आम आदमी पार्टी की वापिसी


दिल्ली में आम आदमी की सरकार वापिस आ गई है|

दिल्ली विधानसभा में हुए दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के बाद दिल्ली की जनता में यह भाव तो था कि केजरीवाल को अंतिम समय तक जनलोकपाल के लिए संघर्ष करना चाहिए था, मगर केजरीवाल के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी| इस बात का सीधा प्रमाण यह है कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के मत प्रतिशत में कोई कमी नहीं आई थी|

लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेताओं का दिल्ली से बाहर जाकर चुनाव लड़ना, दिल्ली की जनता को अखरा जरूर और भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें भगौड़ा कह कर इस बात का राजनीतिक प्रयोग भी किया| मगर, “भगौड़ा” अलंकार का प्रयोग लम्बे समय तक कर कर भाजपा ने न सिर्फ उसे चालू राजनीतिक शब्द बना दिया बल्कि अपने शीर्ष नेता के भगौड़ेपन को भी प्रश्न के रूप में प्रस्तुत कर दिया|

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दिल्ली चुनाव में मोदी लहर पर भरोसा कर कर भाजपा ने सबसे बड़ा नुक्सान यह किया कि अनजाने में  ही दिल्ली की जनता को मोदी सरकार का आकलन करने को विवश कर दिया| दिल्ली में मोदी की स्तिथि अनजाने में ही एक ऐसे प्रधानमंत्री की हो गयी जो पिछले दरवाजे से दिल्ली का मुख्यमंत्री भी था| जिस समय मोदी सरकार अपने लोकसभा जीत के जश्न में मशगूल थी, दिल्ली के हर दरवाजे पर आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता क्षमायाचना कर रहे थे| यह पहली बार था कि कोई भूतपूर्व मुख्यमंत्री बिना किसी दवाब और राजनितिक लफ्फाजी के माफ़ी मांग रहा था| सबसे महत्वपूर्ण बात, इस समय दिल्ली की जनता के दिल में जनलोकपाल बिल का संघर्ष और विधानसभा में हुआ हंगामा बुरे वक़्त की तरह बसा हुआ था| इस संघर्ष का एकमात्र नेता केजरीवाल ही हो सकता था|

भाजपा समर्थक केजरीवाल पर निजी हमलों में लगे थे| आप समर्थकों की विनम्रता का अर्थ भाजपाई उनके आत्मसमर्पण के तौर पर ले रहे थे| मगर इस तरह भाजपा दिल्ली के मुद्दों से भटक रही थी| उधर दिल्ली राज्य की मोदी सरकार लगातार गलतियाँ कर रही थी| दुर्भाग्य से केंद्र सरकार के दावे भी अपना इम्तहान दे रहे थे|

मोदी सरकार १०० दिन के भीतर काले धन की वापिसी के वादे से पीछे हट गयी| मोदी सरकार ने जिस स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम के गठन का दावा किया, उसकी सच्चाई दिल्ली में सबको पता थी और लोग उच्चतम न्यायलय के निर्देशों से भली भांति परिचित थे| भले ही सरकार काला धन न ला पाती, मगर यह झूठा दावा उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न बन गया|

भाजपा नेतृत्व ने इसी समय दिल्ली प्रदेश सरकार की तुलना नगर निगम से कर दी| दिल्ली राज्य में कई नगर निगम मौजूद होने के कारण यह तुलना मतदाता को गले नहीं उतरी और इसे अपमान की तरह लिया गया| इस तुलना ने यह अंदेशा भी जगा दिया कि दिल्ली को मोदी सरकार के रहते पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलने वाला| यह बात खुद दिल्ली भाजपा में डर पैदा कर गई|

इसके बाद दिल्ली में भाजपा मोदी के अलावा कोई नेता नहीं दे पाई| एक दिन अचानक उसे बाहर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार लेकर आना पड़ा| इसने प्रदेश भाजपा की नेतृत्व क्षमता पर प्रश्न लगा दिए|

