मोदी मुद्राकाण्ड के मर्मबिंदु


मुद्रा-विमुद्रीकरण प्रधानमंत्री मोदी की उच्च निर्णय क्षमता और कमजोर प्रशासनिक समझ का प्रतीक बन कर उभरा है| जिस समय आप इसे पढेंगे, सरकार दो दिन की परेशानी के दस दिन पूरे होने पर अपनी वैकल्पिक योजना -२० लागू कर चुकी होगी| यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उच्च प्रशानिक क्षमता और कमजोर नेतृत्वक्षमता के कारण सत्ता से बाहर हो गए|

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि विमुद्रीकरण नकली नोट और उनसे चलने वाले अपराधों और आतंकवाद पर कड़ा प्रहार है| परन्तु इसे काले धन पर प्रहार कहा जाना, वित्तीय समझ की कमी है| हालांकि सही प्रकार से लागू होने पर यह वर्तमान काले धन में कमी ला सकता था|

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सरकार के अब तक के कार्यकाल में कोई मौलिक निर्णय नहीं लिया था| अभी तक उन्होंने पिछली सरकारों के बकाया कामों को ही पूरा किया है| ऐसे में उन्हें किसी बड़े निर्णय से अपनी छाप देश पर छोड़ने की आवश्यकता थी| विमुद्रीकरण का निर्णय यदि सही रूप से लागू होता तो यह मोदी सरकार के लिए बहुत बढ़ी उपलब्धि होता|

समय

समय की दृष्टि से यह इस निर्णय का सर्वोत्तम समय था| भली प्रकार लागू होने पर यह निर्णय अगले आम चुनावों से ठीक पहले आम जन में अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ता| बैंक के बाहर कतार में खड़े होने के लिए न ज्यादा गर्मी है न सर्दी| हालांकि त्यौहार, विवाह और निर्यात का सबसे महत्वपूर्ण समय होने के कारण इस प्रक्रिया में थोड़ी सावधानी की जरूरत थी|

उद्घोषणा

इस प्रकार के फैसले के लिए रिज़र्व बैंक के गवर्नर द्वारा की गई घोषणा काफी होती| विमुद्रीकरण की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा किया जाना बहुत बड़ी बात है| उनके शब्दों को सुनते ही स्वभाविक रूप से गंभीर प्रतिक्रिया होनी ही थी| हर किसी को तुरंत ही अपने बड़े नोट के छुट्टे कराने की जरूरत थी और छोटे मोटे कालाधन धारक (जैसे रिश्वत्त या दहेज़ का पैसा) को उस धन को ठिकाने लगाने की| बड़े लोग शांत थे क्योकिं उनके पास संसाधन, समय, क्षमता तो थी ही साथ में वो लोग नगद में धन नहीं रखते| उन्हें अपने काये के लिए पचास दिन भी मिले हैं| जिस देश में कई एटीएम के सामने सामान्य रूप से लम्बी कतार लगती हों, वहां सबके लिए परेशान होना स्वाभाविक था|

सतही आकलन

दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री आम जनता के स्तर पर अर्थव्यवस्था का सही आकलन नहीं कर पाए| निश्चित रूप से आम जनता हजार के नोट का अधिक प्रयोग नहीं करती और माना जा सकता था कि उसका प्रयोग कालेधन के संचयन में हो रहा है| परन्तु, पांच सौ का नोट!! जब एक दिहाड़ी मजदूर की एक दिन की मजदूरी साढ़े तीन सौ रुपये हो तब यह मानने का कोई आधार नहीं कि उसके पास बचत का पांच सौ का नोट न हो| मंडी, गन्ना मिल आदि में किसान को भी पांच सौ के नोट में भुगतान होता है|

मगर सत्ता केवल यह देख पाई की पांच सौ के नोट बार बार बैंकिंग चैनल में नहीं आ रहे, इसलिए उसके हिसाब से कहीं न कहीं दबे हुए हैं| यह माँ कर गलती की गई कि पांच सौ का नोट केवल काले तहखानों में बंद है|

