विश्व-बंदी ४ मई


उपशीर्षक – कैद से छूटे कुत्ते बिल्ली

मुझे कोई सभ्य तुलना समझ नहीं आ रही| तालाबंदी का सरकारी ताला अभी ढीला ही हुआ कि दिल्ली वाले सड़कों पर ऐसे निकले हैं जैसे कई दिन के भूखे कुत्ते बिल्ली शिकार पर निकले हों| जिसे जो हाथ लगा मूँह पर लपेट लिया – रूमाल, मफ़लर, दुप्पटा, अंगौछा, तहमद, लूँगी| कुछ ने तो अपने दो-पहिया चौ-पहिया को धोने नहलाने की जरूरत भी नहीं समझी| शराब के आशिकों की भीड़ का क्या कहना – लगता था कि इस ज़िन्दगी का आख़िरी मौका हाथ ने नहीं जाने देना चाहते|

करोना भी बोला होगा – गधों, सरकार थक गई है तुमसे, इसलिए लॉक डाउन कम किया हैं| मगर मैं नहीं थका – मेरा काम चालू है|

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय करोना के मौजूदा मरीज़ों का चौथाई पिछले तीन दिन में आया है| साथ ही करोना के मौजूदा मरीज़ों का एक-तिहाई दिल्ली-मुंबई और आधा बड़े नामी शहरों से आता है|

ख़बरों में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का बयान छपा है, जो बहुत चिंताजनक तस्वीर हमारी पढ़ी-लिखी नासमझ जनता के बारे में पेश करता है| उनके बयान से कोई भी कह सकता है कि:

  • अन्तराष्ट्रीय यात्रियों की बड़ी संख्या बड़े शहरों से है और उनकी मुख्य भूमिका बीमारी फ़ैलाने में रही है|
  • ग्रामीण भारत अधिक अनुशाषित व्यवहार कर रहा है| बड़े शहरों में ठीक से लॉक डाउन का पालन नहीं किया गया|
  • मजूदूरों को और उनसे शायद कोई ख़तरा नहीं, क्योंकि विदेश से आने वालों से उनका संपर्क बहुत कम होता है|

भले ही सरकार से कितनी भी कमियां रहीं हो मगर जनता ने सरकार के प्रयासों को पूरा नुक्सान पहुँचाया है| इसमें सरकार समर्थकों का प्रदर्शन सबसे ख़राब रहा – जब उन्होंने ढोल नगाड़ों के साथ साड़ों पर नाच गाना किया बाद में आतिशबाजी की| अपने समर्थकों से प्रधानमंत्री की निराशा तो उनके पिछले दो महीने के उनके भाषणों में भी झाँकती नज़र आती है|

इस बीच सरकार को घर लौटते प्रवासी मजदूरों से किराया वसूलने के मुद्दे पर व्यापक जन-आलोचना का सामना करना पड़ा है और वह बात घुमाने में लगी है|

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विश्व-बंदी १९ अप्रैल


उपशीर्षक – राहत में कमी 

बाजार में बढ़ी हुई सख्ती देख कर लगता है कि सरकार का रुख़ और कड़ा हो रहा है और बहुत सी ढिलाई आसानी से अमल में नहीं आ पाएगी| दांया बांया कर कर लोगों द्वारा अपने कार्यालय खोलने की पूरी तैयारियाँ है| बहुत से कार्यालय कल खुलेंगे| घर में चिंता का माहौल है|

दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु और कर्णाटक की सरकारें बिना किसी राहत के लॉक डाउन को चलने के आदेश दे चुकी हैं| राज्य सरकारों का यह आदेश केंद्र सरकार के आदेश में दिए गए अधिकारों के तहत है और इसमें कोई विभेद नहीं है| यहाँ तक की केंद्र सरकार ने भी कुछ छूटों में वापिस कमी की है| देखना यह है कि राज्य सरकार के आदेश को कड़ाई से लागू किया जाता है या कठिनाई बढ़ने का खतरा उठाया जाता है| उम्मीद है दिल्ली राजनीति के दलदल में नहीं फंसेगा|