उधर केजरीवाल कछुआ चाल से दिल्ली के गली कूचों में आगे बढ़ रहा था, मोदी सरकार अपने भाषण में व्यस्त थी| भारत और दिल्ली के जो बजट केन्द्रीय वित्तमंत्री ने भारतीय संसद में रखे उनका भले ही अंतरिम बजट कहकर भाजपा ने प्रचार किया हो, मगर यह मोदी सरकार के उस चमत्कारिक व्यक्तित्व के विपरीत था जिसका दावा लोकसभा चुनाव में किया गया था|

मोदी सरकार का अगला कदम एक बार फिर गलत पड़ा, दिल्ली की आधी से अधिक आबादी उन गांवों के उन परिवारों से आती है जिनमें महात्मागाँधी राष्ट्रिय ग्रामीण रोजगार योजना में काम मिल रहा था| उस योजना का रुकना, दिल्ली में हाड़ मांस लगा कर काम कर रहे लोगों पर बोझ बढ़ा गया| हालत यह थी कि मोदी सरकार अपने पहले ६ महीनों की एक मात्र सफलता जन – धन को चर्चा में नहीं ला पाई| इसका कारण शायद यह था कि इस योजना में सरकार को जनता का धन प्राप्त हुआ था और अभी तक सरकार ने कोई भी सब्सिडी इन खातों में जमा नहीं कराई थी|

उधर खाने पीने की चीजों के दाम कम नहीं हुए. मगर मोदी सरकार मौसमी सब्जियों के दाम बता बता कर महंगाई कम होने का दावा कर रही थी| लोग उसे अनदेखा नहीं कर रहे थे, बारीकी से परख रहे थे| जब शाहजी सस्ते पेट्रोल और डीजल का रायता फैला रहे थे, जनता अन्तराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमत पर आह भर रही थी| सबके सामने हर रोज पेट्रोल पर कगाये जा रहे टैक्स मुँह चिड़ा रहे थे|

रेडियो पर मन की बात, स्वागत योग्य बात थी मगर इसने कम से कम मोदी जी की छवि “अपने मुँह मियां मिट्ठू” की बना दी| भले ही मोदी जी गाँव में जनता से सीधे जुड़े हों, मगर मन से नहीं जुड़ पाए| उनकी छवि काम कम, बातें ज्यादा की बन रही थी| रेडियो, टीवी और अखबार में हो रहा व्यापक कवरेज

अनजाने में ही उन्हें “बनता हुआ तानाशाह” बना रहा था|

अभी दुनियां में कहीं भी गुजरात के दंगे भुलाये नहीं गए उधर दिल्ली के दंगे, टूटते लुटते चर्च ख़बरों में आ रहे थे| उधर केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आधीन रहने वाली पुलिस ने दावा कर दिया कि सन २०१४ में दिल्ली में सैकड़ों मंदिर भी लुटे या जलाये गए| यह सरकार द्वारा अपनी असफलता का लज्जास्पद ऐलान था| लोग अब यह नहीं पूछ रहे थे कि लुटे या जलाये गए मंदिर कौन कौन से थे? लोग इन मंदिरों के खजानों ने गड़बड़ी की आशंका जता रहे थे|

प्रधानमंत्री ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के नेताओं को बुला कर शानदार विदेश नीति का जो प्रस्तुतीकरण किया, उस पर प्रश्न तब उठे जब वो अपनी दूसरी नेपाल यात्रा में नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की सलाह दे आये| यह भारत में उनके कान खड़ा कर देने वाली बात थी| जब तक लोग इस बात पर कुछ शोर मचाते, अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा की घोषणा हो गई| सब कुछ शानदार चल रहा था कि प्रधानमंत्री जी १० लाख का नामपट्टी सूट पहन कर अपनी सादगी का मजाक उड़ा बैठे| साथ ही दिल्ली का मूड देखकर ओबामा ने भारत में साम्प्रदायिक स्तिथि पर टिपण्णी कर डाली| यह न सिर्फ देश के अंदरूनी मामलों में अमरीकी हस्तक्षेप है, बल्कि देश की विदेश नीति की असफलता भी है| मजे की बात यह रही कि सरकार ने ओबामा को रवाना करते ही विदेश सचिव सुजाता सिंह को सिर्फ इसलिए त्यागपत्र देने के लिए विवश कर दिया था| सरकार उन्हें जिन गलत सलाहों को देने का आरोप लगा रही थी, वह सही हफ्ते भर में ही सही साबित हो चुकी थी|

