जलता हुआ घर
याद दिलाता है
जब जलाए थे
घर मेरे बंधुओं ने
हर्षित हुआ था मैं
ऋषि-शिशु का रुदन
श्रवण संगीत सा
लगा था मुझे
आज मेरी शिशु
चिर-शांत हुई
वह असह संगीत
चिल्लाते हुई
हे हनुमान!
क्षमा करना
तुम स्वयं को
मैं स्वयं को|
समस्त स्वमेव स्वयं||
जलता हुआ घर
याद दिलाता है
जब जलाए थे
घर मेरे बंधुओं ने
हर्षित हुआ था मैं
ऋषि-शिशु का रुदन
श्रवण संगीत सा
लगा था मुझे
आज मेरी शिशु
चिर-शांत हुई
वह असह संगीत
चिल्लाते हुई
हे हनुमान!
क्षमा करना
तुम स्वयं को
मैं स्वयं को|
समस्त स्वमेव स्वयं||
हृदय को छू जाने वाली कविता। बहुत मार्मिक एवं सटीक।
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