उपशीर्षक – ज़रा हलके गाड़ी हांको
क्या यह संभव है कि आज के करोना काल को ध्यान रखकर पाँच सौ साल पहले लिखा गया कोई पद बिलकुल सटीक बैठता हो?
क्या यह संभव है कि कबीर आज के स्तिथि को पूरी तरह ध्यान में रखकर धीरज धैर्य रखने की सलाह दे दें?
परन्तु हम कालजयी रचनाओं की बात करते हैं तो ऐसा हो सकता है|
ज़रा हल्के गाड़ी हांको, मेरे राम गाड़ी वाले…
अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य दोनों को संभलकर चलाने का पूरा सुस्पष्ट सन्देश है|
गाड़ी अटकी रेत में, और मजल पड़ी है दूर…
वह हमारी वर्तमान स्तिथि को पूरी तरह से जानते और लम्बे संघर्ष के बारे में आगाह करते हैं|
कबीर जानते हैं कि वर्तमान असफलता का क्या कारण है:
देस देस का वैद बुलाया, लाया जड़ी और बूटी;
वा जड़ी बूटी तेरे काम न आईजद राम के घर से छूटी, रे भईया
मैं हैरान हूँ यह देख कर कि कबीर मृत देहों के साथ सगे सम्बन्धियों और बाल-बच्चों द्वारा किये जा रहे व्यवहार को पाँच सौ वर्ष पहले स्पष्ट वर्णित करते हैं:
चार जना मिल मतो उठायो, बांधी काठ की घोड़ी
लेजा के मरघट पे रखिया, फूंक दीन्ही जैसे होली, रे भईया
मैं जानता हूँ कि यह सिर्फ़ एक संयोग है| परन्तु उनका न तो वर्णन गलत है, न सलाह| पूरा पद आपके पढ़ने के लिए नीचे दे रहा हूँ|
सुप्रसिद्ध गायिका रश्मि अगरवाल ने इसे बहुत सच्चे और अच्छे से अपने गायन में ढाला है: