विश्व-बंदी ११ अप्रैल


उपशीर्षक –  कॉर्पोरेट असामाजिक गैरजिम्मेदारी 

मुझ से पिछले एक महीने में पूछे गए करोना सम्बन्धी जिस प्रश्न ने सबसे अधिक कष्ट दिया वह कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी पर पूछा गया बेहद गैर-जिम्मेदार प्रश्न था:

“क्या कंपनी द्वारा अपने कार्यालय में रखे गए और अपने कर्मचारियों को घर में प्रयोग कराए गए साबुन, हैण्डवाश आदि के खर्च को कंपनी कानून के तहत माना जाएगा?”

मेरा उत्तर स्पष्टतः नकारात्मक रहा है|

यहाँ तक कि इस प्रकार के प्रश्न सरकार तक पहुँचे| आज सरकार ने कल जनरल सर्कुलर जारी कर देने योग्य उत्तर दिए हैं| सरकार ने सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तरों में उत्तर संख्या ५ में लिखा:

Payment of salary/ wages to employees and workers during the lockdown period (including imposition of other social distancing requirements) shall not qualify as admissible CSR expenditure.

लॉक डाउन समयावधि में दिए गए कर्मचारियों और मजदूरों के वेतन या मजदूरी, (और सामाजिक दूरी नियमों के पालन में लिए गए खर्च) कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी नहीं माने जायेंगे| (भावानुवाद)

उत्तर संख्या ६ में लिखा:

Payment of wages to temporary or casual or daily wage workers during the lockdown period shall not count towards CSR expenditure.

लॉक डाउन समयावधि अस्थाई, अल्पावधि और दैनिक मजदूरों की मजदूरी के खर्च कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी नहीं माने जायेंगे| (भावानुवाद)

सरकार ने बहुत ही उचित रूप से उत्तर संख्या ७ में लिखा:

If any ex-gratia payment is made to temporary / casual workers/ daily wage workers over and above the disbursement of wages, specifically for the purpose of fighting COVID 19, the same shall be admissible towards CSR expenditure as a onetime exception provided there is an explicit declaration to that effect by the Board of the company, which is duly certified by the statutory auditor.

लॉक डाउन समयावधि अस्थाई, अल्पावधि और दैनिक मजदूरों को मजदूरी के अतिरिक्त दी गई कोई भी सहायता के खर्च केवल इस बार एक बार के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी माने जायेंगे| (भावानुवाद)

मैं सरकार से इस से अधिक स्पष्टीकरण की आशा नहीं करता| कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मदारी का स्थापित नियम है कि ऐसा कोई भी खर्च जो एक व्यवसाय के सामान्य आवश्यकता का भाग हो या जो अंशधारकों, अधिकारीयों, कर्मचारियों और मजदूरों को लाभ पहुँचाने के लिए हो, वह सामाजिक जिम्मदारी की सीमा को छूता भी नहीं है|

दुर्भाग्यपूर्ण प्रश्न का मामला यहीं रुक जाता तो ठीक होता, मगर कल तुरंत ही एक सवाल प्राप्त हुआ कि क्या कंपनी उत्तर संख्या ४ का लाभ लेकर उपरोक्त खर्च को सामाजिक जिम्मदारी का खर्च बता सकती है? जब तक आप कंपनी के और अंशधारकों, अधिकारीयों, कर्मचारियों और मजदूरों के इतर समाज के लिए कुछ नहीं करते अपनी सामाजिक जिम्मदारी को पूरा नहीं करते|

मुझे याद आता है जब कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के प्रावधानों पर शुरूआती चर्चा हो रही थी तो एक बड़ी कंपनी की और से कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदरी की दर के दो प्रतिशत होने को बहुत ही अधिक बताया गया था| उस समय उका ध्यान इस बात पर दिलाया गया कि इस्लाम हर व्यक्ति से शुद्ध आय के ढाई प्रतिशत सामाजिक जिम्मेदारी पर खर्च करते की प्रेरणा देता है| कंपनियां सामाजिक जिम्मेदारी निर्वाहन के लिए इस दर को ध्यान में रखकर प्रेरणा ले सकतीं है| हिन्दू धर्म भी दान की बात करता है|