मुल्ला दो हजारी

दो हजारी नोट सत्ता की समझ प्रश्न लगाता है| हजार और पांच सौ के नोट के अभाव में दो हजार के नोट को चला पाना मुश्किल है| जो दूकानदार एक हजार के नोट पर न न न करता था, उसे आप दो हजार कैसे देंगे? क्या उसके पास छुट्टा होगा| कुछ लोग दो हजारी नोट के आने से काले धन को बाहर निकलता देख रहे है, परन्तु बड़े नोट हमेशा काले धन को सहारा देते हैं| यदि सरकार हजार और पांच सौ के नोट बंद कर केवल सौ के नोट छाप देती, तो काला धन संकट में आ जाता| कला धन संचयन करने वालों के लिए बड़े नोटों के स्थान पर इन छोटे नोटों को रखना मुश्किल हो जाता हैं|

उचित प्रक्रिया

सरकार के पास अपनी घोषणा को अमल में लाने की कोई भी कारगर योजना नहीं थी| दो दिन की परेशानी के दस दिन पूरे होने पर सरकार वैकल्पिक-योजना-२० लागू कर चुकी है| उन सब पर बात करने लगेंगे तो चुनाव का समय आ जायगा| आइये उस प्लान-अ पर बात करें जो कभी बनाया नहीं गया|

  • जनता को बैंकों द्वारा शुरू की गई यूपीआई (यूनाइटेड पेमेंट इंटरफ़ेस) के बारे में बताया जाता| {नोट – निजी कंपनियां इस कमी का लाभ उठा रहीं हैं}

  • सौ के नोट बिना किसी बड़ी घोषणा के बहुतायत में छापे जाते|
  • बैंकें हजार और पांच सौ के नोट का एक सप्ताह पहले वितरण बंद कर देतीं|
  • एक सप्ताह के नोटिस पर हजार और पांच सौ के नोट का विमुद्रीकरण होता|
  • यह घोषणा शुक्रवार शाम को होती, क्योकिं अधिकतर लोग शुक्रवार से पहले सप्ताहांत के दो दिनों के लिए पैसा निकाल लेते हैं| उन्हें और पैसे की जरूरत नहीं होती|
  • डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, कैशलेस पेमेंट पर सभी प्रकार के चार्ज और कर कम से कम कुछ समय के लिए समाप्त किये जाते|
  • लोगों को अपने बैंक खाते से अधिक रकम निकलवाने की सुविधा पहले दी जाती, परन्तु बंद किये गए नोट पहले ही एटीएम और बैंक से हटा लिए जाते|
  • रकम बदलवाने का काम एक हफ्ते बाद शुरू किया जाता|
  • किसी भी व्यक्ति को अपनी पूरी रकम एक बार में ही जमा करने (बिना धन सीमा मगर आयकर संख्या के साथ) या (धन सीमा और किसी के पहचान पत्र के साथ) बदलवाने की सुविधा होती|
  • रकम जमा करने और बदलवाने के लिए हर व्यक्ति को आयकर संख्या और आधार संख्या के आधार पर सरकार दिन तय करती और समाचार पत्र, रिज़र्व बैंक और टेलीविजन पर सूचना दी जाती| जैसे किसी संख्या विशेष से शुरू होने वाले व्यक्ति और संस्थान एक विशेष दिन बुलाये जाते और अपनी अपनी बैंक में पैसा जमा करने या निकट की बैंक में पैसे बदलवाने जाते|
  • किसी व्यक्ति का दोबारा धन बदलने के लिए एक शपथपत्र यानि हलफ़नामा देने की जरूरत होती की यह धन पहली बार में क्यों नहीं बदला या जमा किया जा सका|

Advertisement

आम आदमी पार्टी की वापिसी


दिल्ली में आम आदमी की सरकार वापिस आ गई है|

दिल्ली विधानसभा में हुए दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के बाद दिल्ली की जनता में यह भाव तो था कि केजरीवाल को अंतिम समय तक जनलोकपाल के लिए संघर्ष करना चाहिए था, मगर केजरीवाल के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी| इस बात का सीधा प्रमाण यह है कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के मत प्रतिशत में कोई कमी नहीं आई थी|

लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं का दिल्ली से बाहर जाकर चुनाव लड़ना, दिल्ली की जनता को अखरा जरूर और भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें भगौड़ा कह कर इस बात का राजनीतिक प्रयोग भी किया| मगर, “भगौड़ा” अलंकार का प्रयोग लम्बे समय तक कर कर भाजपा ने न सिर्फ उसे चालू राजनीतिक शब्द बना दिया बल्कि अपने शीर्ष नेता के भगौड़ेपन को भी प्रश्न के रूप में प्रस्तुत कर दिया|

logo

दिल्ली चुनाव में मोदी लहर पर भरोसा कर कर भाजपा ने सबसे बड़ा नुक्सान यह किया कि अनजाने में  ही दिल्ली की जनता को मोदी सरकार का आकलन करने को विवश कर दिया| दिल्ली में मोदी की स्तिथि अनजाने में ही एक ऐसे प्रधानमंत्री की हो गयी जो पिछले दरवाजे से दिल्ली का मुख्यमंत्री भी था| जिस समय मोदी सरकार अपने लोकसभा जीत के जश्न में मशगूल थी, दिल्ली के हर दरवाजे पर आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता क्षमायाचना कर रहे थे| यह पहली बार था कि कोई भूतपूर्व मुख्यमंत्री बिना किसी दवाब और राजनितिक लफ्फाजी के माफ़ी मांग रहा था| सबसे महत्वपूर्ण बात, इस समय दिल्ली की जनता के दिल में जनलोकपाल बिल का संघर्ष और विधानसभा में हुआ हंगामा बुरे वक़्त की तरह बसा हुआ था| इस संघर्ष का एकमात्र नेता केजरीवाल ही हो सकता था|

भाजपा समर्थक केजरीवाल पर निजी हमलों में लगे थे| आप समर्थकों की विनम्रता का अर्थ भाजपाई उनके आत्मसमर्पण के तौर पर ले रहे थे| मगर इस तरह भाजपा दिल्ली के मुद्दों से भटक रही थी| उधर दिल्ली राज्य की मोदी सरकार लगातार गलतियाँ कर रही थी| दुर्भाग्य से केंद्र सरकार के दावे भी अपना इम्तहान दे रहे थे|

मोदी सरकार १०० दिन के भीतर काले धन की वापिसी के वादे से पीछे हट गयी| मोदी सरकार ने जिस स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम के गठन का दावा किया, उसकी सच्चाई दिल्ली में सबको पता थी और लोग उच्चतम न्यायलय के निर्देशों से भली भांति परिचित थे| भले ही सरकार काला धन न ला पाती, मगर यह झूठा दावा उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न बन गया|

भाजपा नेतृत्व ने इसी समय दिल्ली प्रदेश सरकार की तुलना नगर निगम से कर दी| दिल्ली राज्य में कई नगर निगम मौजूद होने के कारण यह तुलना मतदाता को गले नहीं उतरी और इसे अपमान की तरह लिया गया| इस तुलना ने यह अंदेशा भी जगा दिया कि दिल्ली को मोदी सरकार के रहते पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलने वाला| यह बात खुद दिल्ली भाजपा में डर पैदा कर गई|

इसके बाद दिल्ली में भाजपा मोदी के अलावा कोई नेता नहीं दे पाई| एक दिन अचानक उसे बाहर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार लेकर आना पड़ा| इसने प्रदेश भाजपा की नेतृत्व क्षमता पर प्रश्न लगा दिए|

उधर केजरीवाल कछुआ चाल से दिल्ली के गली कूचों में आगे बढ़ रहा था, मोदी सरकार अपने भाषण में व्यस्त थी| भारत और दिल्ली के जो बजट केन्द्रीय वित्तमंत्री ने भारतीय संसद में रखे उनका भले ही अंतरिम बजट कहकर भाजपा ने प्रचार किया हो, मगर यह मोदी सरकार के उस चमत्कारिक व्यक्तित्व के विपरीत था जिसका दावा लोकसभा चुनाव में किया गया था|

