उस दिन कोहराम मचा था| बड़ी मौसी को मिर्च फ़ीकी लगीं थीं| छोटे मामा कौने में सुबक रहे थे| न ये लड़ाई का असर न था| lभाई बहन की महाभारत के बाद मामा सब्ज़ी लेने गए और मुफ़्त में मिलने वाली हरी मिर्च भी चखने के बाद लाये| ज़िंदगी मे जिसने हरी मिर्च न कुतरी हो वह और मिर्ची चखे? आँख-नाक से समस्त द्रव्य निकलने लगे? ऊपर से सब्ज़ीवाले का बड़बड़ाना अलग| अब मौसी की हालत खराब; गनीमत की उनकी माँ वहाँ न थीं और चाची लोग जेठौत को कुछ कहने पाप कैसे उठातीं? मगर मौसी का उतरा चेहरा बाकी भाई बहन बुढ़ापे तक याद रखे बैठे हैं|
एक किस्सा यूँ है कि एक भाई बड़े पढ़ाकू थे कि किताबों को हलाकू से कम नहीं लगते थे| एक उनका भाजी तरकारी लाने के सितारा बुलंद हुआ| माता ने हिसाब लगाकर पैसे दिये| जब सब गुना गणित हो गया तो सब्ज़ी वाले ने धनिया मिर्च थैले में डाल दिया| भाई का गणित तेज था बोले, आप इन दोनों को वापिस निकाल लें क्योंकि इतना बजट लेकर नहीं चले हैं| जब तक भाई अमेरिका न पहुँचे हम उनका मज़ाक उड़ाते रहे| उसके बाद तो हम खुद ही मज़ाक बन गए| दस वर्ष की वय में जब मैं पहली बार भाजी तरकारी लेने गया तो पहला ज्ञान यही मिला कि हरी मिर्च और हरा धनिया मुफ़्त मिलता है| बाद में दिल्ली आए तो सफल कि दुकान पर चार मिर्च भी तौल कर मिलती हैं|
आदत की बात हैं, अब सलाद चबाने के नवाबी ठाठ न हों तो क्या हरी मिर्च न कुतरी जाए? तीखी मिर्च को नमक के साथ भी चबाया जा सकता है| शौक़ीन नीबू रस में डूबी हरी मिर्च भी खाते हैं| नमकीन पूड़ी कचौड़ी तलने से पहले कढ़ाई में चीरा लगी तीखी मिर्च तल दीं जाएँ तो उन्हें नमक लगा कर परोसा जा सकता है और पूड़ी कचौड़ी भी नया स्वाद देतीं हैं| कुछ सजावटी ढाबे मिर्च का मुकुट उतार कर उसमें दाँत-कुरेदनी चुभाकर दस्तरखान पर सजा देते हैं|
चाट पकौड़ी के बाजार में तो मिर्ची ही रानी हैं| हरी, लाल, पीला, काली और सफ़ेद मिर्च भले ही आपस में रिश्तेदार न निकलें, यहाँ उनका दरबार सजता है|
मिर्च के अपने मजे हैं आप उनके साथ तलना, भूनना, उबालना, काटना, कूटना, पीसना, दलना, दरदरा करना जैसा कुछ भी कर सकते हैं| मगर साल दो साल में एक दिन यहीं मिर्च आपके पेट तक जलन मचाती है और आप पेट पकड़ कर कहते हैं| कुछ भी हो खाना मजेदार था|