जिस समय मैं उपरोक्त प्रश्न से दुःख का अनुभव कर रहा था, मुझे बीबीसी की एक रिपोर्ट पाकिस्तान के बारे में देखने को मिली| पाकिस्तानी लॉक डाउन के समय में जगह जगह खाना, पैसा और अन्य सामिग्री बाँट रहे हैं| कुछ भारतीय खासकर सिख भी ऐसा कर रहे हैं, परन्तु इस तरह के मामलों में पाकिस्तानी भारतीयों से आगे बताये गए हैं| बीबीसी रिपोर्ट स्टेनफ़ोर्ड सोशल इनोवेशन रिव्यु के हवाले से कहती है कि ९८% पाकिस्तानी सामाजिक कार्यों के लिए ज़कात करते हैं, और इस तरह वह पाकिस्तान के जीडीपी के १% से अधिक के बराबर की रकम सामाजिक ज़िम्मेदारी ओअर खर्च करते हैं| यह पढ़ते हुए मुझे शर्मिंदा महसूस करना पड़ा कि भारतियों द्वारा सामाजिक ज़िम्मेदारी पर अपने जीडीपी का आधा प्रतिशत भी खर्च नहीं किया जाता|

मुझे यह महसूस करते हुए दुःख होता है कि भारतीय कंपनियां अपने अंशधारकों, कर्मचारियों और अधिकारियों आदि पर खर्च को सामाजिक जिम्मेदारी दिखाना चाहतीं हैं और भारतीय अपने मित्रों और रिश्तेदारों पर हुए खर्च को|

यह एक ऐसा विषय है जहाँ मेरे भारतीय अहम् को ठेस लगी है और सामाजिक जिम्मदारी के विषय पर मैं अपने देश और देशवासियों को उनसे आगे देखना चाहता हूँ|

कृपया, किसी गैर सरकारी संगठन को रकम देकर उससे अस्सी प्रतिशत वापिस लेने वाले नीचता पूर्ण विचार को न दोहराएँ| मुझे छोड़िये भारत सरकार भी इस से बहुत दुःख महसूस कर रही है| जल्दी ही कानून आपके नकेल डालेगा|

पुनश्च: – यहाँ यह स्पष्ट करता चलूँ चलूँ कि मैं सरकार द्वारा मुख्यमंत्री सहायता कोष में दी गई राशि को सामाजिक जिम्मेदारी निर्वहन न मानने को उचित नहीं मानता रहा हूँ परन्तु यह पुरानी नीति है और इसके सन्दर्भ में निर्णय लेने के लिए केंद्र सरकार स्वतंत्र भी है|

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मुकेश अम्बानी जी के नाम अरविन्द केजरीवाल का पत्र


आम पाठकों के चिंतन के लिए मैं इस पत्र को जस के तस सबके साथ साँझा कर रहा हूँ| इस पत्र की यह प्रति मुझे ई – मेल द्वारा प्राप्त हुई है| यहाँ न सिर्फ भारत की शासन व्यवस्था वरन आर्थिक अनुशासन पर भी प्रश्न चिन्ह हैं| क्या हम “कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी” केवल बातों और दान दक्षिणा में ही करना चाहते हैं?