मोदी सरकार का अगला कदम एक बार फिर गलत पड़ा, दिल्ली की आधी से अधिक आबादी उन गांवों के उन परिवारों से आती है जिनमें महात्मागाँधी राष्ट्रिय ग्रामीण रोजगार योजना में काम मिल रहा था| उस योजना का रुकना, दिल्ली में हाड़ मांस लगा कर काम कर रहे लोगों पर बोझ बढ़ा गया| हालत यह थी कि मोदी सरकार अपने पहले ६ महीनों की एक मात्र सफलता जन – धन को चर्चा में नहीं ला पाई| इसका कारण शायद यह था कि इस योजना में सरकार को जनता का धन प्राप्त हुआ था और अभी तक सरकार ने कोई भी सब्सिडी इन खातों में जमा नहीं कराई थी|

उधर खाने पीने की चीजों के दाम कम नहीं हुए. मगर मोदी सरकार मौसमी सब्जियों के दाम बता बता कर महंगाई कम होने का दावा कर रही थी| लोग उसे अनदेखा नहीं कर रहे थे, बारीकी से परख रहे थे| जब शाहजी सस्ते पेट्रोल और डीजल का रायता फैला रहे थे, जनता अन्तराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमत पर आह भर रही थी| सबके सामने हर रोज पेट्रोल पर कगाये जा रहे टैक्स मुँह चिड़ा रहे थे|

रेडियो पर मन की बात, स्वागत योग्य बात थी मगर इसने कम से कम मोदी जी की छवि “अपने मुँह मियां मिट्ठू” की बना दी| भले ही मोदी जी गाँव में जनता से सीधे जुड़े हों, मगर मन से नहीं जुड़ पाए| उनकी छवि काम कम, बातें ज्यादा की बन रही थी| रेडियो, टीवी और अखबार में हो रहा व्यापक कवरेज

अनजाने में ही उन्हें “बनता हुआ तानाशाह” बना रहा था|

अभी दुनियां में कहीं भी गुजरात के दंगे भुलाये नहीं गए उधर दिल्ली के दंगे, टूटते लुटते चर्च ख़बरों में आ रहे थे| उधर केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आधीन रहने वाली पुलिस ने दावा कर दिया कि सन २०१४ में दिल्ली में सैकड़ों मंदिर भी लुटे या जलाये गए| यह सरकार द्वारा अपनी असफलता का लज्जास्पद ऐलान था| लोग अब यह नहीं पूछ रहे थे कि लुटे या जलाये गए मंदिर कौन कौन से थे? लोग इन मंदिरों के खजानों ने गड़बड़ी की आशंका जता रहे थे|

प्रधानमंत्री ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के नेताओं को बुला कर शानदार विदेश नीति का जो प्रस्तुतीकरण किया, उस पर प्रश्न तब उठे जब वो अपनी दूसरी नेपाल यात्रा में नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की सलाह दे आये| यह भारत में उनके कान खड़ा कर देने वाली बात थी| जब तक लोग इस बात पर कुछ शोर मचाते, अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा की घोषणा हो गई| सब कुछ शानदार चल रहा था कि प्रधानमंत्री जी १० लाख का नामपट्टी सूट पहन कर अपनी सादगी का मजाक उड़ा बैठे| साथ ही दिल्ली का मूड देखकर ओबामा ने भारत में साम्प्रदायिक स्तिथि पर टिपण्णी कर डाली| यह न सिर्फ देश के अंदरूनी मामलों में अमरीकी हस्तक्षेप है, बल्कि देश की विदेश नीति की असफलता भी है| मजे की बात यह रही कि सरकार ने ओबामा को रवाना करते ही विदेश सचिव सुजाता सिंह को सिर्फ इसलिए त्यागपत्र देने के लिए विवश कर दिया था| सरकार उन्हें जिन गलत सलाहों को देने का आरोप लगा रही थी, वह सही हफ्ते भर में ही सही साबित हो चुकी थी|

सरकारी अधिकारियों की बर्खास्तिगी मोदी सरकार का शगल बन चुका है| देश के सबसे बड़े रक्षा अनुसन्धान संस्थान के प्रमुख को अज्ञात कारणों से बर्खास्त कर दिया गया| अग्निमैन नाम से विख्यात अविनाश चंदर देश के सबसे बड़े रक्षा वैद्यानिक है और पूर्व राष्ट्रपति कलाम की पंक्ति से माने जाते है| कई बार कहा जाता रहा है कि अमरीका को भारत के अग्नि कार्यक्रम से हमेशा दिक्कत रही है| अभी इन दोनों बर्खास्तगी का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि चुनाव के ठीक पहले गृहसचिव भी त्यागपत्र दे गए| इन सभी त्यागपत्रों के पीछे मामला जो भी रहा हो, मगर सरकार कठघरे में थी|