सरकारी अधिकारियों की बर्खास्तिगी मोदी सरकार का शगल बन चुका है| देश के सबसे बड़े रक्षा अनुसन्धान संस्थान के प्रमुख को अज्ञात कारणों से बर्खास्त कर दिया गया| अग्निमैन नाम से विख्यात अविनाश चंदर देश के सबसे बड़े रक्षा वैद्यानिक है और पूर्व राष्ट्रपति कलाम की पंक्ति से माने जाते है| कई बार कहा जाता रहा है कि अमरीका को भारत के अग्नि कार्यक्रम से हमेशा दिक्कत रही है| अभी इन दोनों बर्खास्तगी का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि चुनाव के ठीक पहले गृहसचिव भी त्यागपत्र दे गए| इन सभी त्यागपत्रों के पीछे मामला जो भी रहा हो, मगर सरकार कठघरे में थी|

मोदी सरकार ने चुनावों से ठीक पहले दिल्ली में अनियमित बस्तियों के नियमितीकरण की घोषणा कर दी| मगर किसी भी प्रकार का क़ानून नहीं बनाया गया| न ही किसी प्रकार की प्रक्रिया का पालन किया गया| दिल्ली भर में हुई चुनावी रैलियों में भाजपाई किसी भी प्रकार की कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता से ही इंकार करते नजर आये| उधर सुरक्षा एजेंसीज की आपत्ति के बाद भी दिल्ली के सारे फुटपाथ केसरिया और हरे रंग में रंग दिए गए|

भाजपा दिल्ली में केजरीवाल के अपमान और उसकी खांसी के मजाक में लगी रह गयी और केजरीवाल जीत गया| जब भाजपा के लोग आप पर शराब बांटने का आरोप लगा रहे थे उनके एक उम्मीदवार चुनाव के पहले वाली रात शराब बांटते पकड़े गए

केजरीवाल के ४९ दिनों के काम के आगे मोदी सरकार के २४९ दिन के भाषण काम नहीं आये|

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आप की शीतलहर


 

“दिल्ली की सर्दी” अगर अपने आप में एक मुहावरा है तो “दिल्ली का मौसम” और “मौसम का मिज़ाज” भी कहीं से भी पीछे नहीं हैं| इस समय दिल्ली में शीतलहर का मौसम है और इस बार “आप की शीतलहर” की मार है|

 

दिल्ली के चुनाव परिणामों से पहले दिल्ली के पिछले दो दशकों को अगर देखें तो हमें मानना होगा कि दिल्ली में विकास हुआ है| बिजली, पानी, सड़क, आदि की भी कोई बड़ी समस्या नहीं दिखाई देती है| दिल्ली मेट्रो दिल्ली के विकास का अग्रदूत बनकर खड़ीं दिखाई देती है| फिर क्या हुआ कि दिल्ली में कांग्रेस की शीला सरकार को हार देखनी पड़ी?

 

English: Jantar Mantar, New Delhi with Park Ho...

English: Jantar Mantar, New Delhi with Park Hotel हिन्दी: जंतर मंतर, दिल्ली (Photo credit: Wikipedia)

 

१.      जनता ने विकास में भ्रष्टाचार को गहराई से महसूस किया;

 

२.      विकास की मौद्रिक लागत की अधिकता जनता को समझ नहीं आई;

 

३.      जब दिल्ली मेट्रो लाभ में गयी तो डीटीसी के घाटे पर सवाल उठे;

 

४.      बिजली पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के निजीकरण में, जनता को जिम्मेदारी से भागती सरकार और विपक्ष दिखाई देता है;

 

५.      बिजली कंपनी के खातों में धांधली की खबर से जनता में आक्रोश है; और

 

६.      हाल की नकली महंगाई ने भी जनता के कान खड़े कर दिए हैं|

 