पत्र —>

श्री मुकेश अंबानी
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड
मेकर्स चैम्बर्स – IV
नरीमन पाइंट,
मुंबई – 400021
श्री मुकेश अंबानी जी,
अभी हाल ही में आपने देश के सभी टी.वी. चैनलों को मानहानि का नोटिस भेजा है। इनका जुर्म यह है कि इन्होंने 31 अक्टूबर, 2012 और 9 नवम्बर, 2012 को मेरी और प्रशांत भूषण की प्रेस कांफ्रेंस का सीधा प्रसारण किया था। हमने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में देश के लोगों को बताया था कि किस तरह से आपने गैरकानूनी तरीके से सरकार पर दबाव डालकर गैस के दाम बढ़वाए। हमने लोगों को यह भी बताया कि आपके, आपके साथियों के और आपकी कंपनियों के स्विस बैंक में खाते हैं जिनमें कालाधन जमा किया गया था। हमारे इस खुलासे का  कई टी.वी. चैनलों ने सीध प्रसारण किया। आपने इन सभी टी.वी. चैनलों को मानहानि का नोटिस भेजा है।
मेरी समझ  में नहीं आ रहा है कि मेरी और प्रशांत भूषण की कही गई बातों से यदि आपकी मानहानि हुई है तो इसके सबसे बड़े दोषी तो मैं और प्रशांत भूषण हैं। नोटिस भेजना ही था तो आपको हमें भेजना चाहिए था। टी.वी. चैनलों ने तो केवल उसका प्रसारण ही किया था। फिर भी आपने हमें नोटिस न भेजकर टी.वी. चैनलों को नोटिस भेजा है। इससे जाहिर है कि आपका मकसद केवल टी.वी. चैनलों पर दबाव बनाने का है।
देश की जनता आपसे कुछ सीधे सवाल पूछना चाहती है। भारत सरकार को स्विस बैंको में खातेदारों की जो लिस्ट मिली है, क्या ये सच नहीं है कि आपका, आपके रिश्तेदारों का, आपके दोस्तों का और आपकी कंपनियों का उनमें नाम है? क्या यह सच नहीं है कि इस लिस्ट में आपके नाम पर सौ करोड़ रुपये जमा दिखाए गए हैं? क्या ये सच नहीं है कि आपने इस पैसे पर टैक्स जमा कर दिया है? इससे यह साबित होता है कि आपने अपना जुर्म कबूल कर लिया है। कानून के मुताबिक अब आप पर मुकदमा चलना चाहिए और यदि टैक्स की चोरी साबित होती है तो आपको जेल होनी चाहिए।
लेकिन ऐसा नहीं होगा। क्यों? क्योंकि सरकार आपसे डरती है। आपने खुद ही कहा है कि कांग्रेस पार्टी तो आपकी दुकान है। आपने सच ही कहा था। मीडिया में छपी कुछ खबरों के मुताबिक सोनिया गाँधी जी आपके निजी हवाई  जहाज से यात्रा करती हैं। लोगों का मानना है कि श्री जयपाल रेडडी का मंत्रालय भी आप ही के दबाव में बदला गया था।
केवल कांग्रेस ही क्यों? भाजपा और अन्य पार्टियां भी आपकी दुकान हैं। पहले तो आडवाणी जी स्विस बैंकों के खातों के बारे में खूब आवाज़ उठाते थे लेकिन जब से आपके खाते निकलकर सामने आए तो सारी भाजपा बिल्कुल चुप हो गई। आपके खातों के बारे में भाजपा ने संसद में एक शब्द भी नहीं बोला।
ऐसा लगता है कि सभी पार्टियां आपसे डरती हैं। सभी नेता आपसे डरते हैं। लेकिन इस देश की जनता आपसे नहीं डरती। सारी पार्टियां आपकी दुकान हो सकती हैं। लेकिन भारत आपकी दुकान नहीं है। भारत हमारा है, इस देश के लोगों का है। आप अपने पैसे से पार्टियों को खरीद सकते हैं, नेताओं को खरीद सकते हैं लेकिन भारत को हम बिकने नहीं देंगे।
आपका कहना है कि हमारे द्वारा कही गई बातों का सीधा प्रसारण करने से टी.वी. चैनलों ने आपकी मानहानि की। आप सोचकर देखिए कि आपकी मानहानि मैंने, प्रशांत भूषण और टी.वी. चैनलों ने की है या आपने अपनी मानहानि खुद अपने कर्मों से की है?
1.  2002 में आपने सरकार से ”फुल मोबिलिटी लेने के लिए प्रमोद महाजन को रिश्वत दी। 55 रुपये प्रति शेयर के भाव वाले एक करोड़ शेयर आपने प्रमोद महाजन को 1 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से दे दिए। ये तो सीधी  रिश्वत थी। जब आप पकड़े गए तो आपने शेयर वापस ले लिए। मामला अभी कोर्ट में है। क्या ऐसा करने से आपकी मानहानि नहीं हुई?
