विश्व-बंदी २२ मई


उपशीर्षक –  नकारात्मक विकास – नकारात्मक प्रयास

लम्बी दूरी की बस नहीं चल रहीं, पर ट्रेन चलने लगी हैं| सबसे जरूरी वाहन हवाई जहाज भी चलने की तैयारी में हैं|

कुछ दिन में सब कुछ चलने लगेगा| नहीं, चलेगा तो सुरक्षा और स्वास्थ्य| चिंता और भय सुबह सबेरे खूंटे पर टांग कर हम घर से निकलेंगे| मरेंगे तो कोविड वीर कहलायेंगे| यह मध्यवर्ग की कहानी है, मजदूर की नहीं| मजदूर का जो होना था हो चुका| उसकी स्तिथि तो सदा ही मौत के आसपास घूमती रही है|

पहली बार यह आग मध्यवर्ग तक आएगी| अंग्रेजों के काल के पहले और बाद के भारतीय इतिहास में पहली बार अर्थव्यवस्था की अर्थी निकल गई है| विकास के बड़े नारों के बाद भी विकास का कीर्तिमान नकारात्मक दर पर आ टिका है| कोविड मात्र बहाना बन कर सामने आया है वरना विकासदर तो कोविड से पहले ही शून्य के पास चुकी थी|

जिस समय भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर नकारात्मक अर्थव्यवस्था का आंकड़ा दे रहे थे, उसी समय सामाजिक माध्यम में सत्ता के अंधभक्त राहुल गाँधी के मूर्ख होने की चर्च में वयस्त थे| अर्थात सरकार और उसके गुर्गों के अपनी असफलता का अहसास तो है परन्तु उसपर चर्चा नहीं चाहिए| सरकार भूल रही है कि चर्चा होने से ही उसे सुझाव मिल सकेंगें| ज्ञात इतिहास में सरकारों के चाटुकारों ने को कभी भी कोई रचनात्मक सुझाव नहीं दिए हैं – बल्कि सरकार के आलोचकों और आम जनता की तरफ से आने वाले सुझावों में भी नकारात्मकता फैलाई है|

आज फेसबुक देखते समय गौर किया – एक मोदीभक्त ने कार्यालय खोलने की घोषणा की, तो किसी ने सलाह दी कि घर से काम करने में भलाई है| मोदीभक्त ने सलाह देने वाले को राष्ट्रविरोधी कह डाला| अब राष्ट्रविरोधी सज्जन ने सरकारी अधिसूचना की प्रति चिपकाते हुए कहा कि घर से काम करने की सलाह उनकी नहीं बल्कि खुद मोदी सरकार की है| इस पर मोदीभक्त ने समझाया कि भगवान मोदी मन ही मन क्या चाहते हैं यह भक्तों को समझ आता है| राष्ट्रद्रोही कामचोर लोग ही इस अधिसूचना की आड़ में देश का विकास रोकने के घृणित प्रयास कर रहे हैं|

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हिंदी भाषी मजदूर: विकास और वापसी


विकास किसे पसंद नहीं? विकास हिंदी क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय नारा है – बिहार और उत्तर प्रदेश में तो विकास के नारे और विकास की सरकार को पहला स्थान मिला हुआ है| देश का समग्र विकास हिंदी क्षेत्र का सबसे बड़ा सपना है| पान से लेकर चाय की दुकान तक पर हमारे क्षेत्र में विकास वार्ता होती रहती है|

कठिनाई है विकास करने की| ऐसा नहीं कि बिहार को विकास पसंद नहीं| जहाँ विकास की झलक भी दिखाई दे, हम पहुँच जाते हैं| देश का कोई नगर, कोई उद्योग, कोई सड़क, कोई भी विकास मंदिर ऐसा नहीं जहाँ हमारा श्रम न लगा हो|