मोदी सरकार ने चुनावों से ठीक पहले दिल्ली में अनियमित बस्तियों के नियमितीकरण की घोषणा कर दी| मगर किसी भी प्रकार का क़ानून नहीं बनाया गया| न ही किसी प्रकार की प्रक्रिया का पालन किया गया| दिल्ली भर में हुई चुनावी रैलियों में भाजपाई किसी भी प्रकार की कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता से ही इंकार करते नजर आये| उधर सुरक्षा एजेंसीज की आपत्ति के बाद भी दिल्ली के सारे फुटपाथ केसरिया और हरे रंग में रंग दिए गए|

भाजपा दिल्ली में केजरीवाल के अपमान और उसकी खांसी के मजाक में लगी रह गयी और केजरीवाल जीत गया| जब भाजपा के लोग आप पर शराब बांटने का आरोप लगा रहे थे उनके एक उम्मीदवार चुनाव के पहले वाली रात शराब बांटते पकड़े गए

केजरीवाल के ४९ दिनों के काम के आगे मोदी सरकार के २४९ दिन के भाषण काम नहीं आये|

दिल्ली अभियान


दिल्ली में चुनाव आ गए है| हाल में ही चुनाव आयोग ने दिन दिनांक मुहूर्त घोषित कर दिए|

और उसके तुरंत पहले, मफलर में गला लपेट कर खों खों करते केजरीवाल को हराने के लिए लोकतंत्र के चक्रवर्ती चमत्कार मोदी रामलीला मैदान में अभिनन्दन रैली कर चुके हैं| अब दिल्ली के झींगुर पहलवान को हराने के लिए बड़ोदा बनारस के गामा पहलवान को उतरना पड़े तो जनता में सन्देश तो साफ़ साफ़ चला ही जाता है|

भाजपा को दिल्ली में मुख्यमंत्री उम्मीदवार का नाम बताने के लिए भी इतनी मेहनत करनी पड़ रही है कि राहुल गाँधी भी हँस हँस के लोटपोट हो चुके होंगे| यह वही भाजपा है जहाँ नेता और दावेदार लाइन लगा कर शाहजी के दरवाजे खड़े हैं| मगर दिल्ली, दिल्ली है| लगता है देश की राजधानी नई दिल्ली की सत्ता संभालना आसान है अर्ध – राज्य दिल्ली को जीतना मुश्किल| यह वही दिल्ली है जहाँ देश के प्रधानमंत्री को रोज झाड़ू लगनी पड़ रही हैं| लोदी गार्डन से रोज साफ सुथरा कूड़ा मँगाया जाता है, भाई सफाई करना कोई सरल काम नहीं है|

अब देश के सबसे बड़े संघठन शास्त्री और देश की सबसे बड़ी पार्टी को अपने लिए मुख्यमंत्री पद प्रत्याशी के संभावित प्रत्याशी आयातित करने पड़ रहे हैं| शाजिया इल्मी और किरण बेदी, जिनका एक समय भाजपा और और बाद में आपस में ३६ का आंकड़ा रहा, भाजपा में ससम्मान विराजमान हैं| किरण बेदी भाजपा के लिए महारथी साबित होतीं हैं या चुनावों के बाद… बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले… गातीं है यह तो १० फरवरी को ही पता चलेगा| मगर इतना तो सामने है ही की भाजपा को दिल्ली में पुराने भाजपाइयों पर भरोसा नहीं है|

आज जब सोशल मीडिया के पुराने रिकॉर्ड सबके सामने उपलब्ध हैं, पुराने भाजपाइयों और नए भाजपाइयों के पुराने गीत अब चुनावों में खुलकर बजेंगे|

अब देखना यह है कि सफाई अभियान की झाड़ू चलती है या चुनाव चिन्ह की|