2.  आपने अपना बहुमंजिला मकान ‘वक्फ’ के ज़मीन पर बनाया है। इस ज़मीन पर अनाथालय बनना था। गरीब और अनाथ मुस्लिम बच्चों के हक को छीना है आपने। क्या ऐसा करने से आपकी मानहानि नहीं हुई?
3.  सन 2000 में आपको देश के गैस के कुछ कुएं दिए गए। आपकी जिम्मेदारी थी कि आप इसमें से गैस निकाल कर भारत सरकार को दें। गैस हमारी थी, इस देश के लोगों की। हम उस गैस के मालिक हैं। आपकी हैसियत केवल एक ठेकेदार की थी। आपको गैस के कुएं केवल गैस निकालने के लिए दिए गए थे। लेकिन आप चतुराई से मालिक बन बैठें। सरकार को आपने गैस ‘बेचनी’ चालू कर दी। सरकार पर दबाव डालकर आपने गैस के दाम बढ़ाने चालू कर दिए। चूंकि कांग्रेस आपकी दुकान है तो कांग्रेस पार्टी हमेशा आपकी दादागिरी के सामने झुकती नज़र आई। अकसर आपके दबाव में कांग्रेस गैस के दाम बढ़ाती गई और देश के लोग हाहाकार करते रहे। आपकी वजह से बिजली, खाद और रसोईगैस महंगी होती गई। लेकिन जब पानी सर से ऊपर हो गया तो श्री जयपाल रेडडी जी ने आपका विरोध् किया। उस समय श्री जयपाल रेडडी देश के तेल मंत्री थे। उन्होंने आपके दबाव में न आकर गैस के दाम और बढ़ाने से मना कर दिया। आपने श्री जयपाल रेडडी जी का ही तबादला करा दिया। आपकी हरकतों की वजह से देश में कई वस्तुएं महंगी हो रही हैं और जनता कराह रही है। क्या यह सब हरकतें आपको शोभा देती हैं? क्या इन हरकतों से आपकी मानहानि नहीं होती?
इस किस्म के आपके बेइमानी के कामों की लिस्ट बहुत लंबी है।
इस देश के अधिकतर व्यवसायी, कारोबारी, उद्योगपति ईमानदारी  से काम करना चाहते हैं। लेकिन आज की व्यवस्था उन्हें बेइमानी करने पर मजबूर करती है। पर आपके जैसे उद्योगपति जब खुलेआम व्यवस्था का दुरुपयोग अपने फायदे के लिए करते हैं तो इससे सारे उद्योग और व्यवसाय पर काला धब्बा लगता है।
एक तरफ आप हैं, आपके पास पैसा है। दूसरी तरफ इस देश की जनता है। जनता अब जाग गई है। जनता के अंदर जुनून है। इतिहास गवाह है कि जब-जब पैसे और जुनून के बीच लड़ाई हुई है तो हमेशा जुनून जीता है।
मेरा आपसे निवेदन है कि देश के मीडिया को धमकाने की कोशिश न करें। मीडिया में चंद लोग ऐसे हो सकते हैं जिन्होंने खुद गलत काम किए हों। ऐसे मीडियाकर्मी शायद आपके दबाव में आ जाएं। लेकिन आज भी अधिकांश पत्रकार देश के लिए काम करते हैं। वो आपके दबाव में नहीं आने वाले। इतिहास गवाह है कि जब-जब देश की न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका चरमराती नज़र आई तो, ऐसे ही पत्रकारों ने लोकतंत्र को जिंदा रखा। कुछ ऐसे मीडिया घराने हैं जिनमें सीधे या परोक्ष रूप से आपका पैसा लगा है। हो सकता है ऐसे घराने आपके दबाव में आ जाएं, पर इन घरानों में काम करने वाले पत्रकार आपके दबाव में नहीं आने वाले।
आपका क्या सपना है? क्या आप बेइमानी से दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति बनना चाहते हैं? मान लीजिए आप इस देश की सारी दौलत के मालिक बन जाए। क्या इससे आपको खुशी मिलेगी? खुशी अधिक से अधिक धन अर्जित करने से नहीं मिलती। बल्कि त्याग करने से मिलती है। आज आप एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं कि यदि आप बेइमानी से व्यवसाय करना छोड़ दें और अपनी सारी दौलत देश के लोगों के विकास में लगा दें तो यह देश आपको कभी नहीं भूलेगा।
(अरविंद केजरीवाल)