हमारा विकास प्रेम भी ऐसा है कि जहाँ विकास की सम्भावना भी हो, वहाँ पहुँच जाते हैं| देश का विकास अगर हुआ है तो शायद हमारे मजदूरों के बाजुओं के बल पर ही हुआ है| मुंबई हो या चेन्नई उनकी सड़कों पर श्रम करता श्रमिक बिहार का नहीं तो हिंदी क्षेत्र का तो अवश्य ही है|

देश भर में हम हर स्थान पर हैं| विकास में हिंदी क्षेत्र के आप्रवासियों का योगदान मानने की जगह स्थानीय लोगों को लगता है कि हम उनके रोजगार छीनते हैं| अक्सर हम हम पर अपराध और गंदगी से हमें जोड़कर देखा जाने लगा है| किसी भी प्रदेश में स्थानीय अप्रशिक्षित मजदूरों की बेरोजगारी का कारण भी हमें ही माना जाने लगा है| पहले मुंबई और अब मध्यप्रदेश में हमारे विरुद्ध बातें उठने लगीं हैं| आज अनामंत्रित अतिथि का व्यवहार झेलना हमारी विडंवना है|

क्या हम जबरन वापसी के लिए विवश होंगे? क्या हमें उन गाँवों और शहरों में लौटना होगा जहाँ हम केवल यादें छोड़ आये हैं?

मगर ऐसा क्यों?

पहला यह कि अनामंत्रित अतिथि किसी को कोई पसंद नहीं करता| हम पहले पहुँचते हैं और फिर नौकरी ढूंढते हैं| अक्सर उन लोगों को टेड़ी निगाह से नहीं देखा जाता जिन्हें नौकरियाँ देकर आमंत्रित किया गया हो जैसे इंजिनियर या डॉक्टर|

दूसरा अप्रशिक्षित मजदूर आसानी से दिखाई दे जाने वाला समुदाय है| यह दिन भर सड़क या सार्वजानिक स्थानों पर दिखाई देने के कारण निगाह में जल्दी आता है| जब स्थानीय लोगों के मुकाबले आप्रवासी मजदूर अधिक दिखाई दें तो लोग सरलता से संज्ञान लेते हैं| हिंदी क्षेत्र में जनता और सरकारों के पास धन की कमी भी एक बड़ा कारण है| जब तक समृधि नहीं होती, लोग आदर नहीं करते| पंजाबी शरणार्थी हो या तिब्बती, सभी अपने साठ सत्तर के दशक की ऐसी कहानियां रखते हैं जब स्थानीय लोग हेयता का भाव रखने लगे थे| बाद में समृधि आने और हिंदी सिनेमा में पंजाबी दबदबे के चलते पंजाबी आज देश का प्रभावशाली सांस्कृतिक समुदाय है| इसी प्रकार, समृद्धि के साथ गुजरात का डांडिया और बिहार का छट भी प्रसिद्ध होने लगा है|

तीसरी और इन सब से बड़ी बात हैं – मतदाता के रूप में इस वर्ग की उदासी| यह तबका अपने स्थानीय चुनावों में ऐसा नेतृत्त्व नहीं चुन सका जो हिंदी प्रदेश विकास के सतत पथ पर ले जा सके| स्थानीय रोगजार, उद्योग और व्यवसाय नष्ट होते रहे| पलायन शुरू हो गया| हिंदी क्षेत्र सबसे बड़ा मानव संसाधन में सर्वाधिक धनी होने का कोई लाभ नहीं ले सका| दुर्भाग्य से देश की सरकारों का भी विकास सम्बन्धी नीति निर्माण गाँवों और छोटे कस्बे शहरों के हित में नहीं रहा| आज स्थानीय रोजगार की कमी के कारण हमें पलायन करना पड़ता है|

मुझे लगता है कि यह उचित है कि महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश ही नहीं, देश के सभी राज्यों की सरकारें और कंपनियाँ स्थानीय लोगों को रोजगार में प्राथिमिकता दें| पलायन को सस्ते मजदूर के लालच में बढ़ावा न दिया जाये| हिंदी प्रदेशों में विकास पर स्थानीय राज्य सरकारें समुचित ध्यान दें|