हिंदी भाषी मजदूर: विकास और वापसी


विकास किसे पसंद नहीं? विकास हिंदी क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय नारा है – बिहार और उत्तर प्रदेश में तो विकास के नारे और विकास की सरकार को पहला स्थान मिला हुआ है| देश का समग्र विकास हिंदी क्षेत्र का सबसे बड़ा सपना है| पान से लेकर चाय की दुकान तक पर हमारे क्षेत्र में विकास वार्ता होती रहती है|

कठिनाई है विकास करने की| ऐसा नहीं कि बिहार को विकास पसंद नहीं| जहाँ विकास की झलक भी दिखाई दे, हम पहुँच जाते हैं| देश का कोई नगर, कोई उद्योग, कोई सड़क, कोई भी विकास मंदिर ऐसा नहीं जहाँ हमारा श्रम न लगा हो|

हमारा विकास प्रेम भी ऐसा है कि जहाँ विकास की सम्भावना भी हो, वहाँ पहुँच जाते हैं| देश का विकास अगर हुआ है तो शायद हमारे मजदूरों के बाजुओं के बल पर ही हुआ है| मुंबई हो या चेन्नई उनकी सड़कों पर श्रम करता श्रमिक बिहार का नहीं तो हिंदी क्षेत्र का तो अवश्य ही है|

देश भर में हम हर स्थान पर हैं| विकास में हिंदी क्षेत्र के आप्रवासियों का योगदान मानने की जगह स्थानीय लोगों को लगता है कि हम उनके रोजगार छीनते हैं| अक्सर हम हम पर अपराध और गंदगी से हमें जोड़कर देखा जाने लगा है| किसी भी प्रदेश में स्थानीय अप्रशिक्षित मजदूरों की बेरोजगारी का कारण भी हमें ही माना जाने लगा है| पहले मुंबई और अब मध्यप्रदेश में हमारे विरुद्ध बातें उठने लगीं हैं| आज अनामंत्रित अतिथि का व्यवहार झेलना हमारी विडंवना है|

क्या हम जबरन वापसी के लिए विवश होंगे? क्या हमें उन गाँवों और शहरों में लौटना होगा जहाँ हम केवल यादें छोड़ आये हैं?

मगर ऐसा क्यों?

पहला यह कि अनामंत्रित अतिथि किसी को कोई पसंद नहीं करता| हम पहले पहुँचते हैं और फिर नौकरी ढूंढते हैं| अक्सर उन लोगों को टेड़ी निगाह से नहीं देखा जाता जिन्हें नौकरियाँ देकर आमंत्रित किया गया हो जैसे इंजिनियर या डॉक्टर|

दूसरा अप्रशिक्षित मजदूर आसानी से दिखाई दे जाने वाला समुदाय है| यह दिन भर सड़क या सार्वजानिक स्थानों पर दिखाई देने के कारण निगाह में जल्दी आता है| जब स्थानीय लोगों के मुकाबले आप्रवासी मजदूर अधिक दिखाई दें तो लोग सरलता से संज्ञान लेते हैं| हिंदी क्षेत्र में जनता और सरकारों के पास धन की कमी भी एक बड़ा कारण है| जब तक समृधि नहीं होती, लोग आदर नहीं करते| पंजाबी शरणार्थी हो या तिब्बती, सभी अपने साठ सत्तर के दशक की ऐसी कहानियां रखते हैं जब स्थानीय लोग हेयता का भाव रखने लगे थे| बाद में समृधि आने और हिंदी सिनेमा में पंजाबी दबदबे के चलते पंजाबी आज देश का प्रभावशाली सांस्कृतिक समुदाय है| इसी प्रकार, समृद्धि के साथ गुजरात का डांडिया और बिहार का छट भी प्रसिद्ध होने लगा है|

तीसरी और इन सब से बड़ी बात हैं – मतदाता के रूप में इस वर्ग की उदासी| यह तबका अपने स्थानीय चुनावों में ऐसा नेतृत्त्व नहीं चुन सका जो हिंदी प्रदेश विकास के सतत पथ पर ले जा सके| स्थानीय रोगजार, उद्योग और व्यवसाय नष्ट होते रहे| पलायन शुरू हो गया| हिंदी क्षेत्र सबसे बड़ा मानव संसाधन में सर्वाधिक धनी होने का कोई लाभ नहीं ले सका| दुर्भाग्य से देश की सरकारों का भी विकास सम्बन्धी नीति निर्माण गाँवों और छोटे कस्बे शहरों के हित में नहीं रहा| आज स्थानीय रोजगार की कमी के कारण हमें पलायन करना पड़ता है|

