इक्कीसवीं सदी ने मुझे कहा, काम करो मत करो, काम करने का दिखावा जरूर करो| काम अच्छा हो न हो, दिखावा अच्छा होना चाहिए|
अब मैं काम नहीं करता| बिलकुल भी तो नहीं| काम करने में कोई मजा नहीं| आपने काम किया, आपको उसका पैसा मिला, उसके लिए इज्जत मिली, शोहरत मिली, औरत मिली तो क्या मिला? बिना काम किए पैसा, इज्जत शोहरत और औरत मिले तो क्या बात है? संतोष तब है जब आप को संतुष्टि मिले. रोमांच तब है जब आपके अहम् तो भी संतुष्टि मिले| रोमांच जिन्दगी में यूँ ही तो नहीं आता| उसके लिए दिमाग लगता है|
काम न करते हुए भी आप सफल हो सकते हैं बशर्ते आपके में वो काबिलियत हो जो आपको काम का आदमी बना दे| आपके दिल दिमाग में खतरनाक जानवर होना चाहिए| जिसे हार बात पर जिन्दगी दाँव पर लगा देने की आदत हो| जो बिना बात के लिए जिन्दगी की दौड़ में सरपट दौड़ पड़े| अपनी राह में किसी को भी कुचल दे, मसल दे और ठिकाने लगा दे| मायने इस बात के नहीं रहते कि आपकी दिशा क्या है| मायने इस बात के रह जाते हैं कि आपकी दौड़ देखकर दुनिया को कितना मजा आया और उस से भी अधिक आपको कितना रोमांच पैदा हुआ|
रोमांच जिन्दगी जीने में नहीं है, जिन्दगी का शिकार कर लेने में है| जिन्दगी को अपना ग़ुलाम बना लेने में है| जिस दिन आप अपनी जिन्दगी को अपना ग़ुलाम बना लेते हैं दुनिया आपकी ख़ुद ग़ुलाम बनने लगती है| दुनिया किसी से प्रेम नहीं करती, इज्जत नहीं करती, दुनिया को किसी का गुलाम बन जाने की लत है| आपकी लत क्या है, यह आपको तय करना है|