चाय और रसम


न काले बाल,

न माथे के बल,

न बालों की लटें,

न कुर्ते की सलवटें,

मेरी उँगलियों के पोर

सुलझाना चाहते हैं

बस

तुम्हारी थकान

हर दिन।

मुझे शिकायत

है तुम से

तुम चाय नहीं पीतीं,

चाय, पेय नहीं 

दो पल

हवा से हल्के 

तुम नहीं जीतीं,

बाबजूद इसके कि मधुमेह है तुम्हें,

मुझे शिकायत

है तुम से।

मुझे दो माँ याद आती हैं

जब तुम कहती हो

आज बना दो अरहर की दाल।

एक जिसने नहीं सिखाई तुम्हें

अपने जैसी दाल बनाना।

एक जिसने सिखाई मुझे

अपने जैसी दाल बनाना।

माएँ

कुछ साज़िश करतीं हैं

या तुम?

मैं नहीं खेना चाहता

जीवन की नाव या कार

बराबर बैठ कर तुम्हारे

मैं रास्ते देखता हूँ

थोड़ा जलता हूँ

जब रास्ते तुम्हें देख

खिलखिलाते है। 

याद है

उस दिन

तुमने छोड़ दी थी पतवार

डगमगाती डोंगी में

कितना थका था मैं 

भँवर सा डोलते

तब तक जब तुम ने कहा 

संभालो इसे ठीक से

झील मुस्करा दी थी। 

जब तुम होती हो मेरे पीछे

आँखें देखतीं है तुम्हें

मेरे आगे

रास्ता उलीचते

काँटे हटाते

गलीचा बिछाते।

मामू-भांजा चौक पर

हल्के फुल्के गोलगप्पे 

सस्ते नहीं

अनमोल होते हैं

खाएं हम तुम 

एक साथ अगर।

नहीं पीना चाहता,

चाय, कॉफी, सुरा, शर्बत,

जब तक तुम साथ न हो

गुनगुने पानी में भी वरना 

धूप होती है

आओ आज शाम रसम पीते हैं। 

ऐश्वर्य मोहन गहराना

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नीबू की चाय


नीबू की चाय से उठती भाप

की उस भीनी भीनी सी गंध में

अरे तुम ही तो हो!!

 

साँसों की सरगम में घुलकर

मेरे फेफड़ों में उतरते हुए

मेरी रक्त शिराओं में बहती

मेरे हर विचार का असल

अरे तुम ही तो हो!!

 

नीबू की चाय के हर घूँट में

खट्टे मीठे से नमकीन स्वाद में

अरे तुम ही तो हो!!

 

मेरे होठों पर गुलाबी मिठास

मेरी जीभ के नमकीन अहसास

रोम रोम का कांपता कम्पन

रगों में दौड़ती गुनगुनी धुप

अरे तुम ही तो हो!!

 

चाय की छोटी सी प्याली में

ठहरे समंदर की शांत लहरों में

अरे तुम ही तो हो!!

 

मेरी धड़कनों की धुँधली सी ध्वनि

माथे पर उँगलियों की छुवन सी

स्पर्श के सरगम से संगीत तक

ठंडे भारी पल में गर्माहट सी

अरे तुम ही तो हो!!

नीबू की चाय से उठती भाप

की उस भीनी भीनी सी गंध में

अरे तुम ही तो हो!!