यदि हम साधारण कहे जाने वाले लोगों से बात करते हैं तो पाते हैं कि सभी तबकों में संसद में काम ठप्प रहना; कानूनों का लम्बे समय तक पारित न होना; ताकतवर लोगों के मुकदमों का टलते रहना सब आक्रोश पैदा करता है| लोग जन – लुभावने वादों पर अब अधिक मतदान नहीं करते| सभी को नागनाथ – साँपनाथ की राजनीति से मुक्ति चाहिए|

 

हाल के चुनावों से यह तो स्पष्ट है कि देश में अब कांग्रेस के विरुद्ध माहौल है| परन्तु भाजपा के लिए आसान राह नहीं है| उसके पास मोदी समर्थक वोट से अधिक कांग्रेस विरोधी वोट का बल है| सबसे बड़ी कठनाई यह है कि “भाई – भाई, मिलकर खाई, दूध मलाई” का भाव जनता में मौजूद है जिसे नारा बनना ही बाकि रह गया है|

 

क्या आप ये नारा बुलंद कर पाएगी?

 

“भाई – भाई, मिलकर खाई, दूध मलाई”

 

आम आदमी पार्टी संसदीय दल के लिए चुनौती


Arvind Kejriwal and friends

Arvind Kejriwal and friends (Photo credit: vm2827)

नवोदित आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनाव के रोचक परिणामों से उत्पन्न चुनौती का सामना कर पाने के लिए मेरी शुभकामनायें|

चुनाव परिणामों को देखने के बाद मेरी यह धारणा प्रबल हुई कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अहंकार का शिकार हुई|

साथ ही भाजपा सही समय के तुरंत बाद सत्तापक्ष और विपक्ष के विरुद्ध उत्पन्न जन आक्रोश को समझने में सफल हुई| साथ ही भाजपा ने उचित समय पर न केवल चुनावी रणनीति में बदलाव किये वरन समय पूर्व ही चुनाव उपरांत की संभवनाओं पर भी मंथन किया|

भाजपा ने सही छवि के व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी बनाया| भाजपा ने अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी के रूप में आआपा की पहचान की और उसकी छवि बिगाड़ने के सारे प्रयास किये अथवा उनमें भाग लिया| भाजपा के पास क्षेत्र वार समीकरणों, मतदान परिणामों और उनके दूरगामी प्रभावों का पूरा आंकलन था|

आप देख सकते है कि रामकृष्णपुरम से आआपा प्रत्याशी शाज़िया इल्मी को बेहद प्रभावी तरीके से चिह्नित किया गया| उन पर लगाये गए आरोप भले ही कहीं से भी आये हों, परन्तु भाजपा में उन्हें प्रभावी तरीके से प्रचारित किया| भाजपा ने इल्मी को आआपा के तथाकथित असल चहरे के रूप में पेश करने का प्रयास किया जिसे सोशल मीडिया पर बार बार शेयर किया गया|

इल्मी का उस क्षेत्र से चुना जाना संघ परिवार के लिए आत्महत्या करने जैसा होता क्योंकि उस क्षेत्र में विश्व हिन्दू परिषद् का मुख्यालय है और मुस्लिम आबादी का कोई बड़ा प्रभाव नहीं है| भाजपा हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र से “पढ़ी लिखी मुस्लिम महिला” को जीतने देकर, देश भर के कट्टरपंथी हिन्दू समाज को नया सन्देश नहीं जाने दे सकती थी| हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र से “पढ़ी लिखी मुस्लिम महिला” का जीतना कई नए सन्देश देता –

अ)    सुशासन के बढ़ा हुआ महत्त्व,

आ)  हिन्दू मुस्लिम खाई को भरना,

इ)      हिन्दू समाज में मुस्लिम समाज की सकारात्मक छवि

ई)      मुस्लिम महिला और समाज को विकास और खुली सोच का आदर्श

उ)     सांप्रदायिक राजनीति का अंत

मतदान के दिन उसके पोलिंग एजेंट पूरी तन्मयता से हर मतदाता को चिन्हित कर रहे थे और उसके मूड को भांपने का प्रयास कर रहे थे| उन्हें तीसरे पहर तक यह सही जानकारी थी कि किस पोलिंग बूथ पर किसको कितना मतदान हुआ है| भाजपा के बंधे हुए समर्थकों को शाम से ही बुला बुला कर मतदान कराया गया|

