिक भोग – विलासों के बाद भी मानव उन आदिम सुखों की ओर भागने के किये भागता है जिन्हें वो नकारना चाहता है: तन और मन की तृप्ति और शान्ति; ॐ शान्ति|
क्या दिल्ली में कारें अपने अधिकांश जीवन बैलगाड़ियों की रफ़्तार से नहीं चलतीं? क्या रफ़्तार हमने बढाई है हमारे विकास ने?