(प्रातः का प्रथम पल) वो सुबह सुबह की अंगड़ाई, सुस्ताई, अलसाई, मदराई| वो जगती, उन्नीदी आँखे, तू गीत, भ्रमर की गाई|| वो अधसुलझे, उलझे बाल, तेरा छितरा, बिखरा हाल| वो फूटे टूटे कंघी के दान्ते, सौ मकड़ी का मकड़-जाल|| वो रूकती जीवन की नैया, बेबस, बेसबब, बेअदब, बदहाल| वो रूठा हास, परिहास, उल्लास छूटा, सच्चा-झूठा, प्रातःकाल|| (पुनर्निर्माण के उपरान्त) ओह! निखरी खिलती हंसतीं तुम, चिड़िया चहकी, कूकी कोयल| सद्य स्नाता, सुमुस्काती नारी, पुलकित, वायु नभ जल थल|| वो रेशम की लहराती साडी, सुलझे सुगढ़ सलोने बाल| उल्लसित, अहलादित, बाला, लहराती मृगनयनी सी चाल|| हास, परिहास, उल्लास, विलास, भरपूर जवानी जीता जीवन| इस धरा की अखंड स्वामिनी, तुमने जीता मेरा तन्मय मन|| (मेरी इस कविता के प्रथम भाग में सुबह – सुबह घर में प्रेयसी के उलझे सुलझे रूप को देख कर उत्पन्न निराशा का वर्णन है| उनके उलझे बालों में ही जिन्दगी उलझ सी गयी है| दूसरे भाग में नहाने के बाद तरोताजा हुई प्रेयसी का जिक्र है| संवरे सुलझे बाल जीवन को नयी प्रेरणा दे रहे हैं| कुछ पाठक कह सकते है कि क्या पुरुष के अलसाये रूप को देख कर प्रेयसी को निराशा नहीं होती होगी? हाँ, मैं सहमत हूँ| इसलिए सभी लोग रोज नहायें सिर से पैर तक भली प्रकार, ठीक से| बताता चलूँ कि इस कविता की प्रेरणा मुझे इस चलचित्र से मिली है|) … First part of my Hindi poem, explain dull feeling prevalent in early morning life. In second part, life is refreshed after proper bath, hair wash and hair style. Here is a rough near – translation in English: (the first moment of weaning) Those stretch-out in the morning, dull, indolence, intoxicating| Those awakened, Quasi sleepy eyes, you a song, sung by black beetle||1|| That half-stylish, elusive hair, thy sparse, scattered state| That bursting broken comb, Mesh of thousands Spider||2|| That stopped fairy of life, helpless, unprovoked, savage, impoverished| That lost laughter, humour, Joy, that missed black and white morning||3|| (After re-freshening) Oh! Blossom perfect cheering you, like many singing birds and cuckoos| Recently bathed, smiling lady, blithe air, water, land, sky||1|| That flowing silk dress, systematic, beautiful hair| Amusing, happy, young lady, wavy moves like reindeer ||2|| Laugh, humour, joy, luxury, winning all my young life| Lady of this entire universe, you won my lascivious mind||3||
कविता
कुछ भूल तो है मेरी…
महीनों पहले
लंबी सड़क के बीच
दरख्तों के सहारे
चलते चलते
तुमने कहा था
भूल जाओगे एक दिन
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याद आते हो आज भी
साँसों में सपनों में
गलीचों में पायदानों में
रोटी के टुकड़ों में
चाय की भाप में
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तुम आज भी
हर शाम कहते हो
भूल गया हूँ मैं तुम्हें
हर रात गुजर जाती है
मेरे शर्मिंदा होने में
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हर सुबह याद आता है
तुम्हें भूल चूका हूँ मैं
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कुछ भूल तो है मेरी…
ऐश्वर्य मोहन गहराना
(१८ जनवरी २०१३ – सुबह
जागने से कुछ पहले
अचानक मन उदास सा था
करवटें बदलते बदलते
तुम्हारी याद में)