आप देख सकते हैं कि बहुत से चुनाव क्षेत्रों में अंतिम समय में हुए मतदान से ही भाजपा ने जीत हासिल की है| देर शाम के इस मतदान ने अन्य चुनावी रणनीतिकारों को सकते में डाल दिया था|

मतगणना के दिन जब यह तय हुआ कि समस्त परिश्रम के बाद भाजपा पूर्ण बहुमत के पास नहीं पहुँच रही है तो उन्होंने बहुत शीघ्र उन्हें अपनी आगे की रणनीति के पासे चलने प्रारंभ कर दिए हैं| मुझे भाजपा की प्रशंसा करने चाहिए कि उसने दिल्ली में दंभ का प्रदर्शन नहीं किया और मंझे हुए राजनीतिक दल की तरह अपने कदम उठाने का निर्णय किया है|

 इस समय भाजपा ने सबसे बड़ा दल होने के बाद भी सरकार बनाने की पहल करने से मन कर दिया है| हम इस समय बाजपेयी जी की तेरह दिन की सरकार से इसकी तुलना नहीं कर सकते| उस समय भाजपा अपनी सरकार को शहीद कर कर हिन्दू जनता को यह सन्देश दे रही थी कि अन्य सारे दल उसके विरुद्ध साजिश कर रहे हैं| आज अगर भाजपा सरकार बना कर सत्ता लोलुप होने की छवि नहीं बनाना चाहती| दूसरा सरकार बनाने के लिए होने वाली जोड़तोड़ उसे आआपा के मुकाबले में बेहद कमजोर नैतिक पायदान पर ले आएगी| अगर जल्द ही चुनाव होते हैं तो उसे अपने सारे राजनैतिक दाँव पेच चलाने का पूरा समय मिल जायेगा| यदि यह चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ होते हैं तो उस समय दिल्ली के स्थानीय मुद्दों और आआपा के सत्तर स्थानीय घोषणापत्रों पर राष्ट्रीय मुद्दे छाये रहेंगे| उस समय भाजपा दिल्ली में मोदी – केजरीवाल मुकाबले में मोदी की शक्ति को बढ़ा कर देखती है|

यह भी देखना है की भाजपा किस प्रकार सरकार बनाने की जिम्मेदारी से भागने का दोष संभालती है|

 आआपा के किये यह अभी नयी शुरुवात है और अभी उसका राजनैतिक अन्नप्राशन होना है| उसके लिए सौभाग्य की बात है कि वह दूसरा बड़ा दल है| अगर वह सरकार बनाती है तो सत्ता लोलुपता के स्तर पर उसमें और अन्य दलों में कोई अंतर नहीं रह जायेगा| सरकार बनाने के बाद उसके उसके ऊपर अपने घोषणापत्र लागू करने का दबाब होगा जिसे बिना पूर्ण बहुमत लागू करना कठिन है| लेकिन उसे यह भी नहीं दिखाना है कि वह विरोध की राजनीति में इतनी रम गयी है कि आज सत्ता से भी भाग रही है|

आआपा पर यह चुनौती है कि वह किस तरह भाजपा को सरकार बनाने के लिए प्रेरित करे| उस से भी बड़ी चुनौती यह है कि किस तरह से आआपा इस विधानसभा के भंग होने की स्तिथि में जनता को यह सन्देश देती है कि गलत प्रकार की राजनीति ने दिल्ली में दोबारा चुनावों की स्तिथि पैदा कर दी है|

 यदि आआपा किसी अन्य दल की सरकार को चलने देकर बेहद सकारात्मक विपक्ष की भूमिका अपना सकती है| आआपा भाजपा के घोषणापत्र से वह मुद्दे जनता को बता सकती है जिनसे उसकी सहमति है| खुले मंच से यह घोषणा की जा सकती है कि यदि भाजपा अपने घोषणा पत्र में से चिह्नित घोषणाओं पर पहले तीन महीने के भीतर अमल का भरोसा दे तो आआपा उसकी सरकार को अन्य मामलों पर मुद्दों के आधार पर समर्थन दे सकती है|