दशहरे पर लोग जलेबी क्यों खाते हैं? हाट बाज़ार और मेले में जलेबी का अलग ही चलन है| दशहरे में यह काफी महत्वपूर्ण हो जाता है| मगर आज मेरा ध्यान दशहरे के मेले में नहीं, बल्कि नौमी यानि नवमी के मेले में है|
हम अलीगढ़ वाले अपने गोलगप्पों और मठरीनुमा कचोड़ियों को लेकर हमेशा लार टपकाए रहते हैं| मगर अलीगढ़ शहर में नौमी के गोलगप्पों का बड़ा महत्व है| देवी मंदिर मंदिर में दर्शन के बाद पहला काम है गोलगप्पे खाना|
पहली बात तो यह है कि अलीगढ़ के अधिकांश मूल वासियों के लिए नवरात्रि कुलदेवी की आराधना का समय है| शहर में लगभग हर पुराने मंदिर में पथवारी है| पथवारी मूर्ति पूजा का आदि स्वरूप है| देखने में यह मात्र एक पत्थर की तरह होता है और उसमें देवी की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है – पूर्ण मान्यता रहती है| आजकल लगभग सभी पथवारी मंदिरों में सुंदर देवी मूर्तियाँ स्थापित होने लगी है और पूजन भी होता है| पहले पूजन पथवारी का होता था और मूर्ति को प्रायः दर्शन सुख के लिए समझा जाता था| यह ऐसा ही है कि भले ही शिव की कितनी सुंदर मूर्ति क्यों न हो पूजन शिवलिंग का ही होता है|
अलीगढ़ में नौ दिन उपवास का काफी चलन है| मगर उस से भी पहले लोग देवी – जातों (देवी दर्शन के लिए यात्रा) पर निकल जाते हैं| यह यात्रा भी लंबी रहती हैं – ज्वाला जी, नगर कोट, विभिन्न शक्तिपीठ और अन्य देवी मंदिर| इस समय परिवार के शेष लोग और अड़ौसी-पड़ौसी भी बहुत सादा भोजन करते हैं जिसमें मिर्च-मसालों का अभाव रहता है|
देवी पूजन के बाद घर और मोहल्ले में पर भंडारा – पकवान भी है – आलू-सब्ज़ी, छोले, कद्दू, बैगन, पूड़ी, और हलवा-चना| आह क्या स्वाद है? अष्टिमी नवमी को लगभग हर गली मोहल्ले में भंडारा है| घर पर भी पकवान बने हैं| आप बहुत लंबे अंतराल तक साधारण खाने के बाद जब फिर से अपने पसंदीदा पकवान खाने जा रहे हों तो पचाने के लिए कुछ इंतजाम तो होना ही चाहिए| यही काम हमारे गोलगप्पे का है| अलीगढ़ के गोलगप्पे हींग-प्रधान होते हैं| इसलिए किसी भी प्रकार के भोजन को पचाने में विशेष सहायक होते है| साथ ही कैलोरी भी इनमें काफी कम होती है| मूलतः पानी होने के कारण आप को पकवान आदि ग्रहण करने में कोई कटौती भी नहीं करनी होती|