अगर दुनिया में मरने वालों को गिना जाए तो आतंक से अधिक लोग भय का शिकार हैं| भयाक्रांत मैं भी हूँ और आप भी|
भय और आतंक दुनिया के सबसे बड़े व्यवसाय हैं| आतंक अपराध के रूप में आता है और भय सूचना के रूप में| दुनिया में सबसे कम डरे हुए लोग सूचना के अभाव में जीते हैं, और बहादुर इन सूचनाओं के बाद भी भय पर विजय पाते हैं| भय से अधिक भयानक क्या होगा, भय का फैलाया जाना, भय को फ़ैलाने वाला? मगर भय जारी है|
भय फ़ैलाने की प्रक्रिया सरल होती है – आपका हित, हित चिंतन, हित हानि की सूचना और हित साधन का आग्रह| हमें सही और गलत सूचनाओं की परख करनी होती है| परन्तु अधिकांश सूचनाओं की परख करने का कोई तरीका नहीं होता|
आज सामाजिक प्रचार माध्यम बहुत तीव्रता से सूचना का प्रसार करते हैं| सूचनाओं का आवागमन इतनी तीव्रता से हो रहा है कि उनकी पुष्टि का समय नहीं है| हम सूचना माध्यम भी निर्भर नहीं कर पा रहे कि वह स्वविवेक का प्रयोग करकर सही सूचना ही पंहुचायेंगे| ऐसे में एक अतिरिक्त भय अधिक बढ़ता है – अगर सूचना सही निकली तो क्या होगा?
सूचना देने के लिए प्रयोग की गई भाषा का भी बड़ा असर होता है| शब्द चयन किसी भी सूचना को भयानक बना देता है| अधिकांशतः मीठे शब्द खतरनाक होते हैं और डरावने शब्द गीदड़ भभकी| उदहारण के लिए रंग निखारने की क्रीम अक्सर मीठे शब्दों में डर फैलातीं हैं और समाज को अरबों की चपत लगतीं हैं| दूसरी ओर हफ्ता और महिना वसूल करने वाले अपराधी भारी भरकम भाषा के बाद भी मीठे रिश्वतखोरों का मुकाबला करने में असमर्थ रहते हैं|
हाल में सारी दुनिया को भयभीत करने के पीछे भी सरकारों और अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं की मीठी बातें हैं| कोरोना विषाणु से दुनिया भयाक्रांत है, अगर किसी को भी अधिक खतरनाक प्रदूषण की चिंता नहीं है| मैं इस भय को गलत और अनावश्यक नहीं कहता परन्तु प्रदूषण दुनिया को अधिक बीमार करता रहा है और लाखों की मृत्यु का कारण बना है|
अच्छा यह है कि इस भय के चलते शायद समय पर इस विषाणु के प्रसार को रोक लिया जाए|