मुझे लगता है कि यह उचित है कि महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश ही नहीं, देश के सभी राज्यों की सरकारें और कंपनियाँ स्थानीय लोगों को रोजगार में प्राथिमिकता दें| पलायन को सस्ते मजदूर के लालच में बढ़ावा न दिया जाये| हिंदी प्रदेशों में विकास पर स्थानीय राज्य सरकारें समुचित ध्यान दें|

 

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दो ऑटोरिक्शा चालक


अभी गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में अपना पर्चा प्रस्तुत करने के लिए जाना हुआ| जाते समय अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से विश्वविद्यालय तक और लौटते समय दिल्ली कैंट से लोदी रोड तक ऑटो रिक्शा की सवारी का लुफ्त उठाया और सामायिक विषयों पर चर्चा हुई| दोनों रिक्शा चालकों की समाज और देश के प्रति जागरूकता और उस पर चर्चा करने की उत्कंठा ने मुझे प्रभावित किया|

गुजरात:

मुझे नियत समय पर पहुंचना कठिन लग रहा था और रास्ता भी लम्बा था| बहुत थोड़े से मोलभाव के बाद, मैं अपनी दाढ़ी और पहनावे से मुस्लिम प्रतीत होने वाले चालक के साथ चल दिया| मैंने सामान्य शिष्टाचार के बाद सीधे ही प्रश्न दाग दिया. अगले चुनावों में वोट किसे दोगे| बिना किसी लाग लपेट के उत्तर था, मोदी| मैंने दोबारा पूछा, भाजपा या मोदी? मोदी सर| मैंने कहा, वो तो कसाई है, उसे वोट दोगे| चालक ने शीशे में मेरी शक्ल देखी, आप कहाँ से आये है? मैंने कहा दिल्ली से, अलीगढ़ का रहने वाला हूँ| उसने लम्बी सांस ली और शीशे में दोबारा देखा| मैंने उचित समझा कि बता दूँ कि हिन्दू हूँ|

“हिन्दुओं से डर नहीं लगता सर, सब इंसान हैं|” थोड़ी देर रुका, सर ये गुजरात है, “जिन हिन्दुओं ने बहुत सारे मुसलामानों की जान बचाई थी वो भी सबके सामने मोदी ही बोलते है| बोलना पड़ता है सर| वोट का पता नहीं, अगर दिया तो मोदी को नहीं देंगे और कांग्रेस या और कोई हैं ही नहीं तो देंगे किसे?” अब मेरे चुप रहने की बारी थी|

काफी देर हम लोग चुप रहे, फिर उसने शुरू किया, “सरकार बड़े लोगों की होती है और हम तो बस वोट देते हैं| अगर वोट भी न दें तो ये लोग तो हमें कभी याद न करें| इस देश में वोट बैंक और नोट बैंक दो ही कुछ पकड़ रखते हैं| हम कोशिश कर रहे हैं, वोट बैंक बने रहें| इसलिए वोट देंगे|”

Drive thru

Drive thru (Photo credit: Nataraj Metz)

दिल्ली:

दिल्ली कैंट स्टेशन पर उतरने ऑटो रिक्शा दलाल से मीटर किराये से ऊपर पचास रुपया तय हुआ| ऑटो चालक सिख था| उसने बताया कि ज्यादातर जगहों पर अवैध पार्किंग ठेके है और ये लोग पचास रुपया लेते है| पुलिस इन ठेके वालों से हफ्ता वसूलती है और ये बिना रोकटोक ऑटो खड़ा करने की जगह देते हैं| दिल्ली एअरपोर्ट पर ऑटो के लिए कोई वैध – अवैध पार्किंग नहीं है क्योंकि ऑटो रिक्शा देश की शान के खिलाफ हैं| ऑटो पर विज्ञापन से लेकर पुलिस भ्रष्टाचार तक लम्बी चर्चा हुई| उसने भाजपा और कांग्रेस को सगा भाई बताया| “हिस्सा तय है जी सारे देश में इनका ७० – ३० का|” “कॉमनवेल्थ की समिति में दोनों के लोग थे साहब|” “क्रिकेट का रंडीखाना तो दाउद चलाता है साहब और भाजपा – कांग्रेस के लोग उसमें नोट बटोरने जाते हैं|” उसके मन और जुबान की कडुवाहट बढती रही और मेरे लिए सुनना कठिन हो गया|

अंत में उसने कहा, “साहब हमें नहीं पता कि केजरीवाल कैसा करेगा, क्या करेगा और उसके पास मंत्री बनाने लायक अच्छे समझदार लोग हैं या नहीं; मगर हम उसे वोट देकर जरूर देखेंगे|”

मैं सोचता हूँ, अगर देश की आम जनता के मन में लोकतंत्र की भावना मजबूत हैं, यही अच्छी बात दिखती है| वरना तो लोग हथियार उठाने के लिए भी तैयार ही जाएँ| कहीं पढ़ा था न इन्ही दो चार साल में “शहरी नक्सलाईट”|