मरने वालों की संख्या देश में पांच सौ और पीड़ितों की सोलह हजार के पार निकल चुकी है| अन्य देशों के मुकाबले यह संख्या कम है, परन्तु ग्राफ़ के नीचे आने तक ख़ुशफ़हमी पाल लेना गलत होगा – हम बीमारी के प्रसार को टालने में कामयाब जरूर हुए हैं| परन्तु बीमारी की समाप्ति की घोषणा तब तक नहीं की जा सकती जब तक बीमारों की संख्या बढ़ने की ख़बरे आती रहेंगी| १९ अप्रेल की शाम पांच बजे, मन्त्रालय की वेबसाइट १३,२९५ लोगों के इलाज जारी होने के बारे में बता रही है|

मैं बहुत से कार्य समय पर नहीं कर पा रहा हूँ| घर से काम करने की पुरानी आदत के बाद भी कई रुकावटें हैं| घरेलू काम जो नौकर चाकर कर लेते हैं, उन्हें करना एक पहलू मात्र हैं| साथ ही इन कामों के साथ में ऑडियो पुस्तकें सुन रहा हूँ| सामाजिक चिंताएं मुझे व्यथित तो करती हैं पर इतना नहीं कि संतुलन खो बैठा जाए| भविष्य, जिसकी चिंता अनावश्यक है, उचित योजना का विषय है| योजना है, लागू करना सरल नहीं हो पाता| बहुत कुछ समझ से परे है| प्रश्न मानसिक रूप से अपने को दुरुस्त रखने का ही नहीं अपना ध्यान आवश्यक कार्यों में बनाए रखने का भी है|

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विश्व-बंदी १६ अप्रैल


उपशीर्षक – यमदूत

मौन उदास भय के कितना बेहतर है यह जान पाना कि दुनिया काजल की कोठरी जितनी काली नहीं है| देश में ३२५ जिले में करोना का कोई मामला नहीं आया है, ७० जिले ख़तरे से बाहर आते हुए लगते है| मगर डरता है दिल, देश में ७३६ ज़िलों में से १७० ज़िले नक़्शे पर लाल रंगे गए हैं – दिल्ली के सभी नौ रत्न और पूरे का पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र|

रोज दरवाज़ा खटकने पर ये आशंका होती है कि यमदूत तो नहीं| सुबह सुबह देशी गाय का अमृत माना जाने वाला दूध देने आने वाला दूधवाला भी समझता है, मैं उसे और वो मुझ में यमदूत के दर्शन करने की चेष्टा कर रहा है| मुझे नहीं मालूम कि मेरे कर्मफल का तुलन पत्र क्या कहता है| खाने पीने का सामान लेने या तो आप जाएँ या किसी को बुलाएँ – हिम्मत का काम लगता है| दवा लेने गया था तो दुकान का कारिन्दा बोला, यूपीआई कर दीजिए नगद ले तो लेंगे पर डर लगता है| ख़बर है एक पिज़्ज़ा देने वाले को विषाणु ने जकड़ा है सौ लोग अपने घर की निगाह्बंदी में हैं| रहम हो दुनिया पर|

करोना काल में में जीवन ने बदलना शुरू किया है| पहले यूपीआई का प्रयोग नहीं करता था अब हम नगद न देना चाहते हैं न लेना चाहते हैं| मन में ख़राब विचार न आएं इसके लिए झाड़ू बुहारू करते समय काम में मोबाइल के एप पर कान में हेडफ़ोन लगाए किताबें सुनता हूँ – पूरे ध्यान से| गाने पहले भी कम सुनता था अब भी कम सुनता हूँ – सुगम संगीत एकाग्रता की दरकार नहीं रखता _ ख़राब विचार आते जाते रहते हैं| साल में एक आध फ़िल्में देखने का हुआ ये है कि एक महीने की गिनती ही तीन पर है| खाने के शौक का ये कि हर हफ्ते में दो बार नए प्रयोग हो रहे हैं| यूं तो मैं हर दिन सोचता हूँ शाकाहारी और माँसाहारी के झमेले को छोड़ सर्वभक्षी बना जाए| मरना तो यूँ भी है| भला हो करोना विषाणु का कि दिल ने पक्का कर दिया है कि अगर यह जैविक हमला है तो अगला जैविक हथियार आलू पालक मूली बैगन है ही आएगा तो हम कुछ भी खाएगा| अन्न खाना पहले ही शास्त्रोक्त नहीं है शाकाहार में भी कंद मूल फल का ही विधान है|

नाइयों के पास जाने के ख़तरे को देखते हुए अपने सिर पर खुद से मशीन पहले ही चला चुका हूँ|

आगे आगे देखिए होता